अवली वर्मा
लॉकडाउन के दो माह के दौरान फ्लाई ऐश (कोयला आधिरित ताप विद्युत् संयंत्र से निकली राख) से भरे पांच जहाज पश्चिम बंगाल की नदियों में डूब गए। नदियों के जिन हिस्सों में ये हादसे हुए वे इंडो- बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट, राष्ट्रीय जलमार्ग-1 और राष्ट्रीय जलमार्ग-97 के भाग हैं। जहरीली फ्लाई ऐश से नदियों में प्रदुषण बढ़ेगा और नदी की परिस्थितिकी को भी क्षति पहुंचेगी । इन हादसों से मालूम पड़ता है कि अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए सख्त पर्यावरणीय निगरानी कितनी आवश्यक है।
मार्च 2020 में केंद्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (एनवायरमेंट इंपेक्ट ऐससमेंट– ईआईए) अधिसूचना 2006 में संशोधन के लिए एक ड्राफ्ट वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इस ड्राफ्ट में अंतर्देशीय जलमार्गों को पहली बार पर्यावरण अधिसूचना में शामिल किया गया है।
ध्यान देने की बात यह है कि अंतर्देशीय जलमार्गो को ईआईए प्रारूप अधिसूचना 2020 की अनुसूची के प्रवर्ग ख 2 में शामिल किया गया है। मतलब अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए बिना प्रभावों का मूल्यांकन किए केवल पर्यावरणीय अनुज्ञा (एनवायरमेंटल परमिशन –ईपी) की जरुरत होगी और यह ईपी बिना किसी अर्थपूर्ण आंकलन या समीक्षा के 15 दिनों में प्रदान कर दी जाएगी। इनके लिए विस्तृत पर्यावरणीय प्रभावों (ईआईए) का आकलन नहीं किया जाएगा और ना ही कोई जन सुनवाई होगी। केवल पर्यावरणीय प्रबंधन योजना (ईएमपी) के आधार पर ही पर्यावरणीय अनुज्ञा (ईपी) दे दी जाएगी।
ईआईए प्रारूप अधिसूचना 2020 में अंतर्देशीय जलमार्गों को प्रवर्ग ख 2 में शामिल शायद यह सोचकर किया गया है कि जलमार्गों के बहुत कम विपरीत पर्यावरणीय प्रभाव होते हैं। यह सच्चाई से कोसों दूर है, क्योंकि अंतर्देशीय जलमार्गों का निर्माण, संधारण और संचालन भू-आकृति, पर्यावास, पारिस्थितिकी, नदियों और अन्य जलस्रोतों के जीव-जंतुओं और इन जलस्रोतों पर निर्भर समुदायों –खास कर के मच्छुआरा समाज पर बड़े विपरीत प्रभाव डालते हैं।
जलमार्ग के बड़े पर्यावरणीय एवं सामाजिक प्रभाव
राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के लागू होने के बाद कई नदियों, मुहानों, और नहरों में 111 राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किये गए हैं। नदियों के कई हिस्से जिनमें जलमार्ग प्रस्तावित है वे पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील और संरक्षित क्षेत्र हैं। कोयला, फ्लाई एश, रसायन, उर्वरक, सीमेंट जैसे खतरनाक पदार्थ थोक में ढोने वाली बड़ी नौकाओं का पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में परिवहन इन पदार्थों के रिसने से प्रदूषण फैलाएगा तथा इससे दुर्घटनाएं बढ़ेंगी। साथ ही बंदरगाह इत्यादि से सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ेंगे ।
नदी में गंदलेपन बढ़ने, शोर में वृद्धि होने और विशाल पोतो के चलने से मछलियों के पनपने पर नुकसान होगा। स्थानीय मच्छुआरों की आजीविका को क्षति पहुचेगी। फरवरी 2020 में पश्चिम बंगाल के मछुआरों से भेंट में मैंने जाना कि विशाल पोत मछली पकड़ने के जालों को भी क्षति पहुचाते हैं। उनके मुताबिक ड्रेजिंग से निकला हुआ मलबा भी नदी में जलमार्ग प्रणाली के परे नदी में ही डाला जाता है जिससे मछली पकड़ने में मछुआरों को दिक्कत झेलनी पड़ती है ।
कमजोर नियम
चूंकि नदियों में प्राकृतिक रूप से बड़े जहाजों के चलने लायक पर्याप्त गहराई और चौड़ाई नहीं होती है, जलमार्गों के लिए नदी तल में ड्रेजिंग (तलकर्षण) की जरुरत होगी। ड्रेजिंग के कारण नदी तल में पहले से दबे हुए जहरीले प्रदूषक निकल कर पानी में मिल सकते हैं तथा शोर और गंदलेपन में वृद्धि हो सकती है। ध्यान देने की बात है की जलमार्गों के विकास के साथ साथ जलमार्गो पर नौपरिवहन जारी रखने के लिए भी नदियों में लगातार ड्रेजिंग जारी रखनी पड़ेगी।
विशाल पोतों को नदी पर चलाने के उद्देश्य से आम तौर पर पहली बार होने वाली ड्रेजिंग को कैपिटल ड्रेजिंग (उत्कृष्ट तलकर्षण) कहते हैं, और नौवहन के लिए समुचित सुरक्षित गहराई बनाये रखने के लिए लगातार होने वाली ड्रेजिंग मेंटेनेंस ड्रेजिंग (अनुरक्षण तल्कर्षण) कहलाती है। ये दोनों ही प्रकार की ड्रेजिंग नदी की भौतिक आकृति एवं परिस्थितिकी के लिए हानिकारक मानी जाती है।
यही कारण है कि इन दोनों तरह की ड्रेजिंग के लिए ईआईए अधिसूचना 2006 के अतर्गत पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी अनिवार्य थी। यही वजह है कि अंतर्देशीय जलमार्गों के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 की अनुसूची में न होने के बावजूद, पर्यावरण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय जलमार्ग क्रमांक-4, 5, 27, 68 और 111, 53 को, पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया में शामिल किया गया। इन जलमार्ग परियोजनाओं को प्रवर्ग 'क' में रखा गया और इनमें से कई मामलों में सार्वजनिक जनसुनवाई आवश्यक थी।
परन्तु अब पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 के प्रारूप में ड्रेजिंग से सम्बंधित दो प्रावधानों को ऐसे परिवर्तित किया गया है कि अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए प्रस्तावित ड्रेजिंग पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया के परे रहे।
पहला, कैपिटल ड्रेजिंग की परिभाषा में नदी में होने वाली ड्रेजिंग शामिल नहीं की गयी है, केवल समुद्र में होने वाली ड्रेजिंग की बात कही गयी है। यह बहुत आपत्तिजनक प्रावधान है क्योंकि कई अंतर्देशीय जलमार्गों के लिए कैपिटल ड्रेजिंग प्रस्तावित है। प्रारूप में कैपिटल ड्रेजिंग की परिभाषा मूल रूप से भी अपरिपूर्ण है।
दूसरा, मेंटेनेंस या रखरखाव ड्रेजिंग को इस प्रारूप में पर्यावरणीय मंजूरी प्रक्रिया से पूरी तरह से छूट दी गयी है । पहले यह छूट तब ही मान्य थी जब मेंटेनेंस ड्रेजिंग के प्रभावों का निपटारा, कैपिटल ड्रेजिंग की मूल्यांकन प्रक्रिया के साथ किया गया हो।
निष्कर्ष
चूंकि अंतर्देशीय जलमार्गो की परियोजनाएं अपने किस्म की पहली परियोजनाएं हैं, इसीलिए नदियों पर प्रस्तावित की गई इन सारी परियोजनाओं के लिए बेसलाइन अध्ययन सहित पूरी तरह से पर्यावरणीय प्रभावों के आकलन की विशेष जरुरत है। इसलिए जरुरी है कि ईआईए अधिसूचना 2020 में अंतर्देशीय जलमार्ग सम्बंधित सारी परियोजनाओं को प्रवर्ग–क में शामिल किया जाए, ताकि इनके पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों का विस्तृत मूल्यांकन हो सके।
जलमार्गों के सामाजिक और पर्यावरणीय विपरीत प्रभावितों के संदर्भ में इनके विकास और संचालन को समावेशी और टिकाऊ बनाने के लिए व्यापक जनविमर्श और जन सुनवाई अनिवार्य होना चाहिए। इसके अलावा केपिटल ड्रेजिंग की परिभाषा में नदियों में होने वाली ड्रेजिंग जोड़ना और रखरखाव ड्रेजिंग से सम्बंधित उपरोक्त प्रावधानों से मिली छूट को वापस लेना जरुरी है।
मंथन अध्ययन केंद्र ने जलमार्ग सम्बंधित मुद्दों को उपरोक्त प्रस्तावित अधिसूचना में सुधारने के लिए पर्यावरण मंत्रालय को विस्तृत तर्कों के साथ टिप्पणियां प्रस्तुत की हैं। इन्हे विस्तार में पढ़ने के लिए, यहाँ देखें ।
अवली वर्मा मंथन अध्ययन केंद्र के साथ शोधकर्ता हैं । मंथन पानी और ऊर्जा सम्बंधित मुद्दों पर न्यायसंगत और सतत दृष्टि से शोध करता है ।