स्वच्छ गंगा: नदी घाटी के शहरों के लिए चुनार बन सकता है रोल मॉडल?

गंगा नदी घाटी में बसे शहरों के लिए मल मूत्र से होने वाला प्रदूषण एक बड़ी समस्या बन गया है, इसके लिए कुछ प्रयास हो रहे हैं, लेकिन क्या ये कारगर साबित होंगे
Photo: Wikimedia commons
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शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला मानव मल मूत्र का दूषित पानी गंगा सहित देश में नदियों के प्रदूषण का एक प्रमुख स्रोत है। समस्या की जड़ यह है कि भारत के शहरों में मलमूत्र के उत्सर्जन का सही ढंग से प्रबंध नहीं किया जाता है। जो जल प्रदूषण तो बढ़ा ही रहा है। साथ ही, स्वास्थ्य के लिए खतरा बना हुआ है। पहले और बाद में चलाए गए लगभग सभी राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रमों में ज्यादातर का फोकस शौचालय निर्माण, सीवरेज नेटवर्क और सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) पर रहा है।

दो अक्टूबर 2019 में भारत को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित कर दिया गया। हालांकि यह दावा सही है या नहीं, लेकिन यह सही है कि देश में 10 करोड़ शौचालय बने हैं। यह देखते हुए कि देश में केवल 28% आबादी सीवरेज सिस्टम (2011 की जनगणना) से जुड़ी थी, इन शौचालयों का अधिकांश हिस्सा सेप्टिक टैंक जैसी ऑनसाइट सफाई व्यवस्था से जुड़ा होगा। इन शौचालयों से निकलने वाला कचरा नदियों-नालों को प्रदूषित करता रहेगा और मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को और बढ़ाएगा। लेकिन हम अपनी नदियों और जल निकायों को प्रदूषित करना जारी नहीं रख सकते हैं, जो हमारे पीने के पानी का एक बड़ा स्रोत भी है।

सीवरेज सिस्टम के न होने के कारण मल मूत्र के कीचड़ को सुरक्षित तरीके से प्रबंधन की जरूरत है। इसमें से एक नीति को एफएसएसएम कहा जाता है, जिसमें शौचालय के साथ ही मल मूत्र के कीचड़ को इकट्ठा किया जाता है और उसे फिर ट्रीटमेंट प्लांट (एफएसटीपी) तक पहुंचाया जाता है। इस संबंध में 2017 में एक राष्ट्रीय नीति भी अधिसूचित की गई है। कई राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान में एफएसएसएम नीति लागू है। लेह, सिन्नर, वाई, नरसापुर, वारांगल, देवनहाली (कर्नाटक) में पॉयलट एफएसटीपी बनाए गए हैं, जो शहरी विकास मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे अमृत मिशन के तहत बने हैं और एफएसएसएम को एक कंपोनेंट के तौर पर फंडिंग भी की जा रही है।  पिछले 4 वर्षों के दौरान इस तथ्य को मान लिया गया है कि शहरी भारत के सभी घरों को सीवरेज नेटवर्क से जोड़ना व्यावहारिक नहीं है। एक पूरे शहर को सीवरेज सिस्टम से जोड़ना एक थकाऊ काम है, क्योंकि इसके लिए न केवल शहर की पूरी सड़कों को खोदने की जरूरत होती है, बल्कि सभी घरों को सीवरेज नेटवर्क से जोड़ने की भी जरूरत होती है। चूंकि हमारी घनी आबादी वाली बस्तियों की गलियां संकीर्ण हैं और अनियोजित हैं। हाल ही में दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में ओडिशा के एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने माना कि एक शहर में सीवरेज नेटवर्क बिछाना ओपन हार्ट सर्जरी करने के बराबर जोखिम भरा है। हमें अपशिष्ट जल और जल निकासी का प्रबंधन करने के लिए वैकल्पिक समाधान की आवश्यकता है।

फेकल स्लज एंड सेप्टेज मैनेजमेंट: एक समाधान

नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) में भी एफएसएसएम की आवश्यकता को मान लिया गया है, क्योंकि उत्तर प्रदेश के चुनार शहर में एक एफएसटीपी के लिए फंड की स्वीकृति दी गई है। इस प्रोजेक्ट के लिए एनएमसीजी ने सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट) को नॉलेज पार्टनर नियुक्त किया है।

यह परियोजना अद्वितीय है, क्योंकि इसमें स्वच्छता के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है। जैसे, सेप्टिक टैंक खाली करना, ऑनसाइट स्वच्छता प्रणाली का ब्यौरा, सभी संपत्तियों की जियो टैगिंग, वेब आधारित एमआईएस आदि। इसके अलावा यहां से निकलने वाली साफ पानी का इस्तेमाल वृक्षारोपण जैसे कार्यों के लिए किया जाएगा। इस परियोजना के लिए निविदा जारी कर दी गई है। इस ट्रीटमेंट प्लांट के चालू होने तक एक अंतरिम व्यवस्था की गई है, जिसमें शहर के जल स्त्रोतों और लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित किए बिना मल कीचड़ को सुरक्षित रूप से निपटाने का इंतजाम किया गया है।

कई राज्य अपने शहरी क्षेत्रों में एफएसटीपी बनाने के लिए कड़े प्रयास कर रहे हैं। ओडिशा राज्य इसका नेतृत्व कर रहा है। यहां अमृत फंडिंग के माध्यम से 10 एफएसटीपी बन चुके हैं और 26 एफएसटीपी के निविदा की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। अगर हम गंगा बेसिन को देखें, तो उत्तर प्रदेश में पहले से ही झाँसी में एक एफएसटीपी है, जिसे नगर निगम की पहल पर बनाया गया है।

उत्तर प्रदेश जल निगम को अमृत फंडिंग के माध्यम से राज्य में एफएसटीपी की संख्या बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है। वर्तमान में उन्नाव में एक एफएसटीपी परीक्षण चरण के तहत लगा है। लोनी, रायबरेली और लखीमपुर में एफएसटीपी के लिए ठेके दिए जा चुके हैं। अन्य 52 शहरों के लिए एफएसटीपी की योजना बनाई गई है, जिसमें से 6 शहरों के लिए निविदाएं पहले से ही जारी की चुकी हैं। 

चुनौतियां अभी भी शेष हैं

हालांकि एफएसटीपी बनने से कुछ समाधान हो जाएगा, लेकिन चुनौती इस बात की भी है कि सेप्टिक टैंक सही ढ़ंग से बने हैं या नहीं। उनमें बीआईएस कोड का पालन हो रहा है या नहीं। इन सेप्टिक टैंकों को नियमित रूप से खाली करने की जरूरत होती है। यदि 2 से 3 साल के बीच इन्हें खाली नहीं किया गया तो ये प्रदूषण फैला सकते हैं और लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकते हैं। इसके अलावा एफएसएसएम में किचन या बाथरूम से निकलने वाले गंदे पानी के बारे में कोई बात नहीं की गई है, जो जल स्त्रोतों को प्रदूषित करते हैं या स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इस गंदे पानी की वजह से मच्छर पनपते हैं। ऐसे में, इन्हें सीवर से जुड़ने जैसे समाधान उपलब्ध है। शहरी स्वच्छता और नदी प्रदूषण को कम करने के लिए एक समग्र नीति के साथ-साथ गंगा बेसिन के लिए ठोस दिशानिर्देश और उन्हें लागू करने की भी सख्त जरूरत है।

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