अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ताजमहल दौरे को देखते हुए उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग ने लगभग 500 क्यूसेक पानी यमुना में छोड़ दिया। यह पानी बुलंदशहर में गंग नहर से यहां के लिए छोड़ा गया। इसके चलते जहां ताज के पीछे बह रही यमुना में गंदी बदबू कम हो गई, वहीं लोगों ने पहली बार इतना पानी यमुना में बहते हुए देखा।
यहां यह उल्लेखनीय है कि दिल्ली के 15 नाले और आगरा के बीच 37 नाले यमुना में गिरते हैं, जिसके चलते यमुना में औद्योगिक और घरेलू कचरा बहता रहता है। जिसकारण पानी का गुणवत्ता सूचकांक (डब्ल्यूक्यूआई) लगातार गिर रहा है। इसके चलते नदी में पानी का बहाव नाम मात्र का रह गया है।
इसे देखते हुए यमुना में गंगा का पानी छोड़ा गया है। जिसके चलते ताज के पास यमुना में इतना पानी पहले कभी नहीं देखा गया। यमुना जिये अभियान के संयोजक मनोज मिश्र भी यह बात मानते हैं कि मिश्र कहते हैं कि सरकार ने यह काफी सतही कोशिश है, जिससे यमुना की अच्छी तस्वीर दिखाई दे। इससे तुरंत यमुना साफ हो जाएगी और पानी की गुणवत्ता भी बढ़ जाएगी, लेकिन कुछ समय के लिए ऐसा होगा। लेकिन इस कदम का कोई दीर्घकालिक असर नहीं होगा। अगर सरकार यमुना नदी में न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह बनाए रखने के लिए ठोस कार्रवाई करती है तो यह अधिक सार्थक होगा।
इस दिशा में पहला कदम नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने रखा था। 13 जनवरी 2015 के अपने फैसले में, एनजीटी ने कहा था कि हरियाणा के हथनीकुंड और दिल्ली के ओखला बैराज पर यमुना में कम से कम 10 क्यूमेक्स (353 क्यूसेक) पानी का बहाव रखा जाए। ताकि यमुना में आगरा तक ताजा पानी का बहाव हो सके।
हालांकि, यमुना नदी के कायाकल्प के लिए यमुना निगरानी समिति द्वारा 2018 में प्रस्तुत कार्य योजना में कहा गया कि कुछ महीने ऐसे हैं, जब केवल 10 क्यूमेक्स पानी बहाने से कुछ नहीं होगा, क्योंकि हथिनीकुंड बैराज से ही यह पानी भाप बन कर उड़ जाएगा। ऐसे में, यह पानी आगरा तक नहीं पहुंच पाएगा। रिपोर्ट में इस तथ्य पर भी जोर दिया गया है कि यमुना नदी को जीवित रखने के लिए उसमें न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह को बरकरार रखना बहुत जरूरी है।
इस पर विचार करते हुए जनवरी 2019 में सरकार ने यमुना नदी के न्यूनतम आवश्यक पर्यावरणीय प्रवाह का आकलन करने के लिए एक व्यापक अध्ययन किया। दिसंबर 2019 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने पल्ला से ओखला के बीच अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट प्रस्तुत की।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पल्ला के पास कम से कम 38 क्यूमेक्स पानी का बहाव होना चाहिए। हालांकि अलग-अलग जगह यह न्यूनतम प्रवाह अलग-अलग हो सकता है। लेकिन यदि भविष्य में नदी के लिए 38 क्यूमेक्स (1342 क्यूसेक) का ई-प्रवाह माना जाता है, तो वर्ष के दौरान नदी में पर्याप्त पानी होगा।
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी भुवन प्रकाश ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता है कि यह 500-600 क्यूसेक पानी सिंचाई के कोटे से जारी किया गया है, लेकिन इतना जरूर है कि इस पानी के पहुंचने से यह स्पष्ट होता है कि अभी यमुना नदी अच्छी स्थिति में है। इतनी मात्रा में पानी छोड़ने से नदी के भौतिक-रासायनिक मापदंडों में सुधार होता है।