गंगा नदी के सामने खड़े होकर जब-तब हम मुक्ति का वरदान मांगते हैं और पीठ पीछे प्लास्टिक कचरे का बोझ भी उसी में डाल रहे हैं। दुनिया भर की कुछ चुनिंदा और प्रमुख जीवनदायिनी नदियां कुल 1,404,200 टन प्लास्टिक कचरे का बोझ सहन कर रही हैं। चीन की यांगत्जे नदी के बाद भारत की गंगा नदी दुनिया में प्लास्टिक कचरे की दूसरी सबसे बड़ी वाहक है। गंगा में प्लास्टिक कचरा न पहुंचे इस पर भारत और बांग्लादेश दोनों कानूनों का सख्ती से पालन अब तक नहीं कर सके हैं।
दिल्ली स्थित गैर सरकारी संस्था टॉक्सिक लिंक ने अपनी ताजा रिपोर्ट “सिंगल यूज प्लास्टिक – द लास्ट स्ट्रॉ” में कहा है कि जिस रफ्तार से और अचेतन होकर हम प्लास्टिक का उत्पादन व इस्तेमाल कर रहे हैं संभव है कि आज से पांच वर्ष बाद 2025 में समुद्र और नदियों से तीन टन मछली निकालने पर एक टन प्लास्टिक निकलेगा। वहीं, 2050 तक यह स्थिति बदल जाएगी और मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक समुद्रों से निकलेगा।
प्लास्टिक कचरे पर नियंत्रण के लिए सूची में सबसे ऊपर सिंगल यूज प्लास्टिक का नाम है। देश के भीतर कई राज्यों ने बीते तीन से चार वर्षों में पूर्ण और आंशिक तौर पर प्रतिबंध के आदेश तो जारी किए लेकिन इनपर जमीनी काम संभव नहीं हुआ। न ही अदालतों के आदेशों को ही माना गया।
इस मामले पर टॉक्सिक लिंक के सहायक निदेशक सतीश सिन्हा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्तूबर, 2019 को कहा था कि सिंगल यूज प्लास्टिक को 2022 तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर देंगे। हालांकि जमीन पर प्रतिबंध संबंधी कानूनों के अमल की स्थिति देखकर यह लक्ष्य आसान नहीं दिखाई दे रहा है। सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक को खत्म करने के लिए कोई ठोस खाका नहीं खीचा है।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2017 में गंगा और उसकी सहायक नदियों के डूब क्षेत्र में कूड़े-कचरे की डंपिंग पर 50 हजार रुपये के जुर्माने का प्रावधान का आदेश दिया था। हालांकि, अभी तक इस आदेश का इस्तेमाल जमीन पर नहीं किया जा सका है।
टॉक्सिक लिंक की मुख्य कार्यक्रम समन्वयक प्रीति महेश कहती हैं कि नियमों को लागू करने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए गए। प्रतिबंध नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई भी नहीं की गई। प्लास्टिक थैली को हतोत्साहित किए जाने को लेकर पर्याप्त जागरुकता भी नहीं फैलाई गई। प्लास्टिक थैलियां के विकल्प मौजूद हैं। इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भी कुछ ठोस नहीं किया गया।
प्रीति महेश ने कहा कि सरकार के पास विकल्प है कि वह इस पर कदम बढ़ाए क्योंकि लोगों में सिंगल यूज प्लास्टिक के विकल्पों के प्रति रुझान है। इससे सिंगल यूज प्लास्टिक समस्या का सामधान निकल सकता है। मिनरल वाटर की प्लास्टिक बोतलें व प्लास्टिक थैलियां प्रमुख प्रदूषक बन चुकी हैं।
यूनिवर्सिटी आफ ऑक्सफोर्ड के वैश्विक आंकड़ों (2015 तक) के मुतबिक चीन की यांगत्जे नदी में 333,000 टन प्लास्टिक कचरा है वहीं भारत की गंगा में 115,000 टन प्लास्टिक कचरा है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में गंगा नदी समुद्रों तक प्लास्टिक कचरा पहुंचाने वाली दूसरी सबसे बड़ी वाहक है। 10 नदियां ऐसी हैं जो समुद्रों में 95 फीसदी प्लास्टिक कचरा पहुंचाती हैं। इनमें आठ नदिया एशिया की हैं। टॉक्सिक लिंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिवर्ष करीब 6 अरब टन प्लास्टिक यानी 91 फीसदी प्लास्टिक लैंडफिल, समुद्र-जलाशयों और जमीन पर फेंक दिया जाती है जो कि हवा, भूमि और जल के प्रदूषण का प्रमुख कारण बन रहे हैं।
इसका मतलब हुआ कि नदियों और समुद्रों के भीतर पनपने वाले जीवन की आदर्श स्थितयां मानव जनित कचरे से खत्म हो रही हैं, जिसका खामियाजा हमने भुगतना भी शुरु कर दिया है। रिपोर्ट में यह भी अनुमान है कि 2050 तक 99 फीसदी समुद्री पक्षियों के पेट में प्लास्टिक कचरा पहुंच चुका होगा। वहीं, 600 से अधिक प्रजातियों को इससे नुकसान पहुंचेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वैश्विक आंकड़ों में महाद्वीप स्तर पर नदियों में प्लास्टिक प्रदूषण आंकड़ों को देखें तो केंद्रीय और उत्तरी अमरीका की नदियों में 13,400 टन प्लास्टिक कचरा, दक्षिणी अमेरिका की नदियों में 67,400 टन प्लास्टिक कचरा, यूरोप की नदियों में 3,900 टन प्लास्टिक कचरा, अफ्रीका की नदियों में 109,200 टन प्लास्टिक कचरा, ऑस्ट्रेलिया-प्रशांत की नदियों में 300 टन प्लास्टिक कचरा है। वहीं एशिया की नदियों में सबसे ज्यादा प्रदूषण 1,210,000 टन प्लास्टिक कचरा है।
टॉक्सिक लिंक रिपोर्ट के मुताबिक बीते पचास वर्षों में दुनिया में प्लास्टिक उत्पादन में अभूतपूर्व बढोत्तरी हुई है। प्लास्टिक उत्पादन 1964 में 15 मिलियन टन था जो 2014 तक बढ़कर 311 मिलियन टन तक पहुंच गया। अगले 20 वर्षों में यह उत्पादन दोगुना हो सकता है। भारत में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर नियंत्रण के लिए बनाए गए कानून और लोगों की प्लास्टिक थैलों के प्रति व्यवहार में भी बदलाव नहीं आया है।
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में प्लास्टिक कचरा पैदा करने वाले क्षेत्रों में सबसे ऊपर पैकेजिंग सेक्टर है। 146 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा इस क्षेत्र से निकलता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर भवन एवं निर्माण क्षेत्र से 65 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। अन्य क्षेत्र से 59 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा निकलता है। इसी तरह टेक्सटाइल क्षेत्र से 47 मिलियन टन, कंज्यूमर एंड इंस्टीट्यूशनल प्रोडक्ट्स से 42 मिलियन टन, ट्रांसपोर्टेशन से 27 मिलियन टन, इलेक्ट्रिकल क्षेत्र से 18 मिलियन टन, इंडस्ट्रियल मशीनरी से 3 मिलियन टन कचरा निकलता है।
प्लास्टिक में सबसे बड़े खतरे के तौर पर सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रति आगाह करते हुए यूरोपियन कमीशन के वाइस प्रेसीडेंट फ्रांस टिम्मरमैंस कहते हैं “सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन में पांच सेकेंड लगते हैं और यह पांच मिनट के लिए इस्तेमाल होती है और इसे खत्म होने में 500 वर्ष लगते हैं।” ऐसे में हमने कई शताब्दियों के लिए ऐसा दुश्मन कचरा तैयार कर लिया है जो हमें चुटकी में नष्ट करके स्वयं इस पृथ्वी पर वास करता रहेगा।