सरदार सरोवर बांध के विस्थापित क्यों कह रहे हैं नर्मदा को मरण रेखा

बांध से विस्थापित हुए मध्यप्रदेश के पीड़ित बिना बिजली-पानी के डूब क्षेत्र में रहने को मजबूर हैं
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े पीड़ित और सामाजिक कार्यकर्ता ने भोपाल आकर अधिकारियों को अपनी समस्या बताई। मंच पर उपस्थित मेधा पाटकर। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़े पीड़ित और सामाजिक कार्यकर्ता ने भोपाल आकर अधिकारियों को अपनी समस्या बताई। मंच पर उपस्थित मेधा पाटकर। फोटो: मनीष चंद्र मिश्रा
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गुजरात में बने सरदार सरोवर बांध का जलस्तर 131 मीटर पहुंचने के बाद मध्यप्रदेश के सैकड़ों गांव डूब क्षेत्र में आ गए हैं। इसे 138.68 मीटर तक भरने की योजना है। फसल डूबने के बाद अब बारी उनके मकान और दुकानों की है, लेकिन पानी घर तक आने के बाद भी लोग बिना न्याय मिले गांव छोड़ने को तैयार नहीं हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के 34 वर्ष होने के बावजूद पीड़ितों का आरोप है कि उन्हें न्याय यानि उचित मुआवजा और पुनर्वास नहीं मिला है। नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े पीड़ित अब नर्मदा को जीवन रेखा नहीं बल्कि मरण रेखा कह रहे हैं। शनिवार को आंदोलन से जुड़े पीड़ित लोग सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर के साथ भोपाल आकर मध्यप्रदेश के जिम्मेदार अधिकारियों से मिले। उन्होंने मुख्यमंत्री कमलनाथ का समय मांगा था लेकिन मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे की वजह से उन्हें समय नहीं मिल पाया। 

नर्मदा क्यों बन गई है मरण रेखा 
आंदोलन से जुड़ी मेधा पाटकर ने बताया कि डूब प्रभावित क्षेत्र में 32000 परिवार रह रहे हैं, जिनका अधूरा पुनर्वास हुआ है। बिना उचित पुनर्वास किए बांध सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ाया जा रहा है। अगर गेट नहीं खोला गया तो बांध के बैक वाटर से हज़ारों मकान, लाखों बड़े पेड़, सरकारी भवन, धार्मिक स्थल डूबेंगे। बड़वानी के राजपुर ब्लॉक में बैकवाटर के वजन से भमोरी, उमरिया, साकड, मदिल, बिलवा रोड जैसे गांव में रात के 2 बजे भूकंप के झटके लग रहे हैं। सरकार की तरफ से इसकी जांच के भी कोई इंतजाम नहीं है। मेधा पाटकर मानती हैं कि सरकार विकास के नाम पर लोगों को हलाल कर उसे तड़पते हुए देखना चाह रही है। इस तरह नर्मदा जीवन के बजाय मरण रेखा बना दी गई है। बांध का गेट खुलवाने और पुनर्वास में मदद करने के लिए ग्रामीणों ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र भी लिखा है। 

घरों में भर गया पानी, बिजली के बिना सांप काटने का खतरा 
आंदोलन से जुड़े देवराम कनेरा बताते हैं कि उनके गांव में पानी भर आया है, लेकिन बिना उचित पुनर्वास के वे घर कैसे छोड़ेंगे। बड़वानी जिले के कई तहसील इससे प्रभावित हुए हैं। प्रशासन ने बिजली काट दी है जिससे लोग सांप और मगरमच्छ के खतरे में जी रहे हैं। गांव में पानी की व्यवस्था भी नहीं है। रामेश्वर भिलाला ने बताया कि वे सरकार के आश्वासन का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन पुलिस उन्हें जबरदस्ती हटाना चाह रही है।

रक्षा के लिए आंदोलन

भोपाल में अधिकारियों से मिलकर आंदोलन की तैयारी के लिए नर्मदा बचाओ आन्दोलन के कार्यकर्ता नर्मदा तट पर लौट रहे हैं। वे रविवार को दोपहर 12 बजे नर्मदा को राखी बांधकर उसकी रक्षा के लिए आंदोलन की शुरुआत करेंगे। 

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