स्वच्छ गंगा: बांध प्रबंधक नहीं माने तो एक माह के लिए बंद कर देंगे परियोजनाएं: मिश्रा

एक सरकारी व दो प्राइवेट बांध संचालकों ने गंगा में मिनिमम वाटर डिसचार्ज नियमों को मानने से इंकार कर दिया है, जो 15 दिसंबर से लागू होने वाले हैं
स्वच्छ गंगा: बांध प्रबंधक नहीं माने तो एक माह के लिए बंद कर देंगे परियोजनाएं: मिश्रा
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उत्तराखंड में गंगा पर बने दो प्राइवेट बांध श्रीनगर (पौड़ी गढ़वाल जिला) और विष्णुप्रयाग (चमोली जिला) और एक सरकारी बांध - मनेरी भाली चरण 2 के प्रबंधन ने वाटर डिसचार्ज गाइडलाइंस को पालन करने से इंकार कर दिया है।

यह गाइडलाइंस नदी की सफाई और कायाकल्प के लिए बहुत आवश्यक हैं, जो 15 दिसंबर से लागू होने वाले हैं। इन्हें पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) नियम कहा जाता है। लेकिन तीन बांध प्रबंधन द्वारा इन्हें न मानने के बाद उठ रहे सवालों का जवाब लेने के लिए बनजोत कौर ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा से बात की:

बनजोत कौर: तीन बड़े बांधों संचालकों ने कहा है कि वे ई-प्रवाह मानदंडों को पूरा नहीं कर सकते हैं, जबकि गंगा को फिर से जीवंत और स्वच्छ बनाने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण हैं। 

आरआर मिश्रा: हम उनके साथ विचार-विमर्श कर रहे हैं। यदि वे बोर्ड पर नहीं आते हैं, तो हम उन्हें एक महीने या उससे अधिक के लिए बंद कर देंगे। हम बड़ा जुर्माना भी लगा सकते हैं।

केवल सिर्फ निजी फर्म ही नहीं, यहां तक ​​कि राज्य सरकार के उपक्रम भी मानदंडों का पालन करने में असमर्थ रहे हैं?

मनेरी भाली परियोजनाओं को चलाने वाली उत्तराखंड सरकार ने आंतरिक बैठकों में इस पर चिंता जताई है। हम उनकी चिंताओं को भी दूर करने का प्रयास कर रहे हैं।

यहां तक ​​कि कुछ केंद्रीय जल आयोग के अधिकारियों का भी कहना है कि नियम बनाते वक्त इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इससे इन परियोजनाओं में एनर्जी लॉस होगा, जिससे राजस्व का नुकसान हो सकता है?

मैं इस बात से सहमत हूं कि यदि वे मानदंडों का पालन करने के लिए अधिक पानी छोड़ते हैं तो बिजली उत्पादन कम हो जाएगा, लेकिन जब एनएमसीजी का गठन किया गया था तो उसका मुख्य उद्देश्य गंगा की अविरल धारा को बहाल करना था।

जहां तक बांध प्रबंधकों को होने वाले राजस्व के नुकसान की बात है तो वे किसी भी उपयुक्त मंच, राज्य या केंद्र सरकार से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं।

लेकिन क्या इन फर्मों का यह कहना सही नहीं है कि जब उन्होंने संबंधित सरकारों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए)  किया था, तो ये मानदंड मौजूद नहीं थे? इसलिए समझौते के मुताबिक नियम लागू नहीं किए जा सकते?

हम हर पीपीए का अलग-अलग अध्ययन नहीं कर सकते थे और उनका आकलन करने के बाद एक समान अधिसूचना नहीं ला सकते थे, जबकि समझौतों में काफी विविधता है। यदि हम ऐसा करते तो गंगा का न्यूनतम बहाव सीमा (मिनिमम आउटफ्लो लिमिट) तय करने में वर्षों लग जाते।

अगर हमने सभी पीपीए के प्रावधानों को इसमें शामिल करने की कोशिश की होती, तो यह अधिसूचना भी संभव नहीं होती।

परियोजनाओं का पक्ष लेने वालों के लिए आपका संदेश?

वे कुछ नुकसान उठाएंगे। लेकिन नदी के बड़े हित में, जो उसके अस्तित्व के लिए जिम्मेदार है, उन्हें बोर्ड पर आना चाहिए। तीन साल बाद, हम नदी के स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन करेंगे। और, हम आउटफ्लो लिमिट को और बढ़ाएंगे। इसलिए हम पीछे नहीं हटने वाले हैं। उद्योगों को भी यह बाद में अहसास होगा कि इससे सभी का हित जुड़ा है।

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