मैकगिल विश्वविद्यालय और आईएनआरएई के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन में पाया गया कि पृथ्वी पर 640 लाख किलोमीटर की नदियों और धाराओं में से 51 से 60 फीसदी ने समय-समय पर बहना बंद किया है। ये दुनिया भर की ऐसी नदियों का पहला विश्लेषण है, जो साल भर नहीं बहती हैं या बारहमासी नहीं है। इस अध्ययन में नदियों के बहाव में होने वाली रुकावट से भविष्य में होने वाले बदलावों का आकलन किया गया है। यह अध्ययन दुनिया भर में पानी और जैव रासायनिक आधार पर नदियों और धाराओं की भूमिका के निर्धारण और निगरानी के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।
अध्ययनकर्ता मैथिस मेसेजर ने कहा कि ऐसी नदियां और धाराएं जो बारहमासी नहीं है वे पारिस्थितिक तंत्र के लिए अहम हैं क्योंकि वे कई अलग-अलग प्रजातियों के घर हैं जो पानी की उपस्थिति और अनुपस्थिति के चक्रों के अनुकूल हैं।
ये नदियां लोगों के लिए महत्वपूर्ण जल और खाद्य स्रोत प्रदान करती हैं और वे पानी की गुणवत्ता को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। लेकिन अधिकतर को सही से प्रबंधित नहीं किया जाता है या इन्हें प्रबंधन कार्यों और संरक्षण कानूनों से पूरी तरह से बाहर रखा जाता है क्योंकि उन्हें अभी तक अनदेखा किया जाता रहा है।
अध्ययनकर्ता बर्नहार्ड लेहनर ने कहा कि दुनिया भर की जलवायु और भूमि उपयोग में लगातार हो रहे बदलावों को देखते हुए, वैश्विक नदी नेटवर्क के एक बड़े हिस्से के आने वाले दशकों में मौसमी रूप से प्रवाहित होने के आसार हैं। वास्तव में, कई पूर्व बारहमासी नदियां और धाराएं, जिनमें नील, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और कोलोराडो नदी आदि जैसी प्रतिष्ठित नदियां शामिल हैं। पिछले 50 वर्षों में जलवायु परिवर्तन, भूमि उपयोग में बदलाव या अस्थायी या स्थायी रूप से पानी का लोगों के लिए और कृषि के लिए उपयोग के चलते बहाव में रुकावट देखी गई है।
शोधकर्ता यह निर्धारित करने और महत्वपूर्ण पर्यावरणीय विशेषताओं की पहचान करने में सक्षम थे। इसमें नदियों के समय के आधार पर जल विज्ञान की जानकारी, जलवायु, भूविज्ञान और आसपास के भूमि कवर की जानकारी के साथ दुनिया भर के 5615 स्थानों में जल प्रवाह के लंबे समय का रिकॉर्ड को सांख्यिकीय रूप से जोड़ना शामिल है। इन स्थानों पर नदियों और नालों की निगरानी की जाती है। यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
उन्होंने पाया कि ऐसी नदियां जो बारहमासी नहीं हैं वे सूखे स्थानों में सबसे आम हैं, जहां वर्षा की तुलना में बहुत अधिक वाष्पीकरण होता है। छोटी नदियों और धाराओं में आम तौर पर अधिक बदलने वाला प्रवाह होता है और इस तरह इनके सूखने की आशंका अधिक होती है। लेकिन ऐसी नदियां उष्णकटिबंधीय जलवायु में और यहां तक कि आर्कटिक में भी होती हैं जहां साल के कुछ हिस्सों में नदियां जम जाती हैं।
दिलचस्प बात यह है कि शुरुआती अनुमानों के आधार पर, पता चलता है कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी उन जगहों पर रहती है जहां उनके आसपास की सबसे नजदीकी नदी या नाला बारहमासी नहीं होता है। दरअसल, कई भाषाओं में, इस प्रकार के जलकुंडों और परिदृश्य अन्य को पुकारने के लिए कई शब्द मौजूद हैं, जो मनुष्यों और मौसमी ताजे पानी की प्रणालियों के बीच एक दूसरे की निर्भरता के लंबे इतिहास को उजागर करते हैं।
पिछले एक दशक में, ऐसी नदियां और धाराएं जो सालभर नहीं बहती है, इनकी अहमियत तेजी से कम हुई है। अध्ययन अब इन चीजों को लगातार उजागर करने के कई प्रयास कर रहे हैं। अब तक के अधिकांश ताजे पानी के विज्ञान ने बारहमासी जल निकायों के कामकाज और संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया है।
हाल ही में वैज्ञानिकों ने नदियों और नालों में प्रवाह की न होने के महत्वपूर्ण परिणामों को महसूस करना शुरू किया है। नतीजतन, इन अनूठे पारिस्थितिक तंत्रों के प्रबंधन के लिए विज्ञान आधारित तरीके, जैसे कि इन नदियों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए उपकरण और प्रोटोकॉल अभी भी सीमित हैं या हैं ही नहीं । निरीक्षण में कई मामलों में पानी के पंप द्वारा पानी का अत्यधिक निष्कास, प्रदूषण आदि शामिल है।
आईएनआरएई में वैज्ञानिक थिबॉल्ट डाट्री कहते है कि हाल ही में अमेरिका और फ्रांस जैसे देशों में पर्यावरण कानून और राष्ट्रीय जल प्रशासन प्रणालियों से गैर-बारहमासी नदियों को हटाने के कई हालिया प्रयास भी हुए हैं। गैर-बारहमासी अथवा साल भर नहीं बहने वाली नदियों और धाराओं का मानचित्रण करके, हमारा अध्ययन वैज्ञानिक समुदाय द्वारा उनके प्रसार और पारिस्थितिक महत्व की मान्यता पर जोर देता है। हमें उम्मीद है कि हमारा अध्ययन इन नदी पारिस्थितिक तंत्रों के पर्याप्त प्रबंधन के प्रयासों को गति देगा और उन्हें सुरक्षात्मक कानून से बाहर करने के प्रयासों को रोक देगा।