लुबना सरवथा हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल एंड वेलबीइंग इकोनॉमिक्स की संस्थापक निदेशक हैं
लुबना सरवथा हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल एंड वेलबीइंग इकोनॉमिक्स की संस्थापक निदेशक हैं

ठहरती-सिकुड़ती जा रही मूसी नदी

तेलंगाना राज्य का गठन होने के बाद से नदी के ऊपरी हिस्से में स्थित जलाशयों में लगातार प्रदूषण जारी है
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तेलंगाना की 250 किमी लंबी मूसी नदी हैदराबाद से 60 किमी दूर विकाराबाद की अनंतगिरी पहाड़ियों से निकलती है। यह हैदराबाद से बहते हुए उसे दो हिस्सों में बांटती है, फिर 165 किमी दूर नल्गोंडा जिले में स्थित वाडपल्ली में कृष्णा नदी से मिल जाती है। इस नदी का सफर यहीं पूरा हो जाता है। मूसी कृष्णा की प्रमुख सहायक नदियों में से एक है। जबकि, मूसी की सहायक नदी ईसा हैदराबाद के बाबूघाट पर उससे मिलती है। 1908 में मूसी में आई विनाशकारी बाढ़ के बाद निजाम ने मूसी नदी पर उस्मान सागर बांध और ईसा नदी पर हिमायत सागर बांध बनाने का आदेश दिया। निजाम ने यह आदेश 1921 से 1927 के बीच डिजाइन इंजीनियर श्री विश्वेश्वरैया और कंसल्टिंग इंजीनियर जनाब नवाब अली नवाज जंग की सलाह के आधार पर दिया था। इन बांधों ने नदियों के मार्ग को हमेशा के लिए बदल दिया। इन दोनों बांधों से बने जलाशयों से आज भी पूरे हैदराबाद शहर को पीने का पानी मिल रहा है। इसके साथ ही शहर से बाढ़ का खतरा भी खत्म हो गया।

इन जलाशयों के जलग्रहण क्षेत्र के चारों ओर 10 किमी दायरे को व्यावसायिक व रिहायशी निर्माणों और औद्योगिक गतिविधियों से बचाने के लिए आंध्र प्रदेश सरकार ने एक आदेश जारी किया। 8 मार्च 1996 को यह आदेश दो जियो-हाइड्रोलॉजिकल रिपोर्ट्स के आधार पर जारी किया गया था, जिसे ऑर्डर नंबर 111 के नाम से जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी तीन वैज्ञानिक रिपोर्टों के गहन विश्लेषण के बाद साल 2000 में दिए अपने फैसले में इस आदेश को बरकरार रखा। नतीजतन, मूसी नदी अपने उद्गम से लेकर दो बांधों तक पहुंचने तक प्रदूषण से बची रही।

लेकिन, तेलंगाना के गठन के बाद से पिछले एक दशक से लगातार आदेशों का उल्लंघन हो रहा है। जिससे नदी और ऊपरी हिस्से में स्थित जलाशयों में प्रदूषण बढ़ गया है। दोनों बांधों से नीचे हैदराबाद शहर में मूसी नदी बहुत ज्यादा प्रदूषित हो चुकी है। शहर का सारा सीवेज, औद्योगिक और ठोस कचरा भी नदी में बहाया जा रहा है, जिससे प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। प्रदूषण की वजह से झाग और बदबू से भरी, सिकुड़ती जा रही मूसी नदी के दक्षिणी तट पर ही हाई कोर्ट भी स्थित है। इसके बावजूद मूसी में प्रदूषण और अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिकाएं दशकों से हाई कोर्ट में लंबित हैं। मेरी तरफ से दायर केस रिट याचिका (पीआईएल) 32/2020 भी चार साल से लंबित है। नागरिकों ने हाई कोर्ट में एक अलग पर्यावरण पीठ स्थापित करने के लिए भी याचिकाएं दायर की हैं, जो जल निकायों में अतिक्रमण और प्रदूषण समेत पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित दूसरे लंबित मामलों का निपटारा कर सके। लेकिन, इन याचिकाओं पर भी अब तक विचार नहीं किया गया है।

जुलाई 2024 में तेलंगाना की नई सरकार ने हैदराबाद डिजास्टर रेस्पॉन्स एंड एसेट मॉनिटरिंग एजेंसी (एचवाईडीआरएए) की स्थापना की। इसके बाद से हाई कोर्ट में और भी मामले दायर किए गए हैं। ये सभी मामले मूसी नदी और दूसरे जल निकायों से अतिक्रमण हटाने के सरकार की कोशिशों के विरोध में दायर किए गए हैं। मूसी नदी से अतिक्रमण हटाने का विरोध करने वाले नए मामले रिट याचिका 27042/2024 और रिट याचिका 27255/2024, सितंबर 2024 में दायर किए गए। मेडचल-मलकजगिरी के उप्पल मंडल स्थित कोठापेट गांव के जिन घरों को हटाने के खिलाफ दो याचिकाएं दायर की गई हैं, उनकी लोकेशन से जुड़े जियो कोऑर्डिनेट्स उपलब्ध नहीं हैं। सर्वेक्षण संख्या 55 और 78/2 के अनुसार जिन जगहों पर ये घर बने हैं, सरकारी पोर्टल पर वह जगह वेटलैंड और सरकारी भूमि के रूप में चिह्नित है।

मूसी नदी के उत्तरी और दक्षिणी बेसिन में हजारों झीलें हैं, जो शहर के भीतरी हिस्से से लेकर हैदराबाद महानगर विकास प्राधिकरण (एचएमडीए) की विस्तृत सीमाओं तक फैली हुई हैं। 635 मीटर ऊंचाई पर स्थित पहाड़ी क्षेत्र से लेकर 520 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नदी तट तक, अलग-अलग ऊंचाई पर ये झीलें नहरों के जरिए जुड़ी हुई हैं।

झीलों को जोड़ने और मूसी नदी में उन्हें कई जगह गिराने वाला एक बेहतरीन नेटवर्क यहां पहले से मौजूद है। इस नेटवर्क के जरिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए था कि शहर को न तो कभी बाढ़ का सामना करना पड़े और न ही कभी सूखे का। लेकिन, सरकारों और लोगों की लापरवाही के कारण लोगों को सूखे और बाढ़ दोनों से जूझना पड़ रहा है। जिससे जीने के लिए बुनियादी सुविधां मुहैया नहीं हो पा रही हैं और लोगों की जान जा रही हैं, संपत्ति का नुकसान हो रहा है और सम्मान से जीने के अधिकार का भी उल्लंघन हो रहा है।

“प्रिंसिपल फीचर्स ऑफ हिमायत सागर रिर्जवायर” के अनुसार नदी का अधिकतम बहाव 1,60,000 क्यूसेक है। इसी तरह, “सैलिएंट फीचर्स ऑफ उस्मान सागर” के अनुसार, नदी का अधिकतम अपवाह 1,05,000 क्यूसेक है। इसके अतिरिक्त, जलग्रहण क्षेत्र से दोनों बांधों के बीच पानी का कुल बहाव 2,65,000 क्यूसेक है। शहर और नागरिकों को आपदा से बचाने के लिए मूसी नदी के उत्तरी और दक्षिणी बेसिन के अपवाह पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि मूसी नदी की जल वहन क्षमता को उसकी मूल स्थिति में लाने के लिए पर्यावरण के अनुकूल और किफायती तरीके व तकनीक अपनानी होगी।

इसके साथ ही, सरकार को परामर्श, जागरुकता कार्यक्रम और पुनर्वास जैसे सामाजिक इंजीनियरिंग के तरीकों को अपनाने की जरूरत है। यह लोगों को प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु संकट से बचाने के लिए तो जरूरी है ही, साथ ही इससे वे अथॉरिटीज की तरफ से मंडराते ध्वस्तीकरण के खतरों से भी बच सकेंगे। यह जरूरी है कि सीवेज जहां से निकल रहा है, उसके प्रबंधन के लिए वहीं अलग-अलग विकेंद्रीकृत तरीके अपनाए जाएं। रिसर्च से यह साबित हुआ है कि ठोस और तरल अपशिष्ट के प्रबंधन में विकेंद्रीकृत तरीके ज्यादा प्रभावी हैं। इसी तरह, नगरपालिका के ठोस कचरे को वॉर्ड वाइज उसके स्रोत पर ही विकेंद्रीकृत ढंग से छांटकर अलग कर दिया जाना चाहिए।

कचरे को एक जगह इकट्ठा कर उसका प्रबंधन करना न केवल खर्चीला तरीका है, बल्कि इसमें ऊर्जा की खपत भी ज्यादा होती है, ज्यादा जगह की जरूरत पड़ती है और पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। जवाहरनगर डंपयार्ड इसका सटीक उदाहरण है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण को अपूरणयीय क्षति पहुंचाई है, बल्कि इससे सार्वजनिक धन की बर्बादी भी हुई है। इस डंपयार्ड से पूंजीपतियों को जितना लाभ मिला, आम लोगों के स्वास्थ्य और सम्मान को इससे उतना ही ज्यादा नुकसान पहुंचा।

प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद के अनशन का एकमात्र उद्देश्य “अविरल और निर्मल गंगा” था। अपने इसी उद्देश्य के लिए उपवास के 112वें दिन उन्होंने अपनी जान गंवा दी। प्रोफेसर जीडी अग्रवाल के अनशन के 100वें दिन इस लेख के लेखक समेत हैदराबाद के कई कार्यकर्ताओं ने भी मूसी नदी के सबसे प्रदूषित हिस्से के किनारे अनशन किया। प्रोफेसर अग्रवाल के समर्थन में किए गए इस अनशन में मूसी को प्रदूषण से बचाने, उसे अविरल, निर्मल बनाने की मांग की गई।

मूसी नदी अविरल (निरंतर प्रवाहमान) और निर्मल (स्वच्छ) बह सके, अतिक्रमण और प्रदूषण से मुक्त हो, इसके लिए बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

किसी कॉरपोरेट प्रोजेक्ट की तरह सिर्फ औपचारिकता निभाकर जिम्मेदारियों को पूरा मान लेने से सफलता नहीं मिलेगी। विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के निर्माण में भी लोगों को शामिल किया जाना चाहिए। स्थानांतरण, पुनर्वास और पुनरुद्धार से जुड़े पूर्व-परामर्श की तैयारी आम लोगों की भागेदारी से होनी चाहिए। साथ ही हैदराबाद हाई कोर्ट और तेलंगाना सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उन हालिया फैसलों का सम्मान करना चाहिए, जिसमें जल निकायों और सार्वजनिक स्थानों से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए गए हैं।

(लेखिका लुबना सरवथा हैदराबाद स्थित सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल एंड वेलबीइंग इकोनॉमिक्स की संस्थापक निदेशक हैं )

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