सर्वोच्च न्यायालय ने सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों द्वारा दायर याचिका के मामले में कहा है कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को स्वतंत्र संस्था की तरह काम करना चाहिए। साथ ही, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण और केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा दिए गए अलग-अलग हलफनामे पर एक ही व्यक्ति के हस्ताक्षर होने पर भी हैरानी जताई।
सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने बुधवार को इस मामले की सुनवाई की। इस मौके पर अदालत ने कहा कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण में पांच पदों पर मात्र दो भरे हुए हैं और इस पर पति पत्नी की नियुक्ति है। यह अपने आप में अखरने वाले स्थिति है। अदालत ने कहा कि सरदार सरोवर जलस्तर नियमन समिति की रिपोर्ट जो नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने दी है, वह केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के सचिव द्वारा ही प्रस्तुत की जानी चाहिए।
न्यायाधीश रमण्णा ने अदालत में जमा कराए गए शपथपत्रों के आधार पर अधिवक्ता तुषार मेहता से सवाल किया कि गुजरात ने मध्य प्रदेश को 400 करोड़ रुपए का भुगतान किया है, जबकि मध्य प्रदेश शासन के अनुसार उन्हें 1900 करोड़ रुपए की जरुरत है। इस पर सालिसिटर जनरल का कहना था कि यह मांग मध्यप्रदेश ने बाद में की है। मेहता ने कहा कि सरदार सरोवर जलाशय नियमन समिति की बैठक के बाद रिपोर्ट तैयार कर जल्द ही पेश की जाएगी। इस पर मध्य प्रदेश के अधिवक्ता राहुल कौशिक ने आपत्ति उठाते कहा कि इस न्यायालय के 26 सितंबर, 2019 के आदेश अनुसार जो समिति की बैठक होनी थी, वह चार मुख्यमंत्रियों की थी न कि सरदार सरोवर नियमन कमिटी की, जो निम्नस्तर की समिति है। इस समिति की रिपोर्ट भी त्वरित पेश करने तथा आगे की सुनवाई उस पर होने का आदेश दिया गया।
इस बीच वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारीख ने 138.68 मीटर यानी पूर्ण जलस्तर की वजह से डूबे हजारों परिवारों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जिन परिवारों का स्थायी पुनर्वास नहीं हुआ है, उन परिवारों के लिए भी सभी बुनियादी जरूरतों की पूर्ति राहत के रूप में की जाए। गुजरात सरकार को इसका खर्च उठाना चाहिए, वैसे भी गुजरात के पास काफी धन है। इस पर सालिसिटर जनरल मेहता ने कहा कि यह कोर्ट जो भी आर्थिक सहायता के लिए आदेश करेगार वह देने को हम तैयार हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 21 अक्टूबर, 2019 होगी।