क्लीन गंगा फंड खर्च न कर सरकार ने कमाया 100 करोड़ का ब्याज

नमामि गंगे योजना पर आरटीआई में खुलासा, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा फंड में मिले पैसे के इस्तेमाल में हुई देरी
क्लीन गंगा फंड से मोदी सरकार ने 100 करोड़ का ब्याज कमाया
क्लीन गंगा फंड से मोदी सरकार ने 100 करोड़ का ब्याज कमाया
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नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद जून 2014 को केंद्र सरकार ने नमामि गंगे नाम से फ्लैगशिप कार्यक्रम शुरू किया था। कार्यक्रम का मुख्य लक्ष्य गंगा को प्रदूषण मुक्त करना, गंगा संरक्षण और गंगा का कायाकल्प करना था। इस कार्यक्रम के तहत सीवेज इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण, गंगा ग्राम, वनीकरण, रिवर फ्रंट, नदी सफाई, औद्योगिक कचरे का निस्तारण, जैव विविधता और जन जागरुकता जैसे काम होने थे। ऐसे में यह जानना दिलचस्प हो जाता है कि पिछले पांच साल में इन कामों पर कितनी प्रगति हुई। सूचना के अधिकार से हासिल दस्तावेजों के आधार पर लिखी गई किताब “वादा फरामोशी” में नमामि गंगे कार्यक्रम की पड़ताल की गई है। किताब को सूचना के अधिकार कार्यकर्ता संजॉय बासु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने मिलकर लिखा है। किताब का पहला अध्याय गंगा पर ही आधारित है। आइए इस अध्याय पर नजर डालें।

गंगा माई से कमाई

किताब में लेखक कहते हैं कि गंगा के नाम पर केंद्र सरकार न सिर्फ करोड़ों रुपए आम आदमी से दान के रूप में ले रही है बल्कि उसे खर्च न करते हुए, साल दर साल उस पैसे पर भारी ब्याज भी कमा रही है। गंगाजल को बेचकर भी पोस्ट ऑफिस के जरिए सरकार पैसा कमा रही है।

उदाहरण के लिए, नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के तहत एक फंड बनाया गया था जिसका नाम है क्लीन गंगा फंड। 6 नवंबर 2018 को जल संसाधन मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि 15 अक्टूबर 2018 तक इस फंड में ब्याज समेत 266.94 करोड़ रुपए जमा हो गए थे। किताब बताती है कि मार्च 2014 में नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते में जितना भी अनुदान और विदेशी लोन के तौर पर रुपए जमा थे उस पर 7 करोड़ 64 लाख रुपए का ब्याज सरकार का मिला। मार्च 2017 में इस खाते में आई ब्याज की रकम बढ़कर 107 करोड़ हो गई। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार ने अकेले नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के खाते से 100 करोड़ रुपए का ब्याज कमा लिया। इसका अर्थ यह है कि अनुदान मिलने के बाद पैसे के इस्तेमाल में देरी हुई और इस कारण खाते में ब्याज बढ़ता चला गया।

इतनी ही नहीं, सरकार ने पोस्ट ऑफिस के जरिए गंगाजल बेचकर दो साल में 52.36 लाख रुपए से ज्यादा कमा लिए। यह कमाई करीब 119 पोस्टल सर्कल और डिवीजन के जरिए 2016-17 और 2017-18 में 200 और 500 मिलीलीटर की 2.65 लाख से ज्यादा बोतलें बेचकर की गई।

कॉरपोरेट का कितना साथ

गंगा की सफाई को लेकर कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) के तहत कितना काम हुआ? इस प्रश्न का जवाब भी किताब में दिया गया है। जल संसाधन मंत्रालय ने 6 नवंबर 2018 को इससे संबंधित प्रश्न के जवाब में बताया कि सीएसआर के तहत गंगा ग्राम, वृक्षारोपण और सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर अब तक कोई प्रोजेक्ट नहीं बना है। शिपिंग कॉरपोरेशन इंडिया और इंडो रामा ग्रुप ने जरूर कुछ घाट और शवदाह गृह बनाए हैं। इंडसइंड बैंक ने इलाहाबाद (प्रयागराज) में सात नालों के बायोलॉजिकल ट्रीटमेंट का जिम्मा उठाया है।

विज्ञापन पर 36 करोड़ से ज्यादा खर्च

भले ही गंगा की सफाई में कोई प्रगति नहीं हुई हो लेकिन गंगा राजनीतिक प्रचार का जरिया जरूर बन गई। 2014-15 से 2018-19 के बीच प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में गंगा से संबंधित जारी हुए विज्ञापनों पर 36.47 करोड़ रुपए खर्च किए गए। साल दर साल विज्ञापन पर खर्च बढ़ता चला गया। 2014-15 में विज्ञापन पर 2.04 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। 2015-16 में यह राशि 3.34 करोड़, 2016-17 में 6.79 करोड़, 2017-18 में 11.07 करोड़ और चुनावी साल आते-आते केवल आठ महीनों में विज्ञापन की रकम बढ़कर 13 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर गई। 

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