
बिहार के कोशी क्षेत्र में बाढ़ राहत और पुनर्वास व्यवस्था में गंभीर खामियां सामने आई हैं। सर्वे के मुताबिक बाढ़ को लेकर न केवल पूर्व चेतावनी व्यवस्था विफल रही, बल्कि अधिकांश बाढ़ पीड़ित सरकारी राहत से भी वंचित रहे। सर्वे के अनुसार कुल 1081 परिवारों में 671 (62.1 फीसदी) परिवार बचाव और राहत सहायता से पूरी तरह वंचित रह गए। पुनर्वास की स्थिति भी दयनीय रही और सरकारी सहायता योजनाओं का लाभ अधिकांश प्रभावित परिवारों तक नहीं पहुंच सका।
कोशी नव निर्माण मंच द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में यह बातें सामने आई हैं । इस अध्ययन को आईआईटी से सिविल इंजीनियरिंग स्नातक राहुल यादुका, टाटा समाज अध्ययन संस्थान (टिस) की शोधार्थी सुभा सृष्टि और राजीव गांधी युवा शोध संस्थान से शोध कर रहे आरिफ निजाम ने किया। सर्वे में सुपौल, सहरसा, मधुबनी और दरभंगा जिलों के 12 प्रखंडों के 38 गांवों के 1,081 परिवारों का सर्वे किया गया। इस अध्ययन के लिए गूगल फॉर्म में ऑनलाइन डाटा कलेक्शन दिसम्बर, 2024 के अंत से लेकर 10 फरवरी, 2025 के बीच किया गया।
इस सर्वे के निष्कर्षों के मुताबिक 760 परिवारों ने कहा कि उन्हें बाढ़ पूर्व सूचना मिली थी जबकि 313 परिवारों को कोई जानकारी नहीं थी। वहीं, 504 परिवारों का कहना था कि उन्हें मात्र कुछ घंटे पहले ही सूचना मिली थी, जिससे उन्हें सुरक्षित स्थानों पर जाने का पर्याप्त समय नहीं मिल सका।
सरकारी माध्यमों से केवल 283 परिवारों (26.2 फीसदी ) को ही बाढ़ की पूर्व सूचना प्राप्त हुई, जबकि 73.8 फीसदी परिवारों ने बताया कि उन्हें यह जानकारी स्थानीय सामाजिक संगठनों या समुदाय के अन्य लोगों से मिली। सर्वे के इस निष्कर्ष से पता चलता है कि सरकारी संचार प्रणाली इस आपदा के दौरान प्रभावी नहीं रही।
सर्वे के मुताबिक बाढ़ की पूर्व सूचना मिलने के बावजूद 671 परिवार (62.1 फीसदी ) प्रभावित क्षेत्र से बाहर नहीं निकल सके। जब इन परिवारों से पूछा गया कि वे बाढ़ की पूर्व सूचना मिलने के बावजूद क्यों नहीं सुरक्षित स्थान के लिए निकल पाए तो 464 लोगों ने कहा कि उन्होंने पानी के स्तर का सही अनुमान नहीं लगाया था। बाकी ने बताया कि वे परिवार, सामान और मवेशियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित थे और इस कारण वे बाहर नहीं गए।
सरकारी बचाव दलों की भूमिका भी निराशाजनक रही। मात्र 90 परिवारों (8.3 फीसदी) को सरकारी नावों से निकाला गया, जबकि 94.1 फीसदी लोगों को निजी साधनों के लिए पैसे देने पड़े। 54 लोगों को बचाव के लिए कोई खर्च नहीं करना पड़ा जबकि शेष को भारी आर्थिक बोझ उठाना पड़ा।
सर्वे में सामने आया कि राहत शिविरों की उपलब्धता एक प्रमुख मुद्दा रहा। 749 परिवारों यानी 69.3 फीसदी ने बताया कि उनके आसपास कोई राहत शिविर नहीं था। केवल 189 परिवारों (17.5 फीसदी) को राहत शिविरों या कम्युनिटी किचन की सुविधा मिली, जबकि 82.5 फीसदी परिवारों ने कहा कि वे इससे वंचित रहे।
सरकारी अनुग्रह अनुदान (जीआर) प्राप्त करने वाले परिवारों की संख्या भी संतोषजनक नहीं रही। 634 परिवार (58.6 फीसदी) को अनुग्रह अनुदान मिला, जबकि 439 परिवार (40.6 फीसदी) इससे वंचित रहे। कपड़े, बर्तन, गृह क्षति और पशु क्षति की भरपाई किसी भी परिवार को नहीं मिली। बाढ़ के बाद फसल क्षतिपूर्ति भी केवल 34 परिवारों (3.1 फीसदी) को ही प्राप्त हुई।
वहीं, बाढ़ प्रभावित लोगों के पुनर्वास की स्थिति पर किए गए अध्ययन में यह सामने आया कि केवल 182 परिवार (16.8 फीसदी) को तटबंध के बाहर पुनर्वास मिला, जबकि बाकी प्रभावित परिवारों को कोई पुनर्वास सुविधा नहीं मिली।
इस बीच 25 मार्च को कोशी पीड़ितों के पुनर्वास और क्षतिपूर्ति की मांग को लेकर पटना के गांधी संग्रहालय में जनसुनवाई आयोजित की गई। जिसमें कोशी नव निर्माण मंच की ओर से आपदा पीड़ितों की समस्याओं को उठाया गया।
इस जनसुनवाई में कई बाढ़ पीड़ितों ने अपनी तकलीफें साझा कीं। सुपौल की रेखा देवी ने बताया कि बाढ़ के दौरान बच्चों को छप्पर पर बैठाकर किसी तरह जान बचाई, लेकिन अब तक उन्हें पुनर्वास नहीं मिला। वहीं, प्रमिला देवी ने कहा कि उनका घर नदी में समा गया, लेकिन गृह क्षति का मुआवजा भी नहीं मिला। संतोष मुखिया और आलोक राय ने बताया कि दबंगों के अवैध कब्जे के कारण पुनर्वास संभव नहीं हो पा रहा है।
इस जनसुनवाई में दयारानी देवी ने अपने बच्चे को डूबने से बचाने की दर्दनाक घटना साझा की।
कार्यक्रम में पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस अरुण कुमार ने कहा कि आपदा राहत योजनाओं के क्रियान्वयन में बड़ी खामियां हैं, जिन्हें सुधारने की जरूरत है।
साथ ही बिहार राज्य आपदा प्राधिकरण के पूर्व उपाध्यक्ष व्यास जी ने सरकार से मांग की कि कोशी पीड़ितों को बाढ़ आपदा के तहत तय मानकों के अनुसार क्षतिपूर्ति मिले और उनके पुनर्वास की दीर्घकालिक योजना बनाई जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि योजनाओं में जनभागीदारी बढ़ाकर इसे प्रभावी बनाया जाए।
कार्यक्रम में शामिल प्रो. पुष्पेंद्र ने इस बात पर चिंता जताई कि कोशी पीड़ितों को अपनी पीड़ा बताने के लिए पटना आना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार उनकी बात नहीं सुनती, तो इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाया जाना चाहिए। प्रो. मधुबाला ने सरकार को याद दिलाया कि मुख्यमंत्री का नारा है कि आपदा पीड़ितों का सरकारी खजाने पर पहला अधिकार है, लेकिन जमीनी हकीकत इससे अलग है।
इस जनसुनवाई का संचालन कोशी नव निर्माण मंच के संयोजक महेंद्र यादव और इंद्र नारायण ने संयुक्त रूप से किया।