भोपाल के गांधी भवन में चल रहे राष्ट्रीय स्तर के नदी घाटी विचार मंच के सम्मेलन का समापन सोमवार को हुआ। जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय संस्था की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में देश की नदियों की आज की स्थिति के साथ नदी घाटी में प्रस्तावित और चल रही विकास की योजनाएं और उनके असर का जायजा लिया गया। इस कार्यक्रम के दौरान विशेषज्ञों ने विकास के विविध विकल्पों की तलाश भी की। सम्मेलन के दौरान हुई बातचीत से एक प्रस्ताव की रूपरेखा तैयार हुई जिसपर आने वाले समय में यह मंच काम करेगा। इस प्रस्ताव में कहा गया कि दुनिया भर में नदी के दोहन की वजह से जलवायु परिवर्तन की रफ्तार तेज हुई है। भारत में इस विकास का असर हिमालय और मैदानी नदियों पर पड़ा है। प्रस्ताव के मुताबिक देश के समाज, पर्यावरण और आर्थिक स्थिति पर इन विकास कार्यों का असर हुआ है। नदी घाटी के ठीक प्रबंधन से ही जलवायु परिवर्तन की रफ्तार कम की जा सकती है।
बांधों को लेकर इस प्रस्ताव में विस्तार से विकल्प सुझाए गए हैं। इनके मुताबिक नदियों को जल का स्त्रोत मानते हुए भारत में बड़े बांध बनाए गए। विश्व बांध आयोग की रिपोर्ट और नदी पर बने बांधों के अनुभव से पता चलता है कि बांध से जो लाभ होना था वह तो नहीं हुआ, बल्कि पर्यावरण पर और स्थानीय रहवास पर काफी असर हुआ है। ऐसी परियोजनाओं से नदी घाटी की प्राकृतिक जल प्रणाली को भी पूरी तरह से ध्वस्त किया है।
इस सम्मेलन में तय किया गया कि नदी घाटी विचार मंच के नाम से एक कार्यकारी समूह जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय की तहत कार्यरत रहेगा। सम्मेलन के बाद विचार मंच की ओर से एक दस्तावेज जारी किया गया जिसमें मंच की आने वाले समय में नदी बचाने को लेकर कार्ययोजना का जिक्र है। मंच ने घोषणा की कि नर्मदा में चुटका, सरदार सरोवर, बर्गी, जोबट, गंजाल मोरण्ड और सभी बड़े बांध; कोसी, कृष्णा, तापी की नदी घाटी में चल रहे संघर्ष का वह सक्रिय समर्थन करेंगे।
विचार मंच ने मध्यप्रदेश सरकार के पानी के अधिकार कानून पर भी अपनी राय साझा की। इसके मुताबिक इस कानून में निजीकरण एवं ठेकेदारी के लिए रास्ता खुला छोड़ा हुआ दिखाई देता है। मंच की मांग है कि पीने का पानी तथा छोटी योजनाओ में नदियां, तलाब में मछुआरों की आजिविका को सुनिश्चित किया जाए।
कार्यक्रम के दौरान सम्मेलन में चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के दादु लाल कुडापे और बरगी बांध विस्थापित मतस्य उत्पादन तथा विपणन सहकारी संघ के मुन्ना बर्मन ने चुटका परमाणु परियोजना को रद्द करने और बरगी बांध विस्थापितों का पुनर्वास करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उपस्थित सदन ने मंजूर किया। संगठनों का तर्क था कि चुटका परमाणु बिजली संयंत्र से नर्मदा नदी में विकिरण से जनजीवन प्रभावित होगा। इस परियोजना से आमजन को फायदा होने के बजाए नदी का नुकसान ही होना है। इस मामले पर मंच ने टिप्पणी की कि नदी जल को कोयला और परमाणु उर्जा स्थापना का आधार नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसको प्राकृतिक तरीके से बहने देना चाहिए। ऐसी योजनाएं नदी की जल क्षमता और जल की गुणवत्ता दोनों पर हमला है।