देशभर में नदियों को जीवित ईकाई मान्यता देने की मांग, सभी राजनीतिक पार्टियों को भेजा गया मसौदा

देशभर के नदी आश्रित समाज के लिए संगठनों ने नदियों और नदी घाटी समाज के अधिकारों की सुरक्षा को 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान चुनावी एजेंडे में शामिल करने की मांग उठाई
Srisailam dam in Andhra Pradesh and Telangana is among the reservoirs that has seen water levels dwindling. Photo: iStock
Srisailam dam in Andhra Pradesh and Telangana is among the reservoirs that has seen water levels dwindling. Photo: iStock
Published on

लोकसभा 2024 को चुनावी एजेंडे में पर्यावरण के मुद्दे को प्राथिमकता में लाने के लिए जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय ने सभी राजनीतिक दलों और उनके सांसदों  को अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में पीपुल्स रिवर प्रोटेक्सन बिल को शामिल करने की मांग उठाई है। 

एक ऑनलाइन प्रेस कांफ्रेंस के दौरान जन आन्दोलन के राष्ट्रीय समन्वय की नेत्री मेधा पाटकर ने कहा कि  ‘2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर हम देश की राजनीतिक पार्टियों और सांसदों के लिए भारत में नदियों और तटवर्ती अधिकारों की सुरक्षा, संरक्षण और पुनर्जीवन के उद्देश्य से एक केंद्रीय कानून का प्रस्तावित मसौदा जारी कर रहे हैं। इस मसौदे के तहत 'हम बांधों, बैराजों, तटबंधों, जलविद्युत परियोजनाओं, व्यापक वाणिज्यिक और अवैध रेत खनन, सीवेज और अपशिष्ट डंपिंग, इंटरलिंकिंग और रिवर फ्रंट परियोजनाओं के निरंतर निर्माण का विरोध करते हैं।' इनके कारण भूमि उपयोग और जल विज्ञान में परिवर्तन ने देश में सतही और अंतर-जुड़े भूजल दोनों व्यवस्थाओं पर संकट लाया है, जिससे लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और उनकी आजीविका छिन गयी है।

उन्होंने आगे कहा कि "हमारी मांग है कि हिमालय की हिमनदियों से लेकर पेरियार तक कि नदियों को एक सजीव इकाई के तौर पर मान्यता दी जाए और साथ में किसानों और खासकर छोटे धारकों, मछुआरों, खानाबदोशों, चरवाहों और बहुत सारे आदिवासी, दलित और अन्य हाशिये के समुदायों के तटवर्ती अधिकारों की रक्षा के लिए नदीय प्रशासन को मजबूत करने के साथ-साथ उनका विकेंद्रीकरण भी किया जाए।" 

4 अप्रैल को एक वेबिनार के दौरान देश के अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों ने, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के राष्ट्रीय नदी घाटी मंच द्वारा नदियों और नदी आश्रित समाज की सुरक्षा को तय करने के लिए मांग उठाई।

ऑनलाइन प्रेस वार्ता में केंद्र और राज्य सरकारों की विकास संबंधित नीतियों को नदियों के व्यापारीकरण, नीजिकरण, प्रदूषण और विनियोग के लिए जिम्मेदार ठहराया। साथ ही कहा गया कि चुनावी राजनीति में दूरगामी लक्ष्य छोड़कर  लोक-लुभावनी नीतियों का दबदबा रहता है और पर्यावरण के मुद्दे हाशिए पर रह जाते हैं।

वक्ताओं ने इस बात की तरफ भी ध्यान दिलाया कि राज्य के साथ-साथ आम नागरिकों का भी दायित्व है कि प्राकृतिक संपदा –यानी जल-जंगल-जमीन के गठजोड़, जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रख देश के प्रत्येक नागरिक के जीवन-जीविका की गारंटी सुनिश्चित करता है, उसको प्राथमिकता पर लाया जाय।

हिमधरा पर्यावरण समूह की मानसी आशेर ने बताया कि कैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बांधों और अन्य भारी अंधाधुन निर्माण परियोजनाओं के बढ़ते दबाव ने जलवायु संकट के प्रभावों से जूझ रहे हिमालयी क्षेत्र को आपदा ग्रस्त, विशेष रूप से बाढ़ क्षेत्र में बदल दिया है।  2023 एक बहुत खतरनाक साल साबित हुआ। उन्होंने कहा कि ‘लद्दाख में चल रहा संघर्ष इसी पारिस्थितिक संकट की गंभीरता को उजागर कर रहा है’ वहीं  कोसी नव निर्माण मंच, बिहार के महेंद्र यादव ने सीमा पार नदियों के कुप्रबंधन से जुड़े मुद्दों को आगे उजागर किया। उनका कहना था कि 'नदियों को नियंत्रित करने के लिए तटबांधों को झूठे समाधान के रूप में पेश किया गया है और यही बाढ़ का कारण बन गया है। तटवर्ती समुदायों को विस्थापन का सामना करना पड़ा है और यहां तक कि कोसी पीड़ित विकास प्राधिकरण जैसे तंत्र भी केवल कागजों में सीमट कर रहे गये हैं और कोई राहत या पुनर्वास प्रदान नहीं की जा रही।

मध्य प्रदेश में बरगी और बसनिया बांध संघर्ष के राजकुमार सिन्हा ने शहरी प्रदूषण और नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर अवैध रेत खनन की दोहरी समस्याओं का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, 'जब तक सार्वजनिक संवाद और शासन में भागीदारी नहीं होगी, हम इन सवालों का समाधान नहीं कर सकते हैं' और इस बात पर भी प्रकाश डाला कि जो आदिवासी अनुसूचित क्षेत्रों में जल भंडारों और जंगलों का अधिक संरक्षण करते हैं, उन्हीं को सबसे अधिक विकासात्मक नीतियों का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

मुल्लापेरियार के अनुभव से बोलते हुए ऑल केरला रिवर प्रोटेक्शन काउंसिल के एसपी रवि ने कहा कि 'उन राजनेताओं पर भरोसा करने की बजाय, जो केवल निहित स्वार्थों के लिए संघर्षों को बढ़ाते हैं, संघर्ष समाधान के लिए लोगों से लोगों के बीच बातचीत' की जरूरत है।

गुजरात स्थित पर्यावरण सुरक्षा समिति के क्रिनाकांत ने कहा, ‘ जैसा साबरमती नदी के रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट पर उच्च न्यायालय की याचिका ने उजागर किया है – कि यदि हम नदी की प्रवृति और प्रवाह को समझे बिना अवैज्ञानिक तरीके से योजनायें बनाते हैं तो नदियों और इस पर निर्भर लोगों पर नकारात्मक प्रभाव निश्चित ही पड़ेंगे’. प्रेस वार्ता का संचालन गुजरात लोक समिति की मुदिता विद्रोही ने किया जिसने प्रशासनिक प्रबंधन के ढाँचे पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि किस तरह इन जन विरोधी और प्रकृति विरोधी परियोजनाओं को लोगों पर बिना सुनवाई के लादा जाता है।

राजनीतिक पार्टियों को भेजे गए नदी संरक्षण कानून के मसौदे में संबोधित कुछ प्रमुख मुद्दे:

  • जीवन के स्रोत के रूप में नदियों के समग्र महत्व की पहचान और नदी संरक्षण को प्राथमिकता देने वाले विकास प्रतिमानों की वकालत करना।
  • अन्यायपूर्ण अतिक्रमणों (विशेषरूप से बांधों और तटबंधों) और नदियों पर पड़ने वाले प्रभावों को संबोधित करने के लिए मौजूदा कानूनों और संवैधानिक मूल्यों के साथ तालमेल बिठाना।
  • नदियों को उनके जल प्रवाह के आधार पर परिभाषित करने से लेकर, नदी के पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने और संसाधन आवंटन/साझाकरण में वितरणात्मक न्याय सुनिश्चित करने तक के सिद्धांत लागू करना।
  • गैर-मानसूनी महीनों में भी नदियों को सूखने से बचाने के उपायों के साथ, प्राथमिकता के रूप में नदियों के निरंतर और अप्रदूषित प्रवाह पर जोर देना
  • अवैध रेत खनन, शहरी, औद्योगिक और कृषि स्रोतों से होने वाले प्रदूषण पर सख्त नियंत्रण करके, नदी जलग्रहण क्षेत्रों में वनीकरण और वन आवरण की सुरक्षा का आह्वान करना/
  • नदियों और उनके पारिस्थितिक तंत्रों पर विकास गतिविधियों के प्रभावों का व्यापक मूल्यांकन और रोकथाम, निर्णय लेने में तटवर्ती समुदायों के परामर्श और सहमति को सुनिश्चित करना।
  • विस्थापन संबंधी चिंताओं का समाधान करना और प्रभावित आबादी के लिए उचित मुआवजे और पुनर्वास नीतियों की वकालत करना।
  • विभिन्न विषयों की विशेषज्ञता और वैधानिक एजेंसियों, नागरिक समाज और नदी समुदायों के प्रतिनिधित्व के साथ एक नदी बेसिन प्राधिकरण(आरबीए)स्थापना।
  • आरबीए परिभाषित कार्य, जिसमें नदी सुरक्षा और संरक्षण से संबंधित कार्यों की योजना बजट निष्पादन और निगरानी शामिल है।
  • पारिस्थितिक और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यांकन और सार्वजनिक परामर्श को शामिल करते हुए, अंतर-विषयक समितियों द्वारा प्रत्येक नदी के लिए मास्टर प्लान तैयार करना।
  • इन समितियों की जिम्मेदारियों की रूपरेखा तैयार करें, जिसमें बजट तैयार करना, निष्पादन की निगरानी और निगरानी समितियों की नियुक्ति शामिल है।
  • उल्लंघनों के खिलाफ़, कानूनी और प्रशासनिक कार्रवाई और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए, नियमित सर्वेक्षण और अनुसंधान का आह्वान।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in