बिटकॉइन के कारण हर साल पैदा हो रहा है 30,700 मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा

बिटकॉइन के हर एक लेनदेन से करीब 272 ग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न होता है जोकि नए आई फोन 13 के वजन से भी कहीं ज्यादा है
बिटकॉइन के कारण हर साल पैदा हो रहा है 30,700 मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा
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यदि मई 2021 तक के आंकड़ों को देखें तो बिटकॉइन के कारण हर साल करीब 30,700 मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है, जोकि अपने आप में एक बड़ी समस्या है। यह जानकारी हाल ही में डच सेंट्रल बैंक और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) द्वारा किए विश्लेषण में सामने आई है, जोकि जर्नल रिसोर्सेज कंजर्वेशन एंड रीसाइक्लिंग में प्रकाशित हुआ है।

वहीं यदि 2021 की शुरुआत की बात करें तो जब बिटकॉइन की कीमत चरम पर पहुंच गई थी तो उस आधार पर देखें तो उससे करीब 64,400 मीट्रिक टन कचरा पैदा हो सकता है। 

इस शोध के मुताबिक बिटकॉइन माइनिंग से हर साल इतना इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है, जो  नीदरलैंड जैसे देश में मौजूद कुल छोटे आईटी उपकरणों जैसे मॉनिटर, प्रिंटर, कीबोर्ड, माउस इत्यादि से उत्पन्न हुए कचरे के बराबर होता है। देखा जाए तो बिटकॉइन के हर एक लेनदेन से करीब 272 ग्राम ई-वेस्ट उत्पन्न होता है जोकि नए आई फोन 13 के वजन से भी कहीं ज्यादा है। गौरतलब है कि आई फोन 13 का वजन करीब 173 ग्राम है। 

देखा जाए तो बिटकॉइन पहले अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा की खपत के लिए ही बदनाम था, पर इसके कारण पैदा होने वाला इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी एक बड़ी समस्या है। बिटकॉइन माइनिंग में लगे लोग इन बिटकॉइन को बनाकर पैसा कमाते हैं, पर इसके लिए उपयोग की जाने वाली कंप्यूटिंग बड़े पैमाने पर ऊर्जा की खपत करती है, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी पैदा करती है।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार बिटकॉइन माइनिंग पर हर साल करीब 101 टेर्रावाट प्रति घंटा बिजली की खपत होती है। ऊर्जा की यह खपत उतनी है जितनी तो अर्जेंटीना और फिलीपींस जैसे देश भी खर्च नहीं करते हैं। वहीं यदि बिटकॉइन एक देश होता तो वो दुनिया के 30 सबसे ज्यादा बिजली की खपत करने वालों की लिस्ट में शामिल होता।   

हर साल पैदा हो रहा है करीब 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा

शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि बिटकॉइन माइनिंग के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की कुल आयु करीब 1.29 वर्ष होती है। जिसका मतलब है कि उसके बाद वो उपकरण वेस्ट में बदल जाते हैं। ऐसे में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। दुनिया भर के लिए इलेक्ट्रॉनिक कचरा पहले से ही एक बड़ी समस्या है।

हाल ही में यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी द्वारा एक रिपोर्ट 'ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020' से पता चला है कि वर्ष 2019 में करीब 5.36 करोड़ मीट्रिक टन कचरा उत्पन्न हुआ था। इसमें पिछले पांच वर्षों में करीब 21 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जबकि अनुमान है कि 2030 तक यह 7.4 करोड़ मीट्रिक टन प्रतिवर्ष पर पहुंच जाएगा। 

अनुमान है कि 2019 में जितना इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ था उसमें से 17.4 फीसदी को ही रिसाइकल किया गया था जबकि बाकि को ऐसे ही डंप कर दिया गया।  हालांकि देशों में इलेक्ट्रॉनिक कचरे को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, पर अभी भी बहुत से देश हैं जो इसको लेकर गंभीर नहीं हैं।  2019 के आंकड़ों के अनुसार करीब 78 देशों ने राष्ट्रीय ई-कचरा नीति, कानून या विनियमन को अपनाया है।

वहीं जिन देशों में इनसे जुड़े नियम मौजूद हैं वहां भी इनपर ठीक तरह से पालन नहीं किया जाता। नतीजन न तो वहां ई-कचरे को इकट्ठा किया जाता है और न ही उनका सही तरीके से प्रबंधन होता है। ऐसे में यदि इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ठीक से प्रबंधन न हो तो वो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक बढ़ा खतरा बन सकता है।

क्या है यह बिटकॉइन

बिटकॉइन एक तरह की क्रिप्टोकरेंसी होती है। देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में लोगों की इसके प्रति दिलचस्पी काफी तेजी से बढ़ी है। देखा जाए तो देशों की पारम्परिक मुद्रा को उस देश की सरकार, बैंक आदि नियंत्रित करते हैं पर क्रिप्टोकरेंसी के साथ ऐसा नहीं होता है। बिटकॉइन के लेनदेन का प्रबंधन बिटकॉइन उपयोगकर्ताओं के एक डिसेंट्रलाइज्ड नेटवर्क द्वारा किया जाता है, जिसका मतलब है कि इसे कोई व्यक्ति या संस्था इसे नियंत्रित नहीं कर सकती है।  

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