रेत बिन नदी: क्या बदले जाने चाहिए नदियों में रेत खनन के नियम?

कनालसी गांव में एक कतार में यमुना नदी से निकाले गए रेत और बजरी के ऊंचे-ऊंचे टीले धूल उड़ाते नज़र आते हैं। धूल इतनी ज्यादा थी कि मोबाइल फोन की स्क्रीन पर कुछ ही सेकेंड्स में धूल की परत चढ़ गई।
देशभर में बड़े पैमाने पर हो रहे रेत खनन को देखते हुए विशेषज्ञ अब इसे लघु नहीं बल्कि प्रमुख खनिज के तौर पर वर्गीकृत करने की मांग कर रहे हैं। फोटो: वर्षा सिंह
देशभर में बड़े पैमाने पर हो रहे रेत खनन को देखते हुए विशेषज्ञ अब इसे लघु नहीं बल्कि प्रमुख खनिज के तौर पर वर्गीकृत करने की मांग कर रहे हैं। फोटो: वर्षा सिंह
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रेत खनन की वजह से यमुना की दुर्दशा पर ग्राउंड रिपोर्ट आपने पढ़ी। अब पढ़ें, अगली कड़ी-  

कनालसी गांव में एक कतार में यमुना नदी से निकाले गए रेत और बजरी के ऊंचे-ऊंचे टीले धूल उड़ाते नजर आते हैं। धूल इतनी ज्यादा थी कि मोबाइल फोन की स्क्रीन पर कुछ ही सेकेंड्स में धूल की परत चढ़ गई। 

कनालसी गांव से प्रतिदिन 8 घंटे खनन से 6500 टन रेत और प्रति वर्ष 19.50 लाख टन रेत उत्पादन की अनुमति दी गई है। 

यमुना स्वच्छता समिति के सदस्य मेघ सिंह कहते हैं “यहां दिन ही नहीं रात में भी धड़ल्ले से खनन किया जाता है। नदी के किनारों और बीचोंबीच प्रवाह से भी रेत निकाला जाता है। सिर्फ 3 मीटर तक खनन की अनुमति है लेकिन नदी में 50-60फुट (करीब 18 मीटर) तक गहरे कुंड बन गए हैं।

शुरु के 2-3 साल जिधर से मर्जी खनन कर दिया। उसमें खेती की काफी जमीनें खराब हुईं। प्रशासन के संज्ञान में सबकुछ है। कभी-कभार निरीक्षण भी किया गया। लेकिन उस पर कोई कार्रवाई होते हमने आजतक नहीं देखा”। 

रेत खनन में लगी जेसीबी, पोकलैंड मशीनों और रेत से लदे ट्रकों को दिखाते हुए मेघ सिंह कहते हैं कि यहां रेत से भरे कितने ट्रक रोज फेरी लगाते हैं, ये निगरानी करने वाला तो कोई है ही नहीं। 

मेघ सिंह व अन्य ग्रामीणों आरोप है कि “खनन कंपनियों की मनमानी का हमने विरोध किया तो प्रशासन ने उलटा ग्रामीणों पर सरकारी काम में बाधा डालने का केस दर्ज कर दिया”। 

यमुना किनारे ग्रामीणों के साथ जिस समय ये बातचीत हो रही थी, खनन कंपनी से जुड़े दो लोग लगातार हमें नोटिस कर रहे थे, हमारी बातें सुन रहे थे और हमारे साथ चल रहे थे। दोनों खनन के लिए इस्तेमाल होने वाले डंपर चलाते थे। उनमें से एक व्यक्ति के साथ हुई बातचीत में स्वीकार किया कि रात में और नदी के किनारों और बीचोंबीच प्रवाह  में अवैध खनन किया जाता है। 

देशभर की नदियों में बड़े पैमाने पर हो रहे रेत खनन की निगरानी बड़ा मुद्दा है। खनन विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, सिंचाई विभाग, पुलिस विभाग सभी खनन की निगरानी के लिए जिम्मेदार हैं। हर जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में इसके लिए टास्क फोर्स बनाई गई है। देश में 780 जिले हैं यानी 780 अलग-अलग इकाइयां खनन की निगरानी करती हैं। इसके लिए एक केंद्रीय व्यवस्था नहीं है। 

निर्माण परियोजनाओं के चलते देश में रेत की मांग लगातार बढ़ रही है। फोटो: वर्षा सिंह 

क्या लघु खनिज रह गया है रेत?

पानी के बाद रेत प्रकृति से लिया जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा संसाधन है। सैंड माइनिंग फ्रेमवर्क-2018 में वर्ष 2017 में देश में 700 मिलियन टन रेत की मांग का मोटे तौर पर आकलन किया गया। इसके 6-7% प्रति वर्ष की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया। 

बावजूद इसके यह उपखनिज की श्रेणी में आता है। दिल्ली में पर्यावरण से जुड़े मुद्दों की वकालत करने वाली पारुल गुप्ता कहती हैं “देशभर की नदियों का क्षेत्र खनन के लिए खुला है। ये नदी के पूरे इको सिस्टम को खतरे में डालता है। रेत खनन के पर्यावरण पर हो रहे असर की व्यापकता को देखते हुए अब इसे लघु नहीं बल्कि प्रमुख खनिज माना जाना चाहिए”। 

रेत की तुलना में प्रमुख खनिज के तौर पर सूचीबद्ध कोयले के खनन के लिए पर्यावरणीय अनुमति के नियम सख्त हैं। माइन्स एंड मिनरलस (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट) 1957 में प्रमुख और उपखनिज को परिभाषित किया गया। पारुल गुप्ता का तर्क है “1957 के बाद से अब तक स्थिति बदल चुकी है। आबादी और निर्माण परियोजनाएं बढ़ गई हैं। रेत का इस्तेमाल कई गुना बढ़ गया है। दिल्ली-नोएडा समेत महानगरों में बहुमंजिला इमारतें, मॉल्स, सड़कें सब के लिए रेत, बजरी, सीमेंट का इस्तेमाल हो रहा है”। 

दीपक कुमार व अन्य बनाम हरियाणा सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि रेत के उपखनिज के वर्गीकरण को दोबारा देखने की जरूरत है। 

पिछले 4 वर्षों में यमुना के उपरी हिस्से में सामान्य से कम बारिश दर्ज की जा रही है। फोटो: वर्षा सिंह 

नदी में कितन रेत?

बरसात के मौसम में जुलाई से सितंबर तक खनन प्रतिबंधित होता है। बारिश-बाढ़ के साथ नदी में रेत-बजरी और खनिज बहकर आते हैं। मानसून से पहले और बाद यह अध्ययन किया जाता है कि नदी में कितना खनिज जमा हुआ। इसी आधार पर नदी से निकालने जाने वाले रेत व अन्य उपखनिजों की मात्रा तय की जाती है। 

साउथ एशिया नेटवर्क ऑफ डैम्स, रिवर्स एंड पीपुल (एसएएनडीआरपी)के असोसिएट कोऑर्डिनेटर भीम सिंह रावत अपने अध्ययन के आधार पर कहते हैं “पिछले 4 वर्षों से यमुना रिवर बेसिन में सामान्य से कम मानसूनी बारिश दर्ज की जा रही है। (2018, 2019, 2020 और 2021)। कम वर्षा यानी उपखनिज की मात्रा भी कम होगी”। इस वर्ष भी 1 जून से 26 अगस्त तक यमुना के ऊपरी हिस्से में सामान्य से 10% कम और मध्य यमुना में सामान्य से 30% कम वर्षा दर्ज हुई है। 

वर्ष 2020 की रेत खनन गाइडलाइन्स के मुताबिक बरसात के बाद नदी में जमा रेत-बजरी की मात्रा यानी पुनर्भरण (replenishment) दर के आधार पर किसी भी खनन पट्टे को दी गई अनुमति और रेत निकासी का ऑडिट हर दो वर्ष पर अनिवार्य तौर पर कराना होगा। इसके आधार पर ही आगे खनन किया जा सकता है। 

हरियाणा सरकार में पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन विभाग के निदेशक और हरियाणा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एस नारायणन कहते हैं “पुनर्भरण अध्ययन के आधार पर आज तक हमने कभी किसी खनन अनुमति रद्द नहीं की है। हालांकि अब हम इसे लागू करने जा रहे हैं”। 

वह कहते हैं “यमुना में बहुत बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। हमें इसकी शिकायतें भी मिलती हैं। निगरानी के लिए हमने जिला स्तरीय टास्क फोर्स बनाए हैं। एनजीटी तक भी कई मामले पहुंचे हैं। अवैध खनन की शिकायत के लिए एक मोबाइल ऐप भी तैयार किया जा रहा है। अवैध खनन को रोकना बहुत मुश्किल है। इसके लिए बहुत सघन निगरानी की जरूरत है।”

नारायणन यह भी मानते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर रेत खनन से यमुना के पारिस्थितकीय तंत्र पर पड़ने वाले असर को लेकर हरियाणा सरकार की तरफ से अब तक कोई अध्ययन नहीं कराया गया। 

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिक सैयद ऐनुल हुसैन कहते हैं “अगर रेत खनन से नदियों का संतुलन बिगड़ा है तो हम रोटेशन पॉलिसी अपना सकते हैं। नदी के खनन वाले हिस्से की भरपाई के लिए उसे 5 वर्ष के लिए छोड़ दीजिए”। 

बाईं तरफ किरनपाल राणा के साथ यमुनानगर जिले के ग्रामीण रेत खनन से यमुना नदी के जलीय जीवन और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के बारे में बताते हैं। फोटो: वर्षा सिंह 

स्थानीय समुदाय की भागीदारी

रेत खनन की निगरानी जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बनी टास्क फोर्स करती है। स्थानीय समुदाय शिकायतकर्ता बनकर रह जाते हैं। वैज्ञानिक सैयद ऐनुल हुसैन कहते हैं “स्थानीय समुदाय ही नदी को अवैध खनन से बचा सकता है। इसके लिए उन्हें जागरुक करना होगा। खनन निगरानी के लिए बनने वाली मॉनिटरिंग कमेटियों में स्थानीय लोगों को अनिवार्य तौर पर शामिल करना चाहिए”। 

“खनन निगरानी के लिए बनने वाली मॉनिटरिंग कमेटियों में स्थानीय लोगों को अनिवार्य तौर पर शामिल करना चाहिए” -सैयद ऐनुल हुसैन 

उनके मुताबिक नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के हस्तक्षेप के चलते गंगा में रेत खनन फिर भी नियंत्रित होता है जबकि यमुना खुली छोड़ दी गई है। 

यमुना में रेत खनन के लिए बनाए गए गढ्ढे; फोटो: वर्षा सिंह 

हाशिए पर क्यों हैं नदियां?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष परितोष त्यागी सवाल करते हैं “वनों पर अध्ययन के लिए हमारे पास फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे शानदार संस्थान हैं। वर्ष 1985 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बनने के 37 वर्षों बाद भी हमने नदियों पर अनुसंधान के लिए एक संस्थान तक तैयार नहीं किया। हम नदियों पर शोध को अहमियत नहीं दे रहे”। 

वह आगे कहते हैं, “नदी में कहां और कितना खनिज मिलेगा, इस पर शोध के साथ वैज्ञानिक आकलन होना चाहिए। पुनर्भरण अध्ययन का कार्य सिंचाई विभाग के इंजीनियर्स की जगह वैज्ञानिकों को करना चाहिए। जबकि यह अध्ययन एक औपचारिकता की तरह किया जा रहा है”। 

परितोष नदियों के पर्यावरणीय प्रबंधन की जगह प्रशासकीय प्रबंधन पर भी सवाल उठाते हैं। “दुर्भाग्यवश नदियों का प्रबंधन प्रशासन कर रहा है। खनन की अनुमति देने वाले राज्य स्तर के अधिकारी होते हैं। पुलिस निगरानी करती है। जब तक हमखनन को कानून-व्यवस्था के मुद्दे की तरह लेंगे, इसका पर्यावरणीय प्रबंधन मुश्किल होगा। पारिस्थितकीय तंत्र, जलवायु परिवर्तन और जैव-विविधता जैसे मुद्दे सचिवालय के लिए नहीं हैं”। 

वर्ष 2012 के खनन केस में सुप्रीम कोर्ट की यह भी टिप्पणी थी “टुकड़े-टुकड़े में हो रहे खनन का नदियों पर पड़ने वाला असर हमें कम महत्वपूर्ण लग सकता है लेकिन समूचे खनन क्षेत्र का सामूहिक तौर पर पड़ने वाला असर बेहद प्रतिकूल है”। 

यमुनानगर के गांवों के लोग अपने क्षेत्र से गायब हो रही जैव-विविधता को अनुभव कर रहे हैं। देश के समूचे नदी क्षेत्र में हो रहे खनन से पर्यावरण पर पड़ने वाले सामूहिक असर का आकलन हमने अब तक नहीं किया है। 

(This story was produced with support from Internews’s Earth Journalism Network.) 

इस कहानी का पहला हिस्सा आप यहां पढ़ सकते हैं। 

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