बिहार के सुपौल जिले में कोशी नदी की कटान झेल रहे बाढ़ पीड़ितों का कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना को लेकर विरोध जारी है।
केंद्र सरकार ने इस बार बजट में बिहार के बाढ़ नियंत्रण में सहयोग की बात कहते हुए 11,500 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की थी। सरकार का कहना था कि इसका इस्तेमाल कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना सहित राज्यों में बाढ़ नियंत्रण उपायों और सिंचाई परियोजनाओं के लिए किया जाएगा।
मेची नदी महानंदा की सहायक नदी है। इसे कोसी से जोड़कर वहां की बाढ़ को कम करने की बात कही जा रही है।
कोसी बाढ़ पीड़ितों की आवाज उठाने वाले संगठन कोशी नव निर्माण मंच के कार्यकर्ता महेंद्र यादव ने कहा कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के तहत नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी की वेबसाइट पर इस परियोजना के उपलब्ध डीपीआर व अन्य साइट पर उपलब्ध पीएफआर के दस्तावेजों में मौजूद तथ्यों में यह पाया गया है कि कोसी-मेची नदी जोड़ परियोजना बाढ़ नियंत्रण के लिए नहीं बल्कि सिंचाई की परियोजना है।
महेंद्र यादव ने कहा कि परियोजना पूरी होने के बाद बैराज से महज 5247 क्यूसेक अतिरिक्त पानी की निकासी होगी। जबकि बैराज 9 लाख क्यूसेक के डिस्चार्ज के लिए बना है। ऐसे में सिर्फ 5247 क्यूसेक पानी कम होने से बाढ़ कैसे रूकेगी?
परियोजना से महानंदा बेसिन में 2.15 लाख हेक्टेयर खरीफ में सिंचाई देने का लक्ष्य है। महेंद्र ने कहा कि महानंदा बेसिन में मानसून के वक्त बाढ़ जैसी स्थितियां होती हैं ऐसे में उस समय इस क्षेत्र को कितने पानी की जरूरत होगी। यह विचारणीय है।
वहीं, हर बार की तरह तटबंधों के बीच रहने वाले ग्रामीण इस बार भी कटाव की मार झेल रहे हैं। जिन लोगों के घर इस कटाव में उजड़ गए हैं वह दर-दर भटकने को मजबूर हैं। वहीं, इन तटबंधों के बीच किसानों की मूंग और धान की फसल नष्ट हो गई है।
पीड़ित ग्रामीण इस कटान को बाढ़ घोषित करने और पीड़ितों को बसाने की मांग को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
कोशी नव निर्माण मंच के सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र यादव ने बताया कि इस बारे में प्रशासन से 12 सूत्री मांगे रखी गई हैं। इसके तहत कम्युनिटी किचन, बाढ़ पीड़ितों को मुफ्त सहाय्य राशि (जीआर) के लिए 7000 रुपए का भुगतान, राशन से वंचित सभी परिवारों की गिनती, किसानों को फसल नुकसान के लिए अनुदान की मांग, नाव की व्यवस्था, मोबाइल डिस्पेंसरी आदि की तत्काल मांग की है।
वहीं, लंबे समय से बाढ़ पीड़ितों की तरफ से पुनर्वास, 4 हेक्टेयर तक लगान माफी आदि की व्यवस्था की मांग को भी उठाया गया है।