18 मई, 2020 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने बायोमेडिकल वेस्ट से सम्बन्ध्र रखने वाले मामले पर संज्ञान लिया है| यह मामला आवेदक, सुभास दत्ता ने एनजीटी के सामने रखा था| उन्होंने न्यायाधिकरण को सूचित किया है कि पश्चिम बंगाल में कोविड-19 से जुड़े कचरे को खुले मैदान में अंधाधुंध तरीके से डंप किया जा रहा है| जबकि कोविड-19 से जुड़े कचरे के हैंडलिंग, उपचार और निपटान के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अलग से दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं| उनके अनुसार इन दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है|
इस मामले का संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वे संबंधित विभागों और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर इस मामले की जांच करें| और देखें कि क्या कोविड -19 से जुड़े कचरे के निपटान के लिए सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है| साथ ही इन दिशा-निर्देशों को लागू करने के लिए ठोस और तत्काल कदम उठाएं| इसके साथ ही इसपर एक रिपोर्ट भी कोर्ट के सामने प्रस्तुत करें।
इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अलग से एक रिपोर्ट दाखिल करनी के लिए कहा है| जिसमें कोविड-19 से जुड़े कचरे का निपटान किस तरह से किया जा रहा है और उसमे सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है उसपर भी एक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है। कोर्ट ने इन दोनों रिपोर्ट को 8 जुलाई तक जमा करने का आदेश दिया है।
19 मई 2020 को दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) ने पर्यावरण प्रदुषण से जुडी एक रिपोर्ट जारी की है| इस रिपोर्ट को एनजीटी के आदेश पर तैयार किया गया है| यह रिपोर्ट दिल्ली के सत्य निकेतन इलाके में रेस्टोरेंट और फूड कार्नर द्वारा पर्यावरण को प्रदूषित करने के सन्दर्भ में जारी की गई है| इसके सन्दर्भ में डीपीसीसी और दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की संयुक्त टीमों ने फरवरी और मार्च में निरीक्षण किया था| जिसके बाद यह रिपोर्ट तैयार की गई है|
इस संयुक्त जांच टीम के अनुसार इस क्षेत्र में जो फूड पॉइंट हैं वो छोटे हैं| जोकि मुख्य रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय के साउथ कैंपस में पढ़ने वाले और आस-पास के कॉलेजों के छात्रों की जरूरतों को पूरा करते हैं| टीम ने इस क्षेत्र में 76 फूड पॉइंट का निरीक्षण किया है| जिसमें से 23 फूड कार्नर को जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम), 1974 की धारा 33 (ए) और वायु प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम), 1981 की धारा 33 (ए) के तहत बंद करने के निर्देश जारी किए गए हैं।
इसके साथ ही इनके बिजली और पानी के कनेक्शन भी काट दिए गए हैं| यह सभी फूड कार्नर बिना किसी वैध अनुमति के चल रहे थे| साथ ही निरीक्षण के दौरान यह पर्यावरण सम्बन्धी मानकों का पालन भी नहीं कर रहे थे|
रिपोर्ट के अनुसार इनमें से फ़ूड कार्नर बहुत छोटे थे| जिनमें 10 से भी कम लोग बैठ सकते थे| उनमें से कुछ तो केवल खाना बनाते और बेचते थे, जिनमें बैठने की कोई सुविधा नहीं थी| इन फ़ूड कार्नर को सलाह दी गई है कि वो फिर से शुरू करने से पहले इनको चलने का आदेश प्राप्त कर लें| इनमें से 45 को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं| जिसमें उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया है कि उनपर पर्यावरण को प्रदूषित करने के लिए जुर्माना क्यों न लगाया जाए|
बाकि 16 रेस्टोरेंट और फूड कार्नर वैद्य आदेश के बाद चल रहे हैं| जबकि 15 को नवीकरण आदि वजहों से बंद पाया गया है| जिनकी जांच दो महीने के बाद की जाएगी|
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने मेसर्स मलिक बेवरेज, मलिक टोला, सागड़ी, आज़मगढ़ के खिलाफ कथित तौर पर पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का पालन न करने पर अपनी रिपोर्ट दर्ज की है। गौरतलब है कि इस यूनिट ने 20 दिसंबर, 2017 को यूपीपीसीबी से एनओसी प्राप्त की थी| लेकिन इस संचालित करने के लिए यूपीपीसीबी से वैध सहमति नहीं मिली थी। साथ ही यूनिट ने रिवर्स ऑस्मोसिस प्लांट से उत्पन्न वेस्ट (एफ्लुएंट) के उपचार और निपटान के लिए भी कोई सुविधा स्थापित नहीं की है| इसमें से निकलने वाले एफ्लुएंट की मात्रा लगभग 04 केएल है।
इसके साथ ही इस यूनिट ने भूजल उपयोग के लिए सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी (सीजीडब्ल्यूए) से भी एनओसी नहीं ली है। जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह यूनिट उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी एनओसी और उसमें दी गई शर्तों का उल्लंघन कर रही थी।
साथ ही रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने यूपीपीसीबी, क्षेत्रीय कार्यालय, आजमगढ़ की निरीक्षण रिपोर्ट और एनओसी की शर्तों के उल्लंघन के आधार पर उद्योग (मेसर्स मलिक बेवरेज, मलिक टोला, सागदी, आजमगढ़) के खिलाफ जल प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम), 1974 की धारा 33 (ए) के तहत 06 जनवरी 2020 को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया था|