कोसी नदी की धारा में हो रहे बदलाव के लिए जिम्मेवार कौन, स्टडी में खुलासा

दोनों ओर तटबंध बनने के बाद कोसी नदी ज्यादा अस्थिर हो गई थी...
2008 की भयानक बाढ़ ने कोसी नदी को अपने पुराने रास्ते को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इस वजह से 30 लाख लोग विस्थापित हुए और 250 से अधिक लोगों की मौत हुई। फाइल फोटो: अर्णव प्रातीम दत्ता
2008 की भयानक बाढ़ ने कोसी नदी को अपने पुराने रास्ते को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इस वजह से 30 लाख लोग विस्थापित हुए और 250 से अधिक लोगों की मौत हुई। फाइल फोटो: अर्णव प्रातीम दत्ता
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एक नई स्टडी के अनुसार, उष्णकटिबंधीय और रेगिस्तानी क्षेत्रों में बहने वाली नदियों के दिशा बदलने की अधिक संभावना होती है। इस स्टडी में कहा गया है कि ये नदियां आसपास के इलाकों को बाढ़ की चपेट में ले लेती हैं क्योंकि वे एक नए मार्ग के लिए अपना पुराना रास्ता छोड़ देती हैं। 2008 की भयानक बाढ़ ने कोसी नदी को अपने पुराने रास्ते को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया था। इस वजह से 30 लाख लोग विस्थापित हुए और 250 से अधिक लोगों की मौत हुई।

साइंस जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने कहा कि इस स्टडी के निष्कर्ष यह अनुमान लगाने में मदद कर सकते हैं कि ऐसी घटनाओं - जिन्हें एवल्शन कहा जाता है – के कहां होने की संभावना है और जलवायु परिवर्तन कैसे इसके विशिष्ट स्थानों को बदल सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसी दुर्घटनाएं (मार्ग बदलने की) दुर्लभ हैं, जो एक दशक या सदी में केवल एक बार या उससे भी कम होती हैं।

बार-बार होने वाली चरम मौसम की घटनाओं और समुद्र स्तर में वृद्धि के निरंतर प्रभाव की तुलना में मार्ग बदलने की घटनाएं कम होती है। फिर भी उनके विनाशकारी प्रभावों के बावजूद, इस पर कम चर्चा की जाती है। ऑस्टिन में टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पाओला पासलाक्वा और एंड्रयू जे मूडी ने साइंस जर्नल में संबंधित लेख में ये बातें लिखी है। ये लोग इस स्टडी में शामिल नहीं थे।

अमेरिका के शोधकर्ताओं ने 1973-2020 के बीच के सेटेलाईट इमेज और ऐतिहासिक मानचित्रों के माध्यम से दुनिया भर में 113 एवल्शन का दस्तावेजीकरण किया है।

सैटेलाइट डेटा ने टीम को यह पता लगाने में मदद की कि नदियों ने अपना रास्ता कहां बदला है। अध्ययन में बताया गया है कि 33 घटनाओं में, नदियों ने पहाड़ों के आधार क्षेत्र में अपना मार्ग बदला, जब वे घाटियों या खुले समुद्रों में उतरा रही थी। कोसी नदी इसी श्रेणी में आती है। अन्य दो श्रेणियों में डेल्टा क्षेत्रों में ये परिवर्तन होते है। एक बदलाव बैकवाटर ज़ोन में होता है, जहां समुन्द्र की निचली धारा के प्रभाव के कारण नदी अलग तरह से बहती है।

उन्होंने दुनिया के कुछ सबसे बड़े जलमार्गों जैसे ओरिनोको, येलो, नील और मिसिसिपी नदियों के साथ कम ढलान वाले डेल्टा पर होने वाले 50 ऐसे उदाहरणों का दस्तावेजीकरण किया। अध्ययन में कहा गया है कि अंतिम श्रेणी, जो शेष 30 घटनाओं का कारण है, अत्यधिक तलछट भार वाली नदियों में होती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर में अर्थ साइंस विभाग के प्रोफेसर राजीव सिन्हा ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि तीनों श्रेणियों के बीच एक समानता है और वह है तलछट। वह इस अध्ययन में शामिल नहीं थे।

विशेषज्ञों के अनुसार, तलछट नदी के तल को भरने के लिए जानी जाती है, जिससे नदियों को बाढ़ के दौरान नए चैनलों की तलाश करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। स्टडी में भविष्यवाणी की गई है कि जलवायु परिवर्तन, जहां नदियां डेल्टा क्षेत्रों में गिरती हैं, वहाँ स्थिति बदला सकती है। उदाहरण के लिए, समुद्र का बढ़ता स्तर बैकवाटर ज़ोन में अंतर्देशीय क्षेत्र में मार्ग बदलने की घटनाओं को बढ़ा सकता है।

सिन्हा ने कहा कि विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों का अनुकरण करने वाले मॉडल के अनुसार इसकी पुष्टि की जानी चाहिए। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सांता बारबरा और स्टडी के सह-लेखक वामसी गंटी ने एक बयान में कहा, "दुनिया भर में लगभग 330 मिलियन लोग नदी के डेल्टा पर रहते हैं और बहुत सारे लोग नदी के मुहाने पर रहते हैं।" इसलिए, उन्होंने कहा कि यह समझना आवश्यक है कि जलवायु परिवर्तन और मानवजनित हस्तक्षेप के जवाब में नदी की गतिशीलता कैसे बदलेगी।

कोसी नदी केस स्टडी

सिन्हा ने कहा कि स्टडी ने दुनिया भर के अलग-अलग स्थानों से डेटा संकलित किया है। लेकिन नकारात्मक पक्ष यह है कि इसने पूरी तस्वीर नहीं खींची है। उदाहरण के लिए, स्टडी ने तटबंधों की भूमिका को नहीं देखा है। उन्होंने कहा कि बाढ़ से बचाने के लिए नदियों के किनारे बनाए गए तटबंध, नदियों को मार्ग बदलने के लिए प्रेरित करती है।

सिन्हा ने बताया कि कोसी अपने साथ हिमालय से बहुत अधिक तलछट लाती हैं। 1950 के दशक में नदी के दोनों ओर तटबंध बनाए जाने के बाद से ही यह बहुत अधिक अस्थिर हो गई।  उनके अनुसार कोसी नदी में उफान (मार्ग में बदलाव) स्वाभाविक रूप से नहीं हो रहा है। तटबंध से पहले, नदी 200 किलोमीटर के क्षेत्र में तलछट छोड़ सकती थी। अब इसे घटाकर 10 किमी कर दिया गया है। तलछट का प्रवाह नहीं बदला है, लेकिन इसके प्रवाह के लिए उपलब्ध क्षेत्र कम हो गया है।

पासलाक्वा और मूडी ने कहा कि समुदायों और उनकी आजीविका की रक्षा के लिए विभिन्न इंजीनियरिंग हस्तक्षेप सदियों से मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, तटबंध जैसे अस्थायी समाधान मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह के अस्थायी समाधान सुरक्षा की झूठी भावना बढाते हैं और प्राकृतिक तलछट फैलाव को सीमित करके सिस्टम में गिरावट को भी बढ़ाते हैं।

सिन्हा ने कहा कि यह नदी के लिए अतिरिक्त चैनल बनाने और प्रवाह के एक हिस्से को मोड़ने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि यह पानी के प्रवाह और तलछट को चैनलों में वितरित करता है, बाढ़ और मार्ग बदलने की प्रक्रिया को दूर करता है।

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