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रत्नागिरी में बांध टूटने से उठे सवाल, क्या देश के बांध हैं सुरक्षित?

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, बांधों के विफल होने की सबसे बड़ी वजह बाढ़ रही है। करीब 44 प्रतिशत बांध विफलता बाढ़ के कारण हुई है
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महाराष्ट्र के रत्नागिरी में मंगलवार रात तिवरे बांध टूटने से अब तक 6 लोगों की मौत हो गई जबकि करीब 24 लोग लापता हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बांध के पानी से 12 गांवों को नुकसान पहुंचा है और 7 गांव पूरी तरह डूब चुके हैं। तिवरे बांध साल 2000 में बना था। स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन को दो साल पहले बांध से पानी रिसने की शिकायत की थी लेकिन मरम्मत नहीं हुई।

इस घटना ने बांध सुरक्षा पर एक बार फिर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, बांधों के विफल होने की सबसे बड़ी वजह बाढ़ रही है। करीब 44 प्रतिशत बांध विफलता बाढ़ के कारण हुई है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बड़े बांध हैं। नासिक के डैम सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, देश में कुल 5202 बड़े बांध हैं जिनमें से 35 प्रतिशत अकेले महाराष्ट्र में हैं।  

पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने बांध सुरक्षा विधेयक संसद में रखा था। यह अब तक पास नहीं हो पाया है। 2002 की जलनीति में बांध सुरक्षा कानून की परिकल्पना की गई थी ताकि बांधों का नियमित निरीक्षण, मरम्मत और निगरानी की जा सके।

क्यों विफल हो रहे हैं बांध

पिछले साल 31 मार्च को राजस्थान के झुंझनू जिले मलसीसर गांव में 588 करोड़ रुपए की लागत से बना नया नवेला बांध भी रिसाव के बाद टूट गया था। इसी तरह 19 सितंबर 2017 को बिहार के भागलपुर के कहलगांव में बना बांध उद्घाटन से महज एक दिन पहले टूट गया था। यह बांध 389 करोड़ रुपए की लागत से बना था।

केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) की डैम रिहेबिलिटेशन एंड इंप्रूवमेंट (ड्रिप) परियोजना की “डैम सेफ्टी इन इंडिया रिपोर्ट” बताती है कि बड़े बांधों के विफल होने की देश में सर्वाधिक 11 घटनाएं राजस्थान में घटी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश में 10 और गुजरात में बड़े बाधों के असफल होने की पांच घटनाएं हुई हैं। महाराष्ट्र में ऐसे चार मामले सामने आए। 2001 से 2010 के बीच देश में बांध की असफलता के नौ मामले सामने आए। इससे पहले 1951 से 1960 की अवधि में ही इससे ज्यादा 10 घटनाएं हुईं थीं। 1961-70 तक सात, 1971-80 तक तीन, 1981-90 तक एक और 1991-2000 के बीच बांध विफलता के तीन मामले सामने आए। रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश बांध उस वक्त टूट गए जब उनमें पूरी क्षमता में पानी भरा गया। बांध विफलता की 44.44 प्रतिशत घटनाएं बांध बनने के 0-5 वर्ष की अवधि के दौरान घटीं। देशभर में ऐसे कुल 16 मामले सामने आए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, ज्यादातर राज्य बांधों की सुरक्षा और मरम्मत के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने में नाकाम रहे हैं। बांध को सुरक्षित रखने के लिए राज्यों के पास तकनीकी और संस्थागत क्षमताएं भी नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, बांध विफलता के मुख्य कारणों में अचानक आए बाढ़ के पानी से दरारें पड़ना (44 प्रतिशत), पानी की निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था (25 प्रतिशत), त्रुटिपूर्ण पाइपिंग या काम (14 प्रतिशत) और अन्य परेशानियां (17 प्रतिशत) हैं। 

सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट ही नहीं बल्कि नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट भी बांधों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है। 2017 में जारी की गई सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, बड़े बांधों में केवल 349 बांधों यानी महज सात फीसदी में ही आपातकालीन आपदा कार्य योजना मौजूद थी। केवल 231 बांधों (कुल बांधों का पांच प्रतिशत) पर ऑपरेटिंग मैनुअल मौजूद थे। सीएजी ने पाया कि 17 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में केवल हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु ने ही मानसून से पहले बाद में बांधों की पूरी जांच कराई और केवल तीन राज्यों ने आंशिक जांच की जबकि 12 राज्यों ने ऐसा नहीं किया। सीएजी ने कई बड़े बांधों की सुरक्षा में बड़ी चूकें पाईं। 

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