चमोली त्रासदी : तपोवन गांव में बैराज के गेट बंद थे, एनटीपीसी पर आपराधिक लापरवाही का आरोप

उत्तराखंड में चमोली त्रासदी के जद वाले गांवों का दौरा करने के बाद माटू संगठन ने बताया कि ग्रामीणों का एक सुर में कहना है कि उन्हें राहत सामग्री और बांध किसी कीमत पर नहीं चाहिए।
चमोली त्रासदी : तपोवन गांव में बैराज के गेट बंद थे, एनटीपीसी पर आपराधिक लापरवाही का आरोप
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"उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी, 2021 को तपोवन गांव स्थित बैराज के गेट बंद थे। इस कारण तेजी से बहता पानी गेट से टकराकर बांयी ओर स्थित एनटीपीसी की निर्माणाधीन पनबिजली परियोजना के हेडरेस्ट टनल में घुस गया जिसमें सैकड़ों मजदूरों की जानें चली गईं।"

यह प्राथमिक निष्कर्ष माटू जनसंगठन ने तपोवन व रैणी गांव का दौरा करके निकाला है। संगठन के विमल भाई ने डाउन टू अर्थ से बताया कि यह दुर्घटना पूरी तरह सुरक्षा प्रबंधों की अवहेलना और आपराधिक लापरवाही का नतीजा है। महज ग्लेशियर टूटने या ग्लोबल वार्मिंग कहकर इसे छुपाया नहीं जा सकता। हमने तपोवन गांव व रैणी गांव का दौरा किया। जहां पर ऋषि गंगा परियोजना का पावर हाउस है। उस दौरे में रैणी गांव के लोगों ने कहा उन्हें किसी तरह के राहत सामग्री की जरूरत नहीं है। इसके उलट गांव वालों ने ही यहां पर आने वाले लोगों को अपने घरों में ठहराया है। सुरक्षाबलों और अन्यों को जलाने के लिए लकड़िया दी हैं। हमें बस यह बांध नहीं चाहिए। अब इस बांध को बंद होना चाहिए।
माटू संगठन की ओर से विमल भाई और दिनेश पंवार ने 16 फरवरी, 2021 को तपोवन और रैणी गांव का दौरा किया है। संगठन ने परियोजना के कामकाज और 7 फरवरी, 2021 की त्रासदी के बीच संबंध जोड़ने वाले कई तथ्यों को जोड़ते हुए एनटीपीसी और सरकार पर लापरवाही के आरोप लगाए हैं।  
संगठन ने अपने जारी बयान में कहा है कि एनटीपीसी को 8 फरवरी 2005 में तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना बनाने के लिए पर्यावरण स्वीकृति मिली थी। 2011 में यह परियोजना के पूरा होने की संभावित तारीख थी हालांकि नाजुक पर्यावरणीय स्थितियों के कारण रूकती रही है। मसलन सन 2011, 2012 व 2013 में काफर डैम टूटा, बैराज को कई बार नुकसान पहुंचा।
विमल भाई ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सन 2009 में हैड रेस्ट टनल को बनाने के लिए लाई गई 200 करोड़ की टनल बोरिंग मशीन टनल में ही अटक गई। फिर 2016 में दोबारा अटक गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी तक वही खड़ी है। इसी दौरान जोशीमठ के नीचे से टनल बोरिंग के कारण एक बहुत बड़ा पानी का स्त्रोत फूटा जो कि जोशीमठ के नीचे के जल भंडार को खत्म कर रहा है। इस दौरान संभवत कंपनी में टनल का डिजाइन भी बदला है। जिसकी कोई आकलन रिपोर्ट सामने नहीं आई है। परियोजना की लागत लगातार बढ़ती जा रही है। पर्यावरणीय परिस्थितियां परियोजना को नकार रही है।
उन्होंने बताया कि 1979 में प्रशासन स्थानीय प्रशासन द्वारा सड़क निर्माण पर भी आपत्ति जताई गई थी। क्योंकि जोशीमठ एक बड़े लैंडस्लाइड पर बसा हुआ शहर है। अभी यहां बड़े निर्माण कार्य तेजी से चालू है। तो क्या हम मात्र प्राकृतिक आपदा को दोष देकर अपनी ज़िम्मेदारी से अलग हटेंगे?
माटू जनसंगठन की ओर से सवाल उठाया गया है कि इतनी बड़ी परियोजनाओं में कोई सुरक्षा प्रबंध और पूर्व चेतावनी व्यवस्था का न होना त्रासदियों को दावत देने जैसा है। 
उत्तराखंड में बांध संबंधी अन्य दुर्घटनाओं के बारे में कोई सुरक्षा प्रणाली अब तक नहीं बनाई गई है। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन 2010 में टिहरी बांध को संभालने में नाकामयाब रही थी। उसकी टनल में मजदूरों के मारे जाने की कई बार घटनाएं हुई हैं। इसी तरह से 2012 में अस्सी गंगा में बादल फटने पर भी कोई अलार्म सिस्टम नहीं था। कल्दी गाड (9.5 मेगावाट) परियोजना और मनेरी-भाली चरण-2, दोनों ही उत्तराखंड जल विद्युत निगम की परियोजनाएं थी। मगर पानी कल्दीगाड से मनेरी भाली तक पानी को आने में घंटे भर से भी ज्यादा समय लगा। मगर तब भी मनेरी भाली दो के गेट नहीं खुल पाए थे।
2006 में भी मनेरी भाली परियोजनाओ से 6 लोग मारे गए। अचानक से पानी छोड़ने के कारण। 2013 की आपदा ने उत्तराखंड सहित पूरे देश को हिला दिया था। संसार भर में से हर तरह की राहत यहां पहुंची। अफसोस अर्लीअलार्म सिस्टम तब भी मौजूद नहीं रहा और 7 फरवरी 2021 को भी नही था। 
संगठन का कहना है कि 13.5 मेगा वाट की ऋषि गंगा परियोजना में लगातार दुर्घटनाएं होती रही हैं। परियोजना प्रयोक्ता कि 2011 में चट्टान धसकने से मृत्यु हुई। उसके बाद भी अनेक दुर्घटनाओं में परियोजना को काफी नुकसान पहुंचा। यह सब बताता है कि पूरे क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थिति किया काफी नाजुक है।
माटू संगठन ने अपनी मांगों में कहा है कि नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) पर प्रथम दृष्टया सरकार की ओर से गैर इरादतन हत्या का मुकदमा दायर किया जाए। साथ ही इस पूरे प्रकरण की जांच तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा एक रिटायर्ड हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज की अध्यक्षता में हो। इसके अलावा मजदूरों के परिवारों को प्रति परिवार एक स्थाई रोजगार व 50 लाख करमुक्त राशि दी जाए। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय तुरंत इस पर स्वयं संज्ञान लेकर इस संदर्भ में लंबित मुकदमे को अंजाम दे और दोनों परियोजनाएं बंद होनी ही चाहिए।

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