

हर बरस की तरह यमुना और उसका प्रदूषण एक बार फिर चर्चा में है। यमुना की सफाई को लेकर बात निराशा के चरम बिंदु तक पहुंच गई है। हालांकि इसके उलट दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने राजधानी के लोगों और नीति-निर्माताओं को याद दिलाया है कि नदी की सफाई असंभव नहीं है।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने इस मुद्दे पर कहा, “यमुना की सफाई की समस्या नई नहीं है। इस पर वर्षों से बहुत बड़ी राशि खर्च की जा चुकी है। हमें यह समझना होगा कि यमुना को साफ करना सिर्फ पैसों से संभव नहीं है। इसके लिए एक नए सिरे से तैयार की गई योजना की जरूरत होगी, जो हमें अलग ढंग से सोचने और काम करने की दिशा दे सके।”
साल 2017 से 2022 के बीच दिल्ली सरकार ने यमुना की सफाई पर 6,856 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए। फिलहाल दिल्ली में 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं, जिनकी क्षमता 80 से 100 प्रतिशत तक उत्पन्न सीवेज को साफ करने की है और शहर का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा सीवर लाइनों से जुड़ा हुआ है। इसके बावजूद नदी अब भी गंदी और प्रदूषित बनी हुई है।
दिल्ली में यमुना का 22 किलोमीटर लंबा हिस्सा जो नदी के पूरे बेसिन की लंबाई का मात्र दो प्रतिशत है, पूरी नदी के 80 प्रतिशत से ज्यादा प्रदूषण भार का योगदान करता है। साल के लगभग नौ महीनों तक नदी में पानी नहीं होता है और जो कुछ बहता है वह केवल दिल्ली की 22 नालियों से आने वाला सीवेज और कचरा होता है।
सीएसई के जल कार्यक्रम निदेशक सुब्रत चक्रवर्ती के अनुसार, “असल में, यमुना वजीराबाद में दिल्ली में प्रवेश करते ही जैसे अस्तित्व खो देती है।”
सीएसई की ओर से हाल ही में जारी रिपोर्ट यमुना: द एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर ने इस पहेली को सुलझाने की कोशिश की है। यह रिपोर्ट वही करने की कोशिश करती है जिसका जिक्र सुनीता नारायण करती हैं। रिपोर्ट का मसकस एक ऐसी योजना प्रस्तुत करना जो हमें सोचने और कार्य करने का नया दृष्टिकोण दे सके।
सीएसई की रिपोर्ट यमुना प्रदूषण की स्थिति के पीछे कुछ प्रमुख कारणों की पहचान करती है।
रिपोर्ट के मुताबिक गंदे पानी के उत्पादन से जुड़ा पर्याप्त आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। नारायण कहती हैं कि “हमें यह तक नहीं पता कि दिल्ली से कितना अपशिष्ट जल निकलता है, क्योंकि नियमित जनगणना के अभाव में शहर की वास्तविक आबादी का पता नहीं है और न ही इस बात के स्पष्ट आंकड़े हैं कि लोग भूमिगत जल या टैंकरों से मिलने वाले गैर-आधिकारिक पानी का कितना उपयोग करते हैं।"
रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के कई इलाकों में गंदगी निकालने के लिए टैंकरों पर निर्भरता है और ये टैंकर अक्सर मलजल को सीधे नदी या नालों में ही गिरा देते हैं। मौजूदा योजना में इन टैंकरों से निकलने वाले मलजल को पूरी तरह से रोके जाने और उन्हें एसटीपी तक पहुंचाकर साफ करने व दोबारा उपयोग योग्य बनाने को प्राथमिकता नहीं दी गई है।
तीसरा कारण यह है कि दिल्ली की नालियों में उपचारित और बिना उपचारित दोनों तरह का सीवेज मिल जाता है। दिल्ली की 22 नालियां ऐसी हैं जिन्हें शुद्ध, साफ पानी को वापस यमुना में ले जाने के लिए बनाया गया है। लेकिन इन्हीं नालियों में अनधिकृत कॉलोनियों से आने वाला या टैंकरों द्वारा लाया गया बिना उपचारित मलजल भी बहता है, जिसके कारण पूरी सफाई प्रक्रिया बेअसर हो जाती है।
सीएसई का कहना है कि लगातार केंद्र और दिल्ली सरकारें तथा अदालतें इस समस्या के समाधान में लगी रही हैं और यह सराहनीय है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली के 37 एसटीपी लगभग 84 प्रतिशत तक उत्पन्न सीवेज को शुद्ध करने में सक्षम हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के अनुसार, लगभग 80 प्रतिशत गंदे पानी का उपचार किया जा रहा है। अब ध्यान मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने और भविष्य की जरूरतों को देखते हुए नए संयंत्रों के निर्माण पर केंद्रित है।
जब से दिल्ली के एसटीपी चालू हुए हैं उनके लिए और कठोर मानक लागू किए गए हैं। अब यह सीमा 10 मिलीग्राम प्रति लीटर है, जबकि राष्ट्रीय मानक 30 मिलीग्राम प्रति लीटर का है।डीपीसीसी की 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 37 एसटीपी में से 23 उत्सर्जन मानकों पर खरे नहीं उतर रहे। इसका मतलब है कि मौजूदा संयंत्रों को उन्नत और दुरुस्त करने के लिए और निवेश की आवश्यकता है।
दिल्ली सरकार की इंटरसेप्टर सीवर परियोजना का उद्देश्य शहर की नालियों से प्रतिदिन 1,000 मिलियन लीटर सीवेज को पकड़कर उसका उपचार करना है। डीपीसीसी के अनुसार, 1,000 से अधिक सीवर लाइनों का निर्माण हो चुका है और बाकी विभिन्न चरणों में हैं।
दिल्ली में 28 स्वीकृत औद्योगिक क्षेत्र हैं। इनमें से 17 के अपशिष्ट सामान्य एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) में उपचारित किए जाते हैं। लेकिन सीएसई की रिपोर्ट कहती है कि इन संयंत्रों की गुणवत्ता चिंता का विषय है और यह भी स्पष्ट नहीं है कि उपचार के बाद यह जल कहां छोड़ा जाता है।
सीएसई की रिपोर्ट भविष्य के लिए पांच बिंदुओं वाली कार्ययोजना की सिफारिश करती है। रिपोर्ट कहती है कि गैर-सीवर्ड क्षेत्रों से निकलने वाले सभी मलजल को एकत्र कर उसका उपचार किया जाए। ऐसे इलाके जहां सीवर लाइनें नहीं हैं वहां की सफाई टैंकरों द्वारा होती है और यह स्वच्छ यमुना के एजेंडे का हिस्सा होना चाहिए। राज्य को महंगे सीवर पाइपलाइन नेटवर्क में निवेश करने की जरूरत नहीं है। टैंकरों के जरिए फीकल स्लज प्रबंधन की रणनीति तेज और किफायती दोनों है।
मुख्य बात यह है कि सभी टैंकर पंजीकृत हों और उनकी आवाजाही की निगरानी की जाए ताकि सारा मलजल उपचार संयंत्रों तक पहुंचे।
सीएसई ने यह भी कहा कि उपचारित पानी को नालों में नहीं छोड़ा जाना चाहिए क्योंकि एसटीपी नदी के पास नहीं हैं और जब इन संयंत्रों से निकला उपचारित पानी उन्हीं नालों में छोड़ा जाता है जिनमें बिना शुद्ध पानी बह रहा है, तो यह मिलावट सारी मेहनत पर पानी फेर देती है। हर एसटीपी को यह योजना बनानी चाहिए कि वह न केवल पानी का उपचार करेगा बल्कि यह भी कि उपचारित पानी को कहां और कैसे छोड़ेगा।
सीएसई के अनुसार, उपचारित पानी का पूरा उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि वह प्रदूषण के बोझ को न बढ़ाए। वर्तमान में केवल 331 से 473 मिलियन लीटर प्रतिदिन यानी 10 से 14 प्रतिशत उपचारित पानी का दोबारा उपयोग किया जा रहा है। हर एसटीपी को न केवल उपचार बल्कि इस बात की भी योजना बनानी चाहिए कि उपचारित पानी को कैसे उपयोग में लाया जाएगा। बयान में कहा गया, “वरना हम सफाई भी करते हैं और उसे व्यर्थ भी जाने देते हैं।”
थिंक टैंक ने यह भी आग्रह किया कि एसटीपी को दोबारा उपयोग आधारित योजना के अनुसार उन्नत किया जाए। “दिल्ली के उत्सर्जन मानक देश के अन्य हिस्सों से अधिक सख्त हैं क्योंकि यह पानी नदी में छोड़ा जाता है, जिसमें अब किसी प्रकार के प्रदूषण को झेलने की क्षमता नहीं है। मौजूदा एसटीपी को इन मानकों तक लाने के लिए बड़े निवेश की जरूरत है। इसलिए अब मानक दोबारा उपयोग के उद्देश्य से तय किए जाने चाहिए।”
रिपोर्ट ने नजफगढ़ और शाहदरा नालों पर दोबारा विचार करने की बात कही है, जो नदी में 84 प्रतिशत प्रदूषण का बोझ डालती हैं। बयान में कहा गया, “इन दोनों नालों के लिए इंटरसेप्टर योजना काम नहीं कर रही। भारी निवेश के बावजूद प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। दिल्ली को उन नालों पर फोकस करना होगा जो नदी में सबसे अधिक प्रदूषण डाल रही हैं।”
सुनीता नारायण ने कहा, “नदी की सफाई का एजेंडा बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि मरी हुई यमुना न केवल शहर और हम सबके लिए शर्म की बात है, बल्कि यह दिल्ली और इसके नीचे बसे शहरों को साफ पानी उपलब्ध कराने के बोझ को भी और बढ़ा देती है।”