मध्य प्रदेश के मंडला जिले में प्रस्तावित बसनिया बांध के लाभ- हानि के आंकड़ों पर यदि एक नजर डालें तो यह इस बांध से प्रभाविततों को हतप्रभ करने वाला साबित हो रहा है। बसनिया (ओढारी) बांध विरोधी संघर्ष समिति (मंडला- डिंडोरी) के सदस्यों का कहना है कि मध्यप्रदेश के नर्मदा घाटी में 29 बांधों की श्रृंखला में बसनिया (ओढारी) बांध भी शामिल है। ध्यान रहे कि इस बांध से 8780 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई और 100 मेगावाट जल विधुत उत्पादन होगा। इस बांध से 6,343 हेक्टेयर जमीन डूब में आएगा, जिसमें 2443 हेक्टेयर निजी, 1793 हेक्टेयर शासकीय और 2107 हेक्टेयर वन भूमि डूब में आने के कारण 2,737 परिवार विस्थापित एवं प्रभावित होंगे।
समिति का कहना है कि देश के विभिन्न बांधों के अघ्ययन से पता चलता है कि जितने रकबा में सिंचाई का दावा किया जाता है उसमें से मात्र 60 से 70 प्रतिशत रकबा ही सिंचित हो पाया है। इस आधार पर बसनिया बांध से निर्धारित 8,780 हेक्टेयर रकबा का अधिकतम 70 प्रतिशत के हिसाब से आकलन करने पर मात्र 6,146 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होगा जबकि 6343 हेक्टेयर जमीन डूब में आ रहा है। इसका अर्थ है कि सिंचाई के रकबा से अधिक 197 हेक्टेयर भूमि डूब में आ रहा है।
समिति का कहना है कि मिट्टी को बनने में लाखों वर्ष लगे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मंडला और डिंडोरी जिले के किसानों के खेतों में पानी पहुंचाना अति आवश्यक है। इसके लिए हमें बांध के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष रजनिश वैशय ने मिडिया को बताया था कि अब नर्मदा घाटी में बांध नहीं बना कर नर्मदा से पानी लिफ्ट कर खेतों में पानी पहुंचाया जाएगा। दूसरी ओर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 21 नवम्बर 2023 को नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को लिखे गए पत्र में बताया गया है कि 100 मेगावाट में से मात्र 35 करोड़ यूनिट वार्षिक विद्युत उत्पादन होगा। इस 35 करोड़ यूनिट को अधिकतम 5 रुपये प्रति युनिट में बिक्री किया जाता है तो 175 करोड़ रुपये की आमदनी होगी। उत्पादन स्थल से उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाने के दौरान न्यूनतम 15 प्रतिशत बिजली की हानि होती है। अगर 15 प्रतिशत हानि को जोड़ा जाए तो आमदनी 148.75 करोड़ रुपये वार्षिक रह जाएगी। इस परियोजना की लागत 2,884 करोड़ रुपये है। अगर इस पूंजी को किसी भी बैंकों से न्यूनतम 8 प्रतिशत ब्याज की दर से ऋण लिया जाता है तो 230 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष ब्याज भुगतान करना होगा। इस परियोजना से एक मेगावाट बिजली उत्पादन का खर्च 28.84 करोड़ रुपये खर्च आ रहा है जबकि सोलर प्लांट से लगभग 4.5 करोड़ रुपये आएगा। बिजली उत्पादन से प्रतिवर्ष मिलने वाला आमदनी और ब्याज भुगतान का अंतर काफी बड़ा है। जबकि बांध बनने के कारण खेती, जंगल, जैवविविधता और मवेशी से होने वाले आमदनी की हानि का आंकलन शामिल नहीं है।
मध्यप्रदेश सरकार ने 2020 में नर्मदा बेसिन प्रोजेक्ट कम्पनी बना कर घाटी की विभिन्न परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पावर फाइनेंस कार्पोरेशन से 20 हजार करोड़ रुपये ऋण लेने का अनुबंध किया था। बसनिया बांध में लगने वाला 2884 करोड़ रुपये मध्यप्रदेश की जनता को टैक्स के रूप में भुगतना होगा।
आश्चर्य है कि बसनिया बांध निर्माण के कारण नर्मदा नदी, नाला के जलग्रहण क्षेत्र में उसके वहन क्षमता और निरंतरता का संचयी प्रभाव (कम्यूलेटिव इम्पेक्ट) का अध्ययन नहीं किया गया है। दूसरी ओर वन भूमि का परिवर्तन, जैव विविधता हानि के कारण जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले असर का पर्यावरणीय दृष्टि से लाभ हानि का विश्लेषण भी नहीं हुआ है और परियोजना के कारण जलीय और स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाला असर का भी अध्ययन नहीं हुआ है। जिसके कारण अभी बसनिया बांध को पर्यावरणीय और वनभूमि परिवर्तन की मंजूरी नहीं मिली है। हालांकि राज्य के नौकरशाहों ने देश के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखकर उनसे बांधों का शिलान्यास करवा लिया है।