अकेले सरदार सरोवर बांध ही सफेद हाथी नहीं बना है बल्कि इसके साथ मध्य प्रदेश के चार और बांध सफेद हाथी बन कर खड़े हैं। यानी नर्मदा पर कुल 30 बड़े बांध और उसकी सहायक 45 नदियों पर 135 मझोले और 3000 छोटे बांधों का निर्माण किया जाना है। अब तक नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध को मिलाकर पांच बांध बन चुके हैं। लेकिन एक बारगी इन बांधों के लाभों पर गौर करें तो समझ आया जाएगा कि ये बांध बस खड़े हो गए हैं। इससे मिलने वाला लाभ 23 फीसदी पर ही सिमट कर रह गया है।
इन पांच बांधों के निर्माण के दौरान 702 गांवों को डूबो दिया गया। ध्यान रखने वाली बात ये कि ये डुबोए गए गांव अधिकृत थे। इसके अलवा भी हर बांध में जलस्तर अधिक होने के कारण सैकड़ों और डुबे लेकिन उनका रिकॉर्ड सरकार के पास नहीं है। अब इन बांधों में चार बांध तो बहुउद्देशीय थे और एक केवल जल विद्युत के लिए बनाया गया था। इन बांधों से अधिकृत रूप से 6.69 लाख हेक्टेयर सिंचाई किया जाना था। लेकिन इसका औसत केवल 23 फीसदी ही अब तक सिंचाई हो पा रही है। इस संबंध इन बांधों के खिलाफ पिछले साढ़े तीन दशक से संघषरत नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर कहती हैं कि इन बांधों के निर्माण से लाभ कम नुकसान अधिक हुआ है अब तक तो यही दर्शाता है। उनका कहना था कि सरकार जब प्राकृतिक आपदा आती है तो वह आपदा प्रबंधन का कार्य करती है लेकिन अब तक सरदार सरोवर बाध में 178 गांव डूब गए हैं और अब तक कहीं दूर दूर तक आपदा प्रबंधन टीम नहीं है। यह दोहरा बर्ताव क्यों?
आंदोलन के प्रवक्ता रहमत ने बताया कि पांच बांधों में से बिजली भी बनाई जा रही है लेकिन जितना कहा गया था उससे बीस फीसदी भी नहीं मिल पा रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि सरदार सरोवर बांध से कुल 21 हजार मेगावट बिजली का निर्माण किया जाता है और नर्मदा पंचाट के अनुसार मध्य प्रदेश को इसका 56 फीसदी बिजली मिलनी चाहिए लेकिन इसका अब तक प्रदेश का एक प्रतिशत भी नहीं मिला है। हालांकि समय-समय पर प्रदेश सरकार गुजरात सरकार से इसकी गुहार लगाती रहती है। इसी प्रकार बरगी बांध में भी कहा गया था कि साढ़े चार लाख हेक्टेयर खेती सिंचित होगी लेकिन अब तक केवल 60 से हजार हेक्टेयर ही सिंचित हो रहा है। इसके अलावा इस बांध से कहा गया था इसके निर्माण के बाद प्रदेश के दो जिलों में रीवा व सतना के 805 गांवों पीने का पानी पहुंचाया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, सिंचाई के सभी दावे सिर्फ दावे बनकर रह गए।