महिपाल सिंह नेगी
उत्तराखंड के टिहरी बांध के रिम क्षेत्र (परिधि) पर भूधंसाव जारी है। यूं तो इस क्षेत्र में भू-धंसाव तो साल 2010 से हो रहा है, लेकिन बीते 2022 में भू-धंसाव का सिलसिला और तेज हो गया है। खास बात यह है कि जनवरी 2023 के आखिरी सप्ताह व फरवरी के पहले सप्ताह में सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने द्वारा किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट जोशीमठ की तरह अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
विशेषज्ञ समिति ने 30 व 31 जनवरी और एक फरवरी 2023 को कुल 14 गांवों का सर्वेक्षण किया था। पहले दो दिन भागीरथी घाटी और तीसरे दिन भिलंगना घाटी के गांव। इस दस सदस्यीय समिति में भू सर्वेक्षण भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई), वन विभाग, मृदा एवं जल संरक्षण विभाग, भूतत्व एवं खनिकर्म निदेशालय, भारतीय सर्वेक्षण विभाग, आईआईटी रुड़की, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, पुनर्वास निदेशक, टीएचडीसी और संबंधित क्षेत्र के विधायक को शामिल किया गया था।
दरअसल, टिहरी बांध का रिम क्षेत्र 150 किलोमीटर के आसपास है। बांध में पूर्ण जलभराव (एफआरएल) का स्तर 830 मीटर (समुद्र तल) और अधिकतम बाढ़ (एमएफएल) स्तर 835 मीटर है। बांध की कुल ऊंचाई 839.5 मीटर तक जाती है। इस तरह है 4.5 मीटर का फ्री बोल्ट है। फ्री बोल्ट अर्थात 835 मीटर से ऊपर की वह खाली जगह, जहां पानी नहीं भरा जाता, लेकिन अचानक बाढ़ आने या भारी भूस्खलन से झील में बढ़े पानी से बांध को सुरक्षा प्रदान करता है।
यूं समझ सकते हैं कि बांध की दीवार के ऊपर से पानी नहीं बहेगा। बांध में न्यूनतम जलभराव 740 मीटर रहता है। यानी कि 95 मीटर तक पानी का वार्षिक उतार-चढ़ाव निरंतर बना रहता है। हालांकि बांध की 17 साल की उम्र में अभी मात्र दो तीन बार ही जल स्तर 830 मीटर तक पहुंच पाया।
जल स्तर के इस उतार-चढ़ाव के कारण 835 मीटर से ऊपर करीब 1100 मीटर तक और जल उतार के दौरान 835 मीटर से नीचे भी कई स्थानों पर गंभीर भूधंसाव लगातार चल रहा है। हालांकि जीएसआई (भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग) ने बांध निर्माण के दौरान प्रारंभिक सर्वेक्षण में ऐसी आशंका प्रकट कर दी थी, लेकिन ऐसी रिपोर्ट काफी समय बाद सार्वजनिक हो पाई।
जीएसआई ने सबसे पहले 1989-90 के दौरान रिम क्षेत्र की स्थिरता का अध्ययन किया था। इसके बाद 2001-02 में काफी विस्तृत अध्ययन किया गया और रिम क्षेत्र को स्थिरता के आधार पर चार श्रेणियों में बांट दिया था। रिपोर्टस में अस्थिर और मध्यम आस्थिर क्षेत्रों को लगातार ऑब्जरवेशन (निगरानी) में रखने की सिफारिशें की गई थी।
2007 - 08 के दौरान जीएसआई ने फिर से गहन अध्ययन किया। तब जीएसआई की रिपोर्ट के आधार पर ही 2008 में भागीरथी घाटी में रिम क्षेत्र के तीन आंशिक प्रभावित गांव को पूर्ण प्रभावित का दर्जा घोषित किया गया। ये गांव थे - स्यांसू, नकोट और रोलाकोट। लेकिन खतरा यहीं तक नहीं रुका। 2010 में पहली बार बांध में जलस्तर 830 मीटर के आसपास पहुंचा, तब कई नए क्षेत्रों में भूधंसाव होने लगा। दर्जनभर गांव भू-धंसाव की चपेट में आ गए। पुनर्वास निदेशालय पर ग्रामीणों का लंबा आंदोलन चला।
आखिरकार जून 2013 की एक अधिसूचना में राज्य सरकार ने यह मान लिया था कि रिम क्षेत्र पर भूधंसाव हो रहा है। 14 जनवरी 2013 की उत्तराखंड शासन की अधिसूचना के अनुसार- "यह देखने में आया है कि टिहरी जलाशय की परिधि पर आर एल 835 मीटर से ऊपर स्थित कुछ ग्रामों में जलभराव के कारण भूस्खलन हुआ है तथा भविष्य में इससे अधिक स्थानों पर भूस्खलन होने की संभावना है । वर्ष 2010 में वर्षा ऋतु में भारी वर्षा के कारण टिहरी बांध के जलाशय का स्तर पूर्ण जलाशय स्तर से ऊपर पहुंच गया था, जिसके कारण टिहरी बांध जलाशय के चारों ओर कुछ स्थानों पर समपार्श्विक क्षति हुई है "
जनवरी 2013 में एक स्थाई विशेषज्ञ समिति के गठन और प्रभावितों के पुनर्वास हेतु संपार्श्विक क्षति ( कौलेटरल डैमेज) नीति भी तैयार की गई। इसमें 415 परिवारों को प्रभावित घोषित किया गया। तीन गांव को जमीन दिए जाने की बात मान ली गई, लेकिन अन्य गांव के लिए वर्ष 2021 में नीति में संशोधन कर दिया गया और अब प्रति परिवार एकमुश्त भुगतान 74.40 लाख रुपए और आवासीय भूखंड के साथ 60 हजार रुपए भवन निर्माण सहायता घोषित की गई। इन परिवारों के पुनर्वास की इन दिनों प्रक्रिया चल रही है।
नया घटनाक्रम 2022 के मॉनसून सीजन के दौरान घटा, जब कई और गांव से भी भूस्खलन की शिकायतें प्रशासन को मिलने लगी। इनमें चिन्यालीसौड़, जोकि टिहरी बांध से भागीरथी घाटी में रीवर बेड की करीब 40 किमी की दूरी पर बसा कस्बा है, के आसपास गंभीर भूधंसाव और भूकटाव देखा गया। पुराने गंगोत्री मार्ग से लेकर देवीसौड़ पुल तक जोगथ मोटर मार्ग इसकी चपेट में आए। यहां कुछ अस्थाई ट्रीटमेंट भी किया गया है। इसके अलावा सरोट, गड़ोली, सौड़ व सिल्ला उपू, गोजमेर, बल्डोगी आदि गांव के कुछ हिस्सों में भूधंसाव की शिकायतें मिली। सरोट गांव के निवासी महावीर सिंह कैंतुरा ने बताया कि गांव वाले लगातार प्रशासन को अवगत करा रहे हैं।
भिलंगना घाटी के पिपोला खास, उठड़, नंद गांव, पिलखी और नारगढ़ आदि गांव में भी विशेषज्ञ टीम एक फरवरी को पहुंची है। भटकंडा, गौजियाना, खांड व कैलबागी आदि गांव में भी भू धंसाव की बात सामने आई है।
क्या हो सकते हैं कारण?
रिम क्षेत्र के भूधंसाव पर लगातार सरकार और प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराने वाले जिला बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष, उच्च व सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिकाकर्ता वकील शांति प्रसाद भट्ट का कहना है कि लगभग चार माह बाद भी विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की है, यह समझ से परे है। लेकिन अगर पुरानी रिपोर्ट देखें तो जीएसआई ने वर्ष 2001 - 02 में जल भराव शुरू होने से पहले ही रिम क्षेत्र की स्थिरता पर एक रिपोर्ट तैयार की थी। जिसमें कहा था कि सैचुरेशन या भारी जलभराव के कारण अस्थिरता की स्थितियां अत्यंत खतरनाक तब हो सकती हैं, जब तनाव वाली दरारों में बढ़ रहा पानी का दबाव जोड़ो और भूस्खलन की सतहों को एक साथ खोल देगा। जब झील में पानी घटेगा तो पानी की निकासी से एक ऋणात्मक दबाव पैदा होगा। जैसे ही पानी के भार का सहारा हटाया जाएगा और ढलानौं के भीतर वाला जल दबाव घटेगा, इससे भूस्खलन की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। वास्तविक तनाव बढ़ेगा इससे अस्थिरता और भी बढ़ जाएगी। अस्थिर ढलानों पर यदि ओवरबर्डन की गहराई 5 मीटर से ज्यादा हो और जमीन का ढलान 24 डिग्री से ज्यादा तीखा हो, तब भूस्खलन की संभावनाएं बढ़ेंगी। दरअसल झील में पानी के उतार-चढ़ाव से बिल्कुल यही परिस्थितियां उत्पन्न हो रही हैं। जल भराव के बाद की कुछ और रिपोर्ट्स में भी यह बातें स्पष्ट रूप से रेखांकित हो चुकी हैं।