वडोदरा की बाढ़ : पर्यावरणकर्ताओं ने कहा बड़ी परियोजनाओं और नदी क्षेत्र में मलबे की डंपिंग ने बर्बाद की जलप्रणाली

केंद्र और राज्य सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन को पत्र भेजकर पर्यावरणकर्ताओं ने ठोस कार्रवाई की मांग उठाई
वड़ोदरा में जगह-जगह पानी भर गया है। फोटो साभार: X@Gujarat_weather
वड़ोदरा में जगह-जगह पानी भर गया है। फोटो साभार: X@Gujarat_weather
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जबरदस्त बाढ़ और जलभराव की मार झेल रहे गुजरात के वडोदरा जिले में एक दर्जन से अधिक पर्यावरण कर्ताओं और नागरिकों ने केंद्र के साथ राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन को पत्र लिखकर तत्काल ठोस कार्रवाई की मांग की है। पर्यावरणकर्ताओं का कहना है कि इस बाढ़ और जलभराव के लिए प्रबल तौर पर जिम्मेदार एक्सप्रेस वे और बुलेट ट्रेन जैसी बड़ी परियोजनाएं हैं जिनके कारण प्राकृतिक जल प्रणाली तहस-नहस हो गई है। कई बार चेताने के बावजूद विश्वामित्री नदी का न ही पुनरुद्धार कार्य किया गया और न ही सुप्रीम कोर्ट से लेकर ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों का पालन किया गया है।

गुजरात के वडोदरा में 26 अगस्त, 2024 के बाद से बाढ़ और जलभराव की स्थितियां बनी हुई हैं। भारी बारिश के कारण विश्वामित्री नदी उफान पर है। कई मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मगरमच्छ लोगों के घरों में घुस रहे हैं। पिछली बार भी ऐसी ही स्थिति से वडोदरा को जूझना पड़ा था। पर्यावरणकर्ताओं ने 5 सितंबर को यह पत्र ई-मेल के जरिए अधिकारियों को भेजा। इस पत्र को केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के सचिव, गुजरात सरकार के मुख्य सचिव, वड़ोदरा के मेयर और वडोदरा नगर निगम आदि को संबोधित किया गया है।

पर्यावरण कार्यकर्ता रोहित प्रजापति ने केंद्र और राज्य सरकार के साथ नगर निगम समेत स्थानीय प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजे गए पत्र में संंयुक्त रूप से कहा बीते वर्ष आई बाढ़ और जलभराव की घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा गया। साथ ही विश्वामित्री नदी के “पुनरुद्धार” के लिए गलत सलाह और गलत विचार वाले प्रयास किए गए जिससे बाढ़ और जलभराव का ठोस समाधान नहीं निकल सका है।

अधिकारियों को भेजे गए ठोस कार्रवाई की मांग वाले पत्र में कहा गया है कि वडोदरा में बाढ़ और जलभराव की घटनाओं की तीव्रता और सीमा पिछले 20 वर्षों में और भी खराब हो गई है। इस कारण से नियमित रूप से जलमग्न होने वाले क्षेत्रों के अलावा ‘सुरक्षित’ क्षेत्र भी जलमग्न हो गए हैं।

बड़ी परियोजनाएं जिम्मेदार

पर्यावरणकर्ताओं ने कहा कि बिना सूझ-बूझ के बन रही बड़ी परियोजनाओं ने इस विपदा को और बढ़ा दिया है। शहर में हर प्राकृतिक जल निकासी को अवरुद्ध कर दिया गया है और विकास की गलत सोच के कारण पानी के अवशोषण और वहन क्षमता को कम कर दिया गया है। खासतौर से इसमें वडोदरा-अहमदाबाद एक्सप्रेस हाईवे, आठ लेन वाला दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस हाईवे और बुलेट ट्रेन परियोजना जैसी बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शामिल हैं। इन परियोजनाओं के चलते आपस में जुड़ी प्राकृतिक नदी प्रणाली का प्रवाह बाधित और परिवर्तित हो गया है। इन परियोजनाओं के निर्माण के दौरान कोई एहितयाती उपाय नहीं किए गए हैं। इसकी पुष्टि उपग्रह चित्रों और अन्य द्वितीयक डेटा के माध्यम से हो सकती है।

जारी है डंपिंग

पत्र के मुताबिक पिछले एक साल में, वडोदरा नगर निगम द्वारा चुनिंदा घाटियों से मलबे की पहचान करने और उन्हें हटाने के लिए सतही और तदर्थ कार्रवाई की गई थी। फिर भी, नदी के आसपास के इलाकों में मलबे और अन्य कचरे का डंपिंग जारी है। यहां तक ​​कि राज्य और केंद्र के संबंधित अधिकारियों द्वारा विभिन्न न्यायालयों के आदेशों के साथ दिए गए स्पष्ट निर्देशों को भी सुविधाजनक रूप से अनदेखा किया जाता है, जिसका असल कारण वड़ोदरा नगर निगम को ही पता है।

न मैंपिंग, न ध्यान

इस बात पर पहले से ही सहमति है कि विश्वामित्री नदी प्रणाली की मैपिंग की जाएगी जिसके तहत खड्ड, तटवर्ती क्षेत्र, तालाब, कांस (चैनल), सहायक नदियां, आर्द्रभूमि, प्राकृतिक जलमार्ग की पहचान की जाएगी। साथ ही ठोस अपशिष्ट (मलबे सहित) डंपिंग और अतिक्रमण के सभी क्षेत्रों का स्थान और सीमा को भी देखा जाएगा। इसके अलावा सीवेज निपटान आदि को भी शामिल किया जाएगा ताकि नदी प्रणाली पर प्रकृति, मात्रा और प्रभावों का आकलन किया जा सके। यह मुद्दों को व्यापक रूप से हल करने के लिए व्यवस्थित कार्य करने के लिए महत्वपूर्ण है।

पत्र में कहा गया है कि इसके बावजूद वडोदरा नगर निगम (वीएमसी) ने 2017 से हमारे पत्रों और सिफारिशों पर ध्यान नहीं दिया है और मुद्दों को हल करने के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं किया है। वास्तव में, वीएमसी ने सभी अवैध गतिविधियों को अनुमति दी है और दे रहा है ताकि आपदाओं में वृद्धि हो सके। आगे के "विकास" के लिए भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए खड्डों और आर्द्रभूमि को व्यवस्थित रूप से नष्ट किया जा रहा है और मलबे और नगरपालिका के ठोस कचरे से भरा जा रहा है। इससे शहर के विभिन्न हिस्सों में पहले से मौजूद जलभराव और बाढ़ की समस्या और बढ़ जाएगी।

नदी की परिभाषा और पत्र में ठोस कार्रवाई की अपील

अधिकारियों को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि हम सभी को तथाकथित “बाढ़” और “जलभराव” की समस्या का असल समाधान करना चाहिए, इसके लक्षणों का नहीं बल्कि इसके मूल कारणों का इलाज करके। हालांकि, अधिकारियों के द्वारा इसे जानबूझकर अनदेखा किया जा रहा है।

रोहित प्रजापति के मामले में ही एनजीटी ने 25 मई, 2021 को अपने आदेश में कहा था कि "नदी में जलग्रहण क्षेत्र, बाढ़ के मैदान, सहायक नदियां, तालाब, नदी-तल और आसपास की घाटियां शामिल हैं, जो दोनों तरफ की मिट्टी और वनस्पति के साथ अतिरिक्त पानी को बनाए रखने, बाढ़ को रोकने और विभिन्न प्रजातियों के लिए आवास प्रदान करने के लिए नदी का प्राकृतिक तंत्र है। नदी असंख्य जीवों जैसे सूक्ष्म जीवों, पौधों और जानवरों को आश्रय देती है और उनके साथ परस्पर क्रिया करती है नदी अपने बेसिन और मुहाने पर फैली सहायक नदियों, बाढ़ के मैदानों और तालाबों का एक नेटवर्क भी है।”

इसलिए एनजीटी के इस आदेश को ध्यान में रखते हुए विश्वामित्री नदी के पुनरुद्धार के साथ जलग्रहण क्षेत्र का समुचित प्रबंध होना चाहिए। हाल ही में हुई और पिछली आपदाओं ने केवल यह साबित किया है कि यथास्थिति बनाए रखने से जमीनी स्तर पर स्थिति और खराब होगी। यह आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण है कि शहर और राज्य सरकार साल दर साल कोई समन्वित, पर्याप्त, सहभागी, सक्रिय और जवाबदेह पहल नहीं करते हैं!

पर्यावरणकर्ताओं ने पत्र के माध्यम से अधिकारियों से मांग की है कि वह उन सभी गतिविधियों को रोकें जिनसे बाढ़ और जल-जमाव जैसी स्थितियां बन रही हैं। इसके अलावा नदी, नालों, तालाबों और वेटलैंड से मलबे व कचरे को वैज्ञानिक तरीके से हटाने और अपशिष्ट प्रबंधन पर ठोस कार्ययोजना के साथ कार्रवाई करें।

साथ ही सर्वोच्च न्यायलय और एनजीटी के आदेशों का जमीनी स्तर पर पालन किया जाना चाहिए। खासतौर से “विश्वामित्री नदी कार्य योजना” के कार्यान्वयन के निर्देश को दोहराते हैं, जिसमें नदी बहाली योजना के अनुसार अनधिकृत संरचनाओं को हटाने, बाढ़ क्षेत्र के सीमांकन और संरक्षण और अन्य कार्य बिंदुओं के लिए कदम शामिल हैं।”

पर्यावरण कर्ताओं ने मांग की है कि कानूनी शक्तियों के साथ एक अर्ध-वैधानिक निकाय की स्थापना की जाए जिसमें सभी तरह के विषय विशेषज्ञ शामिल हों जो विकास पहलों का सक्रिय रूप से मार्गदर्शन और निगरानी करेंगे। इसके अलावा वडोदरा में एक पूरी तरह कार्यात्मक, प्रभावी और ज्ञानवान शहरी और पारिस्थितिक नियोजन विभाग की स्थापना की जाए जो पारिस्थितिकीविद, पर्यावरणविद और सिविल इंजीनियरों के साथ लैंडस्केप आर्किटेक्ट की मदद लेकर शहर के लिए बेहतर योजनाओं और विस्तृत डिजाइनों को सुनिश्चित करे।

पर्यावरणकर्ताओं ने मांग की है कि नदी को जलग्रहण क्षेत्र, बाढ़ के मैदानों, सहायक नदियों, तालाबों, नदी के तल, खड्डों और तत्काल तटवर्ती क्षेत्रों की सही कार्य योजनाएं बनाएं ताकि साल भर उनकी प्राकृतिक कार्यप्रणाली और निगरानी सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा  नवीनतम तकनीक और जानकारी का उपयोग करते हुए तकनीकी रूप से सही और सटीक भूमि सर्वेक्षण और डिजिटल उन्नयन मॉडल (डीईएम) तुरंत तैयार करें।

इसके अलावा  विश्वामित्री नदी के उद्गम से ही परिदृश्य और पारिस्थितिकी तंत्र के तरीकों का उपयोग करके शहर के लिए आपदा न्यूनीकरण योजनाएं तैयार करें। निर्माण मलबे और अन्य घरेलू कचरे के उपचार के लिए, जल्द से जल्द एक पर्याप्त, पूरी तरह कार्यात्मक रीसाइक्लिंग और अपसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करें।

प्राकृतिक जल इकाइयों की रक्षा और पुनर्स्थापना तथा नदी के ई-प्रवाह को बनाए रखते हुए उपलब्ध अत्यधिक जल का संचयन और प्रबंधन करने के लिए क्षेत्र के वृहद और सूक्ष्म स्तर के भूविज्ञान-जल विज्ञान के अनुसार उपयुक्त वर्षा जल संचयन प्रणालियों को लागू करने की मांग भी की गई है। अतीत और हाल की बाढ़ों की सैटेलाइट तस्वीरें और अन्य प्रासंगिक जानकारी और डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराने की मांग भी की गई है। ताकि कार्रवाइयों का मूल्यांकन करने, गलतियों को सुधारने और निगरानी के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सके।

पर्यावरणकर्ताओं ने वडोदरा की बाढ़ और जलभराव की स्थिति का ठोस समाधान करने के लिए समग्रता से कार्रवाई की मांग उठाई है।

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