गंगा में माइक्रो प्लास्टिक की तलाश में जुटे विशेषज्ञ

प्लास्टिक अवशेष किस तरह नदियों तक और नदियों से समुद्र तक पहुंचता है, इसका आंकड़ा जुटाने के लिए विशेषज्ञों ने गंगा की खोज यात्रा शुरू की है
गंगा में प्लास्टिक प्रदूषण का कारण जानने के लिए विशेषज्ञों की टीम वाराणसी पहुंची। फोटो: रिजवाना तबस्सुम
गंगा में प्लास्टिक प्रदूषण का कारण जानने के लिए विशेषज्ञों की टीम वाराणसी पहुंची। फोटो: रिजवाना तबस्सुम
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रिजवाना तबस्सुम

गंगा में माइक्रो प्लास्टिक पहुंचने के कारणों की तलाश के लिए नेशनल जियोग्राफिक, भारतीय वन्यजीव संस्थान और ढाका विश्वविद्यालय की टीम एक खोज यात्रा पर निकली है। यह टीम पिछले सप्ताह वाराणसी पहुंची और कई सैंपल लिए। 

इस टीम में शामिल नेशनल जियोग्राफिक की वैज्ञानिक हीथर कोल्डवे ने बताया, 'समुद्री प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है। नदियों द्वारा प्रतिवर्ष लगभग 90 लाख मीट्रिक टन प्लास्टिक अवशेष समुद्र में पहुंचता है। यह प्लास्टिक अवशेष किस तरह नदियों तक और नदियों से समुद्र तक कैसे पहुंचता है, इसका आंकड़ा जुटाना ही इस खोज यात्रा का उदेश्य है। हम अपने इस शोध आंकड़ों का उपयोग जागरुकता बढ़ाने और समाधान ढूंढ़ने में करेंगे।'

भारतीय वन्य जीव संस्थान की वरिष्ठ वैज्ञानिक रुचि बडोला ने बताया कि, 'हमारा मुख्य काम नदियों में प्लास्टिक कैसे आता है और समुद्र तक कैसे जाता है, इस पर अनुसंधान करना है। गंगा में कितना माइक्रो प्लास्टिक है इसी पर अनुसंधान किया जा रहा है।'

नेशनल जियोग्राफिक, भारतीय वन्यजीव संस्थान और ढाका विश्वविद्यालय की भागीदारी से बनी विशेषज्ञों की टीम की मुख्य सदस्य एवं पर्यावरण विशेषज्ञ जेन्ना जैमबैक ने बताया, '25 अक्टूबर को बांग्लादेश से नमूना लेना शुरू किया है। इसमें हम लोग तीन तरह से नमूने इकठ्ठा कर रहे हैं। पहला गंगा के किनारे के इलाकों से, दूसरा पानी में, तीसरा गंगा के अंदर की सतह में कितना प्लास्टिक है इसका पता लगाया जा रहा है।'

जैमबैक ने बताया कि, 'वर्ष 1950 के बाद 8 बिलियन मीट्रिक टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन दुनिया भर में हुआ है, जिसमें 40 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक है। पूरे विश्व में केवल 9 प्रतिशत प्लास्टिक का रिसाइक्लिंग अभी तक हुआ है। भारत में सबसे ज्यादा प्लास्टिक रिसाइक्लिंग होता है। 80 प्रतिशत प्लास्टिक जमीन में ही रह जाता है। किसी न किसी माध्यम से बाद में नदियों के जरिये ये समुंदर में जाकर मिल जाता है।'

जर्मनी के हेमहोल्त्ज सेंटर फॉर एनवायरमेंटल रिसर्च की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 'दुनियाभर के कुल प्लास्टिक कचरे का 90 फीसद एशिया और अफ्रीका की दस नदियों से आता है। इसमें पहले और दूसरे स्थान पर क्रमश: चीन की यांग्त्सी और भारत की गंगा नदी है।

अध्ययन के अनुसार विश्व में 20 नदियां ऐसी हैं जिनके माध्यम से महासागरों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक जाता है। इसमें पहले स्थान पर चीन की यांग्तजे नदी है, जिससे हर साल 333000 टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुंचता है। दूसरे स्थान पर गंगा नदी है जिससे 115000 टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष जाता है। तीसरे स्थान पर चीन की क्सी नदी, चौथे पर चीन की हुंग्पू नदी और पांचवे स्थान पर नाइजीरिया और कैमरून में बहने वाली क्रॉस नदी है।

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