क्यों गया-राजगीर को 28 सौ करोड़ का गंगाजल पिलाना चाहती है बिहार सरकार

बिहार सरकार पाइप के जरिए 190 किलोमीटर दूर से गंगा का पानी लाना चाहती है, लेकिन इसका विरोध हो रहा है
गंगा नदी में हाथीदह-मरांची के पास इसी जगह यह परियोजना शुरू होने वाली है। फोटो: पुष्य मित्र
गंगा नदी में हाथीदह-मरांची के पास इसी जगह यह परियोजना शुरू होने वाली है। फोटो: पुष्य मित्र
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बिहार के गया और नालंदा जिले के जलसंकट के समाधान के लिए बिहार सरकार पाइपलाइन से गंगा नदी का पानी मोकामा के मराची के पास से राजगीर होते हुए गया तक लाना चाहती है। इसके पहले चरण का खर्च 2836 करोड़ रुपए बताया जा रहा है। इस योजना को कैबिनेट की मंजूरी और पथनिर्माण विभाग की स्वीकृति मिल चुकी है और बहुत जल्द इस पर काम शुरू होने वाला है। मगर जहां विशेषज्ञ इस योजना को खर्चीला और अवैज्ञानिक बता रहे हैं, वहीं मराची के लोग उनके यहां से पानी को ले जाने का विरोध कर रहे हैं।

क्या है योजना

जल संकट से प्रभावित बिहार के गया और नालंदा जिले को गंगा नदी का पानी उपलब्ध कराने की यह योजना पिछले साल के दिसंबर महीने में बिहार के कैबिनेट से पास हुई थी, इस वर्ष फरवरी माह के तीसरे सप्ताह में इसे राज्य के पथ निर्माण विभाग की स्वीकृति भी मिल गयी। इस योजना के तहत पटना जिले के मोकामा के पास मराची के निकट से गंगा नदी का पानी सरमेरा, बरबीघा होते हुए गिरियक ले जाया जाएगा और वहां से राजगीर के घोड़ाकटोरा झील में पानी को गिराया जाएगा। फिर वहां से पानी को गया जिले के फल्गू नदी तक ले जाया जायेगा। इसके लिए सड़क के किनारे 190 किमी लंबी पाइपलाइन बिछायी जाएगी। चूंकि गंगा नदी की सतह नीची है और राजगीर पहाड़ी इलाका है, इसलिए पानी खुद बहाव के साथ नहीं पहुंचेगा, इसके लिए मोटर पंप लगाए जाएंगे। 

महंगी और अवैज्ञानिक परियोजना

नालंदा के एक शोधार्थी मनीष कुमार ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख कर कहा है कि यह योजना काफी खर्चीली है। मोटर पंप के परिचालन  की वजह से इसके संचालन में भी लगातार खर्च होगा। इसके बदले अगर सोन नदी का पानी गया को उपलब्ध कराया जाए तो वह काम बहुत कम खर्च में हो सकता है। वे कहते हैं, सोन नदी की पूर्वी नहर का किनारा गया शहर से सिर्फ 15 किमी दूर है। गया से 40 किमी दूर गोह में भी सोन नहर की शाखा है। इसे आगे बढ़ाकर सोन का पानी गया तक लाया जा सकता है। इसमें खर्च बहुत कम होगा और पानी गया तक लाने के लिए बिजली वाला पंप भी नहीं चलाना पड़ेगा। वे मोरहर-सोरहर के बराज और पूर्वी सोन नहर से पानी लेने का भी सुझाव देते हैं। वे कहते हैं, इस परियोजना को शुरू करने से पहले इसके खर्च का आकलन और प्रभाव का आकलन जरूर करवाना चाहिए।

मोकामा के लोग कर रहे विरोध

मोकामा के मराची में जहां से गंगा का पानी राजगीर और गया जाना है, वहां के स्थानीय लोग इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। स्थानीय किसान प्रणव शेखर शाही कहते हैं कि खुद गंगा नदी में बारिश के मौसम को छोड़ कर किसी मौसम में जहाज के चलने लायक पानी भी नहीं होता। ऐसे में अगर यहां से पानी ले जाया गया तो यहां का जलस्तर नीचे गिरेगा और हमारे इलाके में खेती से लेकर कई तरह के संकट उत्पन्न होंगे। स्थानीय किसान नेता अरविंद कुमार सिंह कहते हैं, गया के फल्गू और पुनपुन नदी का पानी हर साल बहकर हमारे टाल इलाके में आता है। अगर सरकार चाहे तो उस पानी को चेक डैम बनाकर रोक सकती है। उससे गया और राजगीर दोनों का काम चल सकता है। उसे यहां से पानी ले जाने की क्या जरूरत।

गया में जल संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था मगध जल जमात के प्रमुख रवींद्र पाठक जी कहते हैं कि ऐसी योजना एक बार 2008 में भी चर्चा में आई थी, तब हमलोगों ने उसका विरोध किया था औऱ योजना वापस हो गयी थी। सोन नदी के जल को गया लाने की बात से वे भी सहमत दिखते हैं, वे कहते हैं कि हाथीदह तक पहुंचते-पहुंचते गंगा का जल इतना अशुद्ध हो जाता है कि अगर उसे लाया गया तो गया में प्रदूषण ही फैलेगा।

वे कहते हैं, फल्गू नदी रेत से भरी है, इसमें पानी डालने से पानी के अंदर रिस जाने की अधिक संभावना है। सबसे बड़ी बात यह कि बांग्ला देश के साथ फरक्का बराज के समझौते की वजह से भी गंगा का पानी कहीं और भेजना आसान नहीं होगा।

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