केन बेतवा नदी लिंक परियोजना का शिलान्यास आज, लेकिन सवाल अभी भी हैं बाकी!

साल 2005 में सबसे पहले इस योजना की परिकल्पना की गई, लेकिन कई तरह के विरोधों के चलते यह परियोजना सिरे नहीं चढ़ पाई
बेतवा नदी । फोटो: सीएसई
बेतवा नदी । फोटो: सीएसई
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती के अवसर पर 25 दिसंबर को केन-बेतवा नदी जोड़ने की राष्ट्रीय परियोजना का शिलान्यास करेंगे। 

दावा है कि यह देश की पहली राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के तहत नदी जोड़ने की परियोजना है। इससे मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जिससे लाखों किसान परिवार लाभान्वित होंगे। 

सरकार का यह भी दावा है कि यह परियोजना क्षेत्र के लोगों को पेयजल सुविधाएं भी प्रदान करेगी। साथ ही, इससे 100 मेगावाट से अधिक हरित ऊर्जा उत्पादन होगा। इस परियोजना से रोजगार के अनेक अवसर उत्पन्न होंगे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जाएगा।

लेकिन जब से इस योजना की बात शुरू हुई है, तब से ही कई ऐसे सवाल भी उठते रहे हैं, जिन पर फिलहाल बात नहीं हो रही है। खासकर, इस परियोजना का पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की अनदेखी की जा रही है। 

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बेतवा नदी । फोटो: सीएसई

पर्यावरणविद् और वन्य जीव प्रेमियों का कहना है कि इस परियोजना का सबसे बुरा असर मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व पर पड़ेगा। पन्ना जिला केन नदी के ऊपरी हिस्से में है।

करंट साइंस जर्नल में छपे एक अध्ययन के मुताबिक टाइगर रिजर्व में बाघों के प्रमुख आवास का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पानी में डूब सकता है। जो लगभग 58.03 वर्ग किलोमीटर है, जबकि अप्रत्यक्ष रूप से बाघों के प्रमुख आवास का करीब 105.23 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को खतरा हो सकता है।

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बेतवा नदी । फोटो: सीएसई

यही नहीं, कम से कम 20-25 लाख पुराने पेड़ इस परियोजना की बलि चढ़ सकते हैं। इसका सीधा असर इस पूरे विंध्य पहाड़ी क्षेत्र पर पड़ सकता है। 

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इस बारे में सुप्रीम कोर्ट की केंद्रीय अधिकार समिति द्वारा 30 अगस्त 2019 को सौंपी गई रिपोर्ट में विस्तार से लिखा है और सिफारिश की थी कि इस परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व की अनूठी पारिस्थितिकी नष्ट हो सकती है। ऐसे में पहले पन्ना नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व पर पड़ने वाले दीर्घकालीन प्रभावों का विस्तृत अध्ययन होना चाहिए।

इस रिजर्व में बाघों के अलावा सांभर, चीतल, ब्लू बुल, चिंकारा और चौसिंघा जैसी प्रजातियां भी रहती हैं। जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षित हैं और जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) में भी सूचीबद्ध हैं। सीआईटीईएस का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के चलते उनका अस्तित्त्व खतरे में न आ जाए। 

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सरकार दावा कर रही है कि केन बेतवा लिंक परियोजना से बुंदेलखंड में पानी की कमी दूर हो जाएगी, लेकिन करंट साइंस में छपे रिसर्च पेपर में कहा गया था कि बुंदेलखंड में पानी के संकट को दूर करने के लिए जखनी गांव का मॉडल अपनाना चाहिए। पेपर में नीति आयोग के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस गांव में खेतों में तालाबों का निर्माण, जलाशयों का जीर्णोद्धार व पुनरुद्धार, वर्षा जल संचयन, खेत में पानी को रोकने के लिए मेड़ बनाना, साथ ही वृक्षारोपण आदि उपाय किए गए, जिससे वहां अब पानी का संकट नहीं रहा। नीति आयोग ने 2019 में इसे जलग्राम घोषित किया था। 

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