चीन का सबसे बड़ा बांध, भारत-बांग्लादेश के लिए खतरा!
चीन ने यारलुंग सांगपो (ब्रह्मपुत्र) नदी पर तिब्बत में एक विशाल जल विद्युत परियोजना को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाया जाएगा। चीन का यह फैसला न सिर्फ भारत और बांग्लादेश के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि यह पृथ्वी ग्रह के लिए भी विनाशकारी हो सकता है।
चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, तिब्बती पठार के पूर्वी छोर पर ब्रह्मपुत्र नदी पर बनने वाले इस बाँध का लक्ष्य सालाना 300 बिलियन किलोवाट-घंटा बिजली पैदा करना है जो मध्य चीन के हुबेई प्रांत में यांग्जी नदी पर बने थ्री गॉर्जेस बाँध की क्षमता के तीन गुना से भी ज़्यादा है।
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2021 में अपनी तिब्बत यात्रा के दौरान एक मेगा बाँध के निर्माण की बात कही थी। हांगकांग स्थित साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, इस परियोजना में कुल निवेश 137 बिलियन डॉलर से अधिक हो सकता है।
पृथ्वी की गति हो जाएगी धीमी
इस प्रस्तावित विशालकाय बांध का पृथ्वी की घूर्णन गति पर कैसा और कितना दुष्प्रभाव पड़ सकता है, इसका अंदाजा नासा द्वारा चीन के हुबेई प्रांत में यांग्जी नदी पर बने विशाल थ्री गॉर्ज बाँध के आकलन को देखते हुए लगाया जा सकता है।
नासा के अनुसार इस बांध से पृथ्वी का घूर्णन बदल गया है, जिससे दिन 0.06 माइक्रो सेकंड बढ़ गए हैं। यह बांध 185 मीटर ऊंचा, 2 वर्ग किलोमीटर से अधिक विस्तृत और 40 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी से भरा रहता है।
यह पृथ्वी पर सबसे ज्यादा 22,500 मेगावाट बिजली पैदा करने वाला एक शक्तिशाली जलविद्युत संयंत्र है, जिसने 2020 में 112 टेरावाट प्रति घंटा के साथ रिकॉर्ड तोड़ दिया।
नासा के वैज्ञानिक बेंजामिन फोंग चाओ के अनुसार, बांध का जल विस्थापन पृथ्वी के द्रव्यमान को प्रभावित करता है, जिससे इसका घूर्णन धीमा हो जाता है, क्योंकि भूजल निष्कर्षण और विशाल बांधों के मापनीय प्रभाव होते हैं, जैसे पृथ्वी की धुरी को स्थानांतरित करना और समुद्र के स्तर को प्रभावित करना।
उदाहरण के लिए, 2004 की इंडोनेशियाई सुनामी ने उत्तरी ध्रुव को 2.5 सेमी तक विस्थापित कर दिया, जो मानव निर्मित परिवर्तनों के समानांतर है।
हालांकि ग्रहों की गतिशीलता पर मानवीय संरचनाओं का यह प्रभाव विज्ञान कथा के सदृश्य लगता है, परंतु अब यह वास्तविक है। थ्री गॉर्जेस डैम इस बात का उदाहरण है कि कैसे मानव नवाचार पृथ्वी की प्रणालियों को जानबूझकर या अन्यथा नया रूप दे सकते हैं।
भारत और बांग्लादेश पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव
तिब्बत में बनने जा रहे इस बांध का भारत और बांग्लादेश दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ने की आशंका है। ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से अरुणाचल प्रदेश की जिस घाटी में प्रवेश करती है, वहां एक बड़ा और शार्प यू-टर्न लेती है। इसी जगह पर बांध का निर्माण किया जाना है।
चीन के इस प्रस्तावित बांध की अत्यधिक जल-संग्रहण क्षमता भारत और बांग्लादेश के लिए चिंताजनक है क्योंकि बांध बनने के बाद न सिर्फ नदी के बहाव पर चीन का नियंत्रण हो जाएगा, बल्कि वह अपनी इच्छानुसार जब-तब नदी का प्रवाह इस बांध या इसके प्राकृतिक बहाव की ओर मोड़ सकेगा। इससे भारत और बांग्लादेश के सामने अनेक तरह की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी।
यह चीन की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वह ब्रह्मपुत्र का कितना पानी छोड़े और कितना रोक ले। यदि चीन ने कम पानी छोड़ा, तो इससे भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए जल का संकट पैदा हो जाएगा; और अगर वह ज्यादा पानी छोड़ दे, तो इससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ आने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है।
चीन के साथ हुई संधि
साल 2006 में भारत और चीन के बीच एक संधि हुई थी, जिसमें नदी से जुड़े ट्रांस-बॉर्डर मुद्दों पर एक विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र तैयार किया गया था। जिसके तहत चीन बाढ़ के मौसम में ब्रह्मपुत्र और सतलज से जुड़े जल-प्रवाह का डाटा भारत को उपलब्ध कराता है। इस मुद्दे पर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच 18 दिसंबर को हुई विशेष प्रतिनिधि बैठक में भी चर्चा हुई थी।
चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि उसने परियोजना की सुरक्षा, पारिस्थितिक और पर्यावरण संरक्षण के लिए सुरक्षा उपाय किए हैं और वह अपने पड़ोसी देशों के साथ संचार जारी रखेगा। साथ ही आपदा की रोकथाम और राहत पर सहयोग बढ़ाएगा। लेकिन इसके बावजूद भी भारत-चीन के बीच सीमा पर आए दिन होती सैन्य झड़पों और कूटनीतिक स्तर पर तनावपूर्ण स्थिति के मद्देनजर स्थिति की गंभीरता को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है।