फीकल कोलीफॉर्म सहित कई अन्य मानकों पर खरे नहीं हैं जम्मू कश्मीर के 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि नियमित रूप से चल रहे 20 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 12 फीकल कोलीफॉर्म के साथ-साथ कई अन्य मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं
फीकल कोलीफॉर्म सहित कई अन्य मानकों पर खरे नहीं हैं जम्मू कश्मीर के 12 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
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जम्मू कश्मीर में 24 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में से दो चालू नहीं हैं। वहीं एक ट्रायल पर चल रहा है, जबकि एक अन्य अमरनाथ यात्रा के दौरान थोड़े समय के लिए अस्थाई रूप से काम कर रहा है। इतना ही नहीं नियमित रूप से चल रहे 20 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 12 एसटीपी फीकल कोलीफॉर्म के साथ-साथ कई अन्य मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं।

यह जानकारी 15 अक्टूबर, 2024 को जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति (जे एंड केपीसीसी) द्वारा दायर रिपोर्ट में सामने आई है। यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा 18 सितंबर, 2024 को दिए आदेश पर कोर्ट में सौंपी गई है।

अदालत ने जम्मू कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति से जम्मू-कश्मीर में चल रहे सभी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के आंकड़े देने को कहा है। इसमें फीकल कोलीफॉर्म से जुड़े आंकड़े भी साझा करने की बात कही गई है। इसके साथ ट्रिब्यूनल द्वारा 30 अप्रैल, 2019 को दिए निर्देशों का पालन किया जा रहा है, इसकी भी जानकारी तलब की गई है।

इसके साथ ही अदालत ने प्रत्येक शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) के लिए ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन में सुधार के लिए समयसीमा और बजट का विवरण भी मांगा है।

यमुना जीर्णोद्धार: दिल्ली में बाढ़ क्षेत्र परियोजना की बहाली और कायाकल्प के लिए चल रहा है काम

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) का कहना है कि दिल्ली में सूर और वासुदेव घाट के जीर्णोद्धार की कार्य योजना इंटैक ने बनाई है। इसका उद्देश्य यमुना के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों को पुनर्जीवित करना है। जल शक्ति मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि इन कार्यों से बाढ़ के पानी के प्रवाह में कोई बाधा नहीं आएगी।

यह हलफनामा 15 अक्टूबर, 2024 को अदालत में दायर किया गया है। इसके मुताबिक एनएमसीजी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्रों पर हो रहे निर्माण के संबंध में प्रतिक्रिया मांगी है।

ये निर्माण 'यमुना बाढ़ क्षेत्र परियोजना की बहाली और कायाकल्प' का हिस्सा हैं और इसके तहत कंक्रीट के बने घाट, कंक्रीट से बने बड़े बैठने के स्थान और डीडीए द्वारा निर्मित एक कैफे जैसी स्थाई संरचनाएं शामिल हैं।

सूर घाट की योजना में 50 फीसदी क्षेत्र से कंक्रीट को हटाया जाना शामिल है, जो एनएमसीजी द्वारा गठित टीम की सिफारिशों के अनुरूप है। वहीं बांससेरा में, डीडीए को एनएमसीजी की सिफारिश के अनुसार कंक्रीट से बनी सड़कों को जल्द से जल्द तोड़ने के लिए पीडब्ल्यूडी के साथ काम करना चाहिए।

मिलेनियम बस डिपो में, डीडीए नदी से लोगों का जुड़ाव मजबूत करने के लिए एक प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और इसमें तेजी लाने की जरूरत है। उन्हें इन क्षेत्रों के लिए व्यापक रूप से स्वीकृत बहाली योजना विकसित करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के बारे में भी सोचना चाहिए। सिग्नेचर ब्रिज के पास कास्टिंग यार्ड के संबंध में, डीडीए ने पहले ही बाढ़ क्षेत्र से बड़ी मात्रा में निर्माण संबंधी कचरे को हटा दिया है।

असिता घाट के बारे में, डीडीए का कहना है कि पेवर्स पानी को अंदर जाने देते हैं और लोगों को बाढ़ क्षेत्र के इस हिस्से तक सुरक्षित रूप से पहुंचने में मदद करते हैं। यह क्षेत्र आसिता के पूरे 90 हेक्टेयर का एक छोटा सा महज 0.002 फीसदी हिस्सा है। एनएमसीजी का मानना ​​है कि यह छोटा क्षेत्र बाढ़ क्षेत्र में पानी एकत्र करने के तरीके को प्रभावित नहीं करेगा।

गंगा में सीवेज छोड़ने के लिए जिम्मेवार अधिकारियों पर लगाया गया है जुर्माना: उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

उत्तर प्रदेश सरकार गंगा और उसकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्तर प्रदेश में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव की ओर से एनजीटी में पेश रिपोर्ट के मुताबिक सीवेज को रोकने और मोड़ने, पाइपलाइन बिछाने और समय पर सीवेज उपचार संयंत्र स्थापित करने के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा किए गए कार्यों की बारीकी से निगरानी की जा रही है।

यह रिपोर्ट 14 अक्टूबर 2024 को कोर्ट में सबमिट की गई है।

वहां सीवेज उपचार संयंत्रों (एसटीपी) और सामान्य अपशिष्ट उपचार संयंत्रों (सीईटीपी) से संबंधित परियोजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए कौन जिम्मेदार है, यह निर्धारित करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने एक समिति का गठन किया है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने जानकारी दी है कि पर्याप्त सीवेज उपचार सुविधाएं स्थापित न करने और आंशिक रूप से टैप किए गए या अप्रयुक्त नालों के माध्यम से गंगा में सीवेज को छोड़ने के लिए जिम्मेवार अधिकारियों पर पर्यावरणीय जुर्माना लगाया गया है।

10 अक्टूबर, 2024 को लिखे एक पत्र में, वाराणसी नगर निगम में जल कल विभाग के महाप्रबंधक ने बताया है कि सीवर कनेक्शन की आवश्यकता वाले 414,809 घरों में से, 156,300 घरों को जोड़ा गया है, जबकि शेष 258,509 मकानों को इससे जोड़ने का काम चल रहा है।

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