भोपाल गैस त्रासदी: रासायनिक कचरे के मामले में एनजीटी ने अधिकारियों को लगाई फटकार

यूनियन कार्बाइड परिसर से 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरा जमा है, जो भूजल और नदियों को प्रदूषित कर रहा है
यूनियन कार्बाइड में जमा सैकड़ों टन जहरीला कचरा; फोटो: सायंतन बेरा/ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
यूनियन कार्बाइड में जमा सैकड़ों टन जहरीला कचरा; फोटो: सायंतन बेरा/ सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई)
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने यूनियन कार्बाइड परिसर से 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे को हटाने के लिए कार्रवाई न करने पर अधिकारियों को फटकार लगाई है। साथ ही इस कचरे के निपटान के लिए तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि भोपाल का यूनियन कार्बाइड नामक यह वही कारखाना है, जिससे कभी मिथाइल आइसो साइनेट नामक जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। इस आपदा को भोपाल गैस त्रासदी के नाम से भी जाना जाता है। तीन दिसंबर, 1984 की सुबह तीन बजे, भोपाल में यूनियन कार्बाइड से निकलने वाली जहरीली गैस ने शहर को इस कदर तबाह किया कि उसका असर आज तक देखा जा रहा है।

इस त्रासदी को करीब चार दशक होने वाले हैं। इसके बावजूद यूनियन कार्बाइड परिसर में जमा रासायनिक कचरा इस बात को दर्शाता है कि अधिकारी इसको लेकर कितना संजीदा हैं।

अदालत का कहना है कि इस जहरीले कचरे का रिसाव हो रहा है, विशेष रूप से बारिश के मौसम में यह अन्य क्षेत्रों में फैल रहा है। इसके रिसाव के कारण सतह और भूजल जहरीला हो रहा है। साथ ही यह रासायनिक कचरा नदियों और अन्य जल निकायों को भी प्रदूषित कर रहा है।

ऐसे में न्यायमूर्ति शेओ कुमार सिंह की बेंच ने मामले को गंभीरता से न लेने के लिए अधिकारियों की आलोचना की है। अदालत का कहना है कि "गैस राहत और पुनर्वास के निदेशक फाइलों को लिए बैठे हैं। वो वहां रहने वाले लोगों और पर्यावरण को होने वाले नुकसान का आकलन नहीं कर रहे हैं।"

उनके मुताबिक यह रसायन भूमिगत जल, नदियों और सतही जल के जरिए लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। 

किन मुद्दों पर अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई करने का दिया गया है निर्देश 

अदालत का यह भी कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने की जरूरत है। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे की निगरानी के लिए पहले ही एक समिति का गठन किया है। ऐसे में एनजीटी ने समिति को प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया है।

ट्रिब्यूनल ने समिति से सुनिश्चित करने को कहा है कि वहां रहने वाले लोग दूषित पानी की वजह से प्रभावित न हों। कोर्ट के अनुसार इस परिसर में अभी भी 337 मीट्रिक टन से अधिक रासायनिक कचरा पड़ा है।

हालांकि अदालत ने मामले के तकनीकी पहलु को देखते हुए दो विशेषज्ञों की आवश्यकता बताई है। इसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), भोपाल के निदेशक द्वारा नामित एक विशेषज्ञ और दूसरे को मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) के वैज्ञानिक आलोक सक्सेना द्वारा नामित किया जाना है।

एनजीटी ने निम्नलिखित सात बिंदुओं पर संबंधित अधिकारियों को तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया है:

  • यूनियन कार्बाइड परिसर में जमा 337 मीट्रिक टन रासायनिक कचरे का निपटान।
  • भूजल प्रदूषण से जुड़े मुद्दों का समाधान।
  • नल जल से पानी की कमी को दूर करना
  • तय सीमा से अधिक नाइट्रेट (एनओ3) के स्तर का आकलन करना और उसके उपचार के लिए आवश्यक उपाय करना।
  • 2011 में प्रस्तुत रिपोर्टों और वर्तमान अध्ययन की तुलना में क्लोराइड संदूषण की मौजूदा स्थिति का मूल्यांकन और उसके बारे में उचित कार्रवाई करना। इसके अलावा, डब्ल्यूएचओ द्वारा तय सीमा से अधिक सोडियम और पोटेशियम के स्तर को संबोधित करना।
  • सात स्थानों पर लौह का स्तर तय सीमा से अधिक है, उसपर कार्रवाई करना।
  • यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड परिसर के आसपास के क्षेत्र को प्रभावित करने वाले आंशिक मैंगनीज प्रदूषण का समाधान करना।

इस मामले में पर्यावरण सचिव एवं मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव को आगे आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं। वहीं प्रमुख सचिव को उपचारात्मक कार्रवाई करने के लिए सक्षम विशेषज्ञ निकाय से रिपोर्ट प्राप्त करने नियमों के अनुसार उचित कार्रवाई करने को कहा गया है।

इस मामले में एनजीटी ने तीन सप्ताह के भीतर की गई कार्रवाई पर एक तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है। मामले की अगली सुनवाई नौ जुलाई 2024 को होगी।

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