करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं सुधरी इंदौर की नदियों की दशा
मध्य प्रदेश के अब तक कहे जाने वाले सबसे स्वच्छ शहर इंदौर की कान्ह एवं सरस्वती नदियों के प्रदूषण को सालों से मैं देखता आ रहा हूं। कहने के लिए सरकारी तौर पर इन नदियों को साफ करने की कोशिश की गई, लेकिन यह कोशिश उतनी सार्थक नहीं थी कि ये नदियां साफ हो सकें।
ये नदियां पिछले कई वर्षों के तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद अब तक बहुत ही भयावह तरीके से प्रदूषित बनी हुई है। ध्यान रहे कि ये नदियां गंगा बेसिन में शामिल हैं। लगभग 60 किलोमीटर लंबी कान्ह नदी मूसाखेड़ी व पालदा की ओर से इंदौर शहर में प्रवेश कर मध्य में कृष्णपुरा में अपने ही जैसी दूसरी प्रदूषित सरस्वती नदी से जा मिलती है।
और बाद में सांवेर से होकर उज्जैन में क्षिप्रा नदी से मिलती है। क्षिप्रा, चंबल से एवं चंबल, यमुना से मिलती है और अंत में यमुना-गंगा में समाती हैं। इन दोनों नदियों का बहाव शहरी क्षेत्र में 30-35 किलो मीटर का है, जहां इनसे 08 सहायक नदियां तथा 06 बड़े नाले जुड़ते हैं।
होल्कर शासकों ने इन सभी नदी तंत्र को इस प्रकार से प्रबंधित किया था कि वर्ष भर पानी उपलब्ध रहे। इसके लिए 27 स्टाप डेम एवं 25 घाट बनाए गए थे। साठ के दशक तक साफ स्वच्छ बहने वाली इन नदियों का उचित ध्यान नहीं दने से शहरी विकास के प्रभाव से धीरे-धीर प्रदूषित होकर नालियों में बदल गईं। वर्तमान में इन नदियों में लगभग 415 एमएलडी शहरी अपशिष्ट रोजाना मिलता है।
इन नदियों की सफाई एवं पुनर्जीवन के लिए अलग-अलग योजनाओं में जो राशि इन नदियों की सफाई पर खर्च की गई है। उसके अनुसार जवाहर लाल नेहरु राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन में 534 करोड़, 2014 के पूर्व सिंहस्थ मेले के लिए 77 करोड़, अमृत 01 योजना के तहत 273 करोड़, स्मार्ट सिटी योजना के तरफ से 50 करोड़ एवं नाला टेपिंग योजना के तहत 200 करोड़ मिले थे।
यदि इन सभी राशियों को जोड़ दिया जाए तो इस प्रकार की योजनाओं से मिली कुल धनराशि 1,134 करोड़ रुपए होती है। आश्चर्य किंतु सत्य कि इतना भारी-भरकम राशि के खर्च होने के बाद भी नदियों में गदंगी की स्थिति यथावत बनी हुई है।
इसे आखिर क्या कहा जाएगा शासकीय एवं प्रशासकीय व्यवस्था की लापरवाही या उनकी घोर असफलता। इन दोनों नदियों को एक बार पुनः नमामी गंगे मिशन के तहत शहर की इन दोनों नदियों तथा उज्जैन की क्षिप्रा नदी की सफाई के लिए 511 करोड़ रुपए की राशि फरवरी 2023 में स्वीकृत की गई थी।
इसके पीछे भावना यह है कि उज्जैन में आगामी 2028 में होने वाले सिंहस्थ मेले के पूर्व नदियां इतनी साफ हो जाएं कि क्षिप्रा के पानी से श्रद्धालुगण स्नान कर सकें। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि तब तक इन नदियों में श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगा सकेंगे कि नहीं।
ध्यान रहे कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) इंदौर भी राज्य सरकार की इस कार्य में सहायता कर रहा है। शहर की पुरानी संस्था अभ्यास मंडल वर्ष 2008 से इन नदियों की सफाई एवं इसके पुर्नजीवित करने के लिए अभियान चला रहा है।
घाटों की सर्फाइ, रैली, मानव श्रृंखला, परिचर्चा, व्याख्यान, हस्ताक्षर कार्य एवं हेरीटेज वाक आदि शहर में समय-समय पर आयोजित किए गए हैं।
इंदौर के एक सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी भी वर्षों से इस कार्य के लिए अपनी जनहित याचिकओं के माध्यम से लगातार न्यायालयीन लड़ाई लड़ रहे हैं। यही नहीं स्थानीय समाचार पत्रों में भी इन नदियों की सफाई के लिए कई अभियान श्रृंखलाए लिखी जा चुकी हैं, लेकिन अब तक नदी की स्थिति जब की तब ही बनी हुई है।