सरदार सरोवर जलाशय पर विस्थापित मछुआरों का हक खत्म करने की तैयारी!

सरदार सरोवर जलाशय पर विस्थापित मछुआरों को नहीं बाहरी लोगों को देने की तैयारी कर रही है मध्य प्रदेश सरकार
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर सरदार सरोवर बांध पीड़ित मछुआरों को संबोधित करते हुए। फोटो: एनबीए
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर सरदार सरोवर बांध पीड़ित मछुआरों को संबोधित करते हुए। फोटो: एनबीए
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मध्य प्रदेश सरकार अब बरगी जलाशय की ही तर्ज पर ही सरदार सरोवर जलाशय में भी मछली मारने का ठेका बाहरी ठेकेदारों को देने का मन बना चुकी है। इसकी एक बानगी गत दिनों राज्य सरकार द्वारा जारी की गई निविदा से जाहिर हुई,  जिसमें सभी बाहरी व्यक्तियों व संस्थाओं के नाम हैं। और इनसे कहा गया है कि वे आगामी 13 जनवरी, 2020 तक जनवरी तक निविदा भरकर व 10 लाख की निविदा शुल्क भुगतान करते हुए इस प्रक्रिया में शामिल हों। सरदार सरोवर बांध से विस्थापित मछुआरों का कहना है कि वह मछली पर रायल्टी तो वह सरकार को दे सकते हैं, लेकिन  निविदा भरना और शुल्क देना उनसे कभी नहीं होगा और न ही यह उनके लिए जरूरी लगता है। यह निविदा राज्य सरकार की सूचना नीति और नियमों के खिलाफ है और वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार ने चुनाव के दौरान तथा चुने जाने के बाद जो आश्वासन दिया था, उसका भी उल्लंघन है।

असलियत ये है कि हर हाल में राज्य सरकार पूरी तरह से सरदार सरोवर बांध के विस्थापित मछुआरों को पूरी तरह से बर्बाद कर देना चाहती है। पहले वे सरोवर बांध से विस्थापित हुए और अब सरकार उनके अधिकारों से भी वंचित करने पर तुली हुई  है। क्योंकि सरकार ने नई निविदा जारी की है इसमें बाहरी ठेकेदारों को सरदार सरोवर जलाशय में मछली पालन का अधिकार होगा। यह बात बरगी मत्स्य संघ के अध्यक्ष मुन्ना बर्मन कही।   वह कहते हैं कि बरगी में भी राज्य सरकार ने ठेका अब बाहरी ठेकेदारों को देना शुरू कर दिया है और इसका नतीजा है कि बरगी जलाशय में भी अच्छी मछली का उत्पादन खत्म हो गया है। अब राज्य सरकार सरदार सरोवर जलाशय को भी विस्थापित हुए मछुआरों की सहकारी समितियों को न देकर बाहरी लोगों को दे कर अपने पुरानी कारगुजारी दुहरा रही है।

सरदार सरोवर जलाशय में मछली पालन के अधिकार पाने के लिए बांध से विस्थापित मछुआरों की 31 सहकारी समितयों ने पिछले एक दशक की लड़ाई  के बाद इसका हक पाया है और अब राज्य सरकार है कि इसके लिए बाहरी लोगों को ठेका देने पर तुली हुई है। यही नहीं यह बात 2008 में लाई गई मध्य प्रदेश शासन की मत्स्य व्यवसाय नीति भी यही कहती है कि स्थानीय मछुआरों को ही प्राथमिकता देनी चाहिए ना की बाहरी ठेकेदार या बाहरी मछुआरों को।

सरदार सरोवर से विस्थापित मछुआरे आज भी पुनर्वास के नाम पर बस टिन शेड में पड़े हुए हैं, जहां उनके लिए कोई रोजगार नहीं है। ऐसी स्थिति में अब पानी भरने के बाद जलाशय में मत्स्याखेट का अधिकार उनको मिलना बेहद जरूरी है। धरमपुरी गांव के विक्रम, चिखल्दा के मंशाराम और नानी काकी व पिपलूद, सेमल्दा, बिजासन, दतवाडा, गांगली, राजघाट आदि सभी गाव के मछुआरों के प्रतिनिधियों ने बड़वानी के मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों के सामने अपना आक्रोश जताया और कहा कि तत्काल भोपाल के संबंधित अधिकारी और मंत्री को खबर करते हुए निविदा सूचना रद्द करवाई जाए।

इस अवसर पर नर्मदा बचाओ आंदोलन की  मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार अंतरराज्य परियोजना होते हुए भी मध्य प्रदेश सरकार को हक दिया गया है कि जलाशय में मत्स्य व्यवसाय के बारे में वही निर्णय करे। जबकि मध्य प्रदेश की नीति कहती है कि विस्थापित मछुआरों को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए तब अन्य जलाशयों में जैसा की हो रहा है वैसा ठेकेदारों के द्वारा शोषण नामंजूर है| उन्होंने यह भी बताया कि मध्य प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ जो चर्चा भोपाल में हो चुकी है, उसमें अतिरिक्त मुख्य सचिव नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के गोपाल रेड्डी ने भी आश्वासित किया था कि मछुआरों को ही हक दिया जाएगा। 

यही बात आयुक्त, नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने भी कही थी और साथ ही नर्मदा घाटी विकास मंत्री सुरेन्द्र सिंह बघेल ने भी यही बात क्षेत्र में कई बार दोहराई। इसके बावजूद विस्थिपित मछुआरों के खिलाफ राज्य सरकार निविदा जारी की है। इसका हम लगातार विरोध करेंग और इसे हर हाल में रद्द किया जाना चाहिए।

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