गंगा नदी में प्रदूषण का सिलसिला थम नहीं रहा है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में दाखिल एक अनुपालन रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के गंगा किनारे बसे जिलों में 225 नाले ऐसे हैं जो अब भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से जुड़ नहीं पाए हैं। साथ ही इन नालों के जरिए सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और सतही प्रवाह गंगा या उसकी सहायक नदियों में गिर रहा है, जिसके कारण न सिर्फ नदी में जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) लोड बढ़ रहा है बल्कि यह गंगा के लिए उठाए जा रहे कदमों पर भी सवालिया निशान लगाती है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने 2023 में मानसून के बाद गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीधे गिरने वाले 326 नालों की संयुक्त निगरानी की है। एनजीटी में दाखिल इस संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक महज 101 नाले ही विभिन्न सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से जुड़े हैं, जबकि अन्य नाले अब भी गंगा और उसकी सहायक नदियों में सीवेज और अन्य अपशिष्ट प्रवाह का प्रदूषण फैला रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक कुल 326 नालों में 188 नाले गंगा में और शेष 138 नाले सहायक नदियों में सीधा गिर रहे हैं।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के 13 सितंबर, 2024 के आदेश के बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 22 अक्तूबर, 2024 को पेश अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है।
जिलावार स्थिति
बरेली: 3 नाले रामगंगा नदी में गिरते हैं, जिनका जल प्रवाह 311.36 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) और जैविक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) लोड 18.8 टन प्रतिदिन (टीपीडी) है।
बुलंदशहर: 12 नाले काली पूर्व नदी में गिरते हैं, जिनका जल प्रवाह 129.06 एमएलडी और बीओडी लोड 20.7 टीपीडी है।
कानपुर: 22 नाले गंगा नदी में गिरते हैं, जिनका जल प्रवाह 113.29 एमएलडी और बीओडी लोड 12.79 टन प्रतिदिन है।
कानपुर : 9 नाले पांडु नदी में गिरते हैं, जिनका जल प्रवाह 99.72 एमएलडी और बीओडी लोड 9.17 टन प्रतिदिन है।
मेरठ: काली ईस्ट नदी में 4 नाले गिरते हैं, जिनका प्रवाह 911.66 एमएलडी और बीओडी लोड 241.25 टीपीडी है।
मुरादाबाद: रामगंगा और गगन नदी में 24 नाले गिरते हैं, जिनका प्रवाह 176.05.06 एमएलडी और बीओडी लोड 27.05 टीपीडी है
उत्तर प्रदेश में नदियां गंभीर रूप से अपशिष्ट के प्रवाह से प्रभावित हो रही हैं, जिसमें मेरठ की काली पूर्व सबसे अधिक प्रभावित नदियों में से है। उच्च बीओडी स्तर यह दर्शाता है कि नदियां न सिर्फ गंभीर तरीके से प्रदूषित हैं बल्कि इनके उपचार को लेकर उठाए जा रहे कदम प्रभावी नहीं हैं।