सरदार सरोवर बांध से पानी न छोड़े जाने के कारण आसपास के कई गांवों में पानी भर गया है, ऐसे ही एक गांव अमलाली में जाम सिंह हिलाला का परिवार, जिन्हें डूब प्रभावितों की संख्या में शामिल नहीं किया गया था। फोटो: रहमत
सरदार सरोवर बांध से पानी न छोड़े जाने के कारण आसपास के कई गांवों में पानी भर गया है, ऐसे ही एक गांव अमलाली में जाम सिंह हिलाला का परिवार, जिन्हें डूब प्रभावितों की संख्या में शामिल नहीं किया गया था। फोटो: रहमत

नर्मदा डूब प्रभावित गांवों की संख्या सही करेगी मध्य प्रदेश सरकार

2017 में भाजपा सरकार ने डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 बताई थी, जबकि नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना था कि इन गांवों की संख्या 178 है, जिसे वर्तमान सरकार ने मान लिया है
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आखिरकार मध्य प्रदेश सरकार ने सरदार सरोवर बांध के लगातार बढ़ते जल स्तर से डूबने वाले गांवों की संख्या दुरुस्त करने का आश्वासन दिया है। सरकार ने मान लिया है कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 नहीं, बल्कि 178 है। हालांकि इन गांवों की कुल आबादी को लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने स्थिति स्पष्ट नहीं की है और इसके लिए सर्वेक्षण कराने की बात कही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) को भेजे एक पत्र में यह जानकारी दी गई है। 

इस सबंध में आंदोलन के कार्यकर्ता रहमत ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पिछली भाजपा सरकार ने 2017 में कहा था कि बांध के बैक वाटर से केवल 76 गांव के लगभग 6000 परिवार प्रभावित हो रहे हैं। जबकि ये सभी 76 गांव वास्तव में एक अकेले जिले यानी धार के अंतर्गत आते हैं। उस समय की राज्य सरकार ने बिना सर्वे किए ही इन गावों के प्रभावितों की संख्या भी घोषित कर दी।

कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद ही एनबीए ने सरकार को बताया कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 178 है और इससे लगभग 32 हजार परिवार प्रभावित हो रहे हैं। जिसे अब कमलनाथ सरकार ने मान लिया है। रहमत ने बताया कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के चेयरमैन ने माना है कि डूब प्रभावित गांवों की संख्या 76 नहीं, बल्कि 178 है। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रभावित परिवारों की संख्या अभी हम नहीं बता सकते हैं। इसके लिए एक व्यापक सर्वे किया जाएगा।

इसे नर्मदा बचाओ आंदोलन की आंशिक ही सही, लेकिन एक जीत के रूप में देखा जा रहा है। आंदोलन का आरोप है कि भाजपा सरकार ने अपने कर्मचारियों व अधिकारियों के माध्यम से इन्हीं गांवों के ग्रामीणों के झूठे शपथ पत्र भी गुजरात व केंद्र सरकार को प्रस्तुत किए थे। 

नर्मदा आंदोलन का कहना है कि मध्य प्रदेश सरकार के इस फैसले से उन हजारों परिवारों को उनका हक मिलने की संभावना बढ़ गई है, जिन्हें गैरकानूनी तरीके से डूब प्रभावित से वंचित कर दिया गया था।

दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार ने 76 गांवों के नाम तक नहीं बताए थे और न ही प्रभावितों की पूरी जानकारी दी थी। तब से लगतार नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा इस आंकड़ों को चुनौती दी जा रही है, जिसके बाद अब सरकार ने मान लिया है कि 178 गांवों में बांध प्रभावित निवास कर रहे हैं। प्रभावितों की सही संख्या का निर्धारण आंदोलन के साथ सर्वे कर किया जाएगा। 

डूब का व्यापक असर

उधर, 5 सितंबर को भी पिछोड़ी गांव में 35 मकान डूब चुके हैं, लेकिन लोग गांव में डटे हुए हैं। जांगरवा व सोंदूल की सीमा पर बसे जिन लोगों को डूब से बाहर बताया गया था, उनके मकानों में पानी भर गया है। जांगरवा के 110 परिवार टापू बन गए गांव में रहने पर मजबूर हैं और उनका बाहर से सड़क संपर्क टूट गया है। इसके अलावा अवल्दा, भवती, सोदूल, मोरकट्टा, बिजासन, अमलाली, राजघाट, भीलखेड़ा, नंदगांव, पेण्ड्रा, जामदा, कसरावद, कुण्डिया, देहदला, बगूद, पिपलुद, आवली, दतवाड़ा, मोहीपुरा, सेगांवा, एक्क,लबारा, सेमल्‍दा, कवठी, पेरखड़, उरदना, गांगली जैसे गांवों के सैकड़ों मकानों में या तो पानी घुस चुका है या फि‍र घुसने की तैयारी में है। इनमें से हजारों परिवारों का पुनर्वास शेष है। गांवों की बिजली काट दिए जाने से गांवों में पेयजल की समस्या खड़ी हो गई है।

टापू बने दर्जनों गांव

बड़वानी और धार जिले की हजारों हेक्टर जमीन टापू बन रही है। करोंदिया, बाजरीखेड़ा, खापरखेड़ा, गेहलगांव, एक्कलबारा, सेमल्दा, कसरावद, कुण्डिया, कालीबेड़ी, एकलरा, सनगांव, देहदला, सेगांवा, जांगरवा, पिछोड़ी, बोरखेड़ी, दतवाड़ा एवं अन्य गांवों की कृषि भूमि टापू बन रही है।

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