चुनाव में एक बार फिर गंगा राजनीतिक दलों के एजेंडे पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही नहीं, कांग्रेस की प्रियंका गांधी भी गंगा को याद कर चुकी हैं। लेकिन गंगा की लड़ाई लड़ रहे आत्मबोधानंद की सुध किसी नेता ने नहीं ली हैं। स्वच्छ एवं निर्मल गंगा के लिए लगभग 174 दिन से अनशनरत आत्मबोधानंद ने अब घोषणा की है कि वह 27 अप्रैल से जल भी त्याग देंगे।
आत्मबोधानंद के प्रति सरकार की बेरुखी तब है, जब इससे पहले ऐसे ही अनशनरत प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ स्वामी सानंद की मौत हो चुकी है और उनकी मौत के बाद सरकार श्रद्धांजलि भी अर्पित कर चुकी है। बावजूद इसके, स्वामी आत्मबोधानंद की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया है।
स्वामी आत्मबोधानंद हरिद्वार के मातृसदन में अनशनरत हैं। मातृसदन के स्वामी शिवानंद कहते हैं कि चुनावी रैलियों से कुछ ही दूरी पर हरिद्वार के मातृसदन में गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए भोजन-पानी छोड़ अनशन पर बैठे ब्रह्मचारी आत्मबोधा नंद से मिलने कोई नहीं आया। गंगा के लिए अनशन कर रहे इस बेटे की चिंता किसी को नहीं थी। गंगा का ये पुत्र कहता है कि मेरी चिंता भले न करो, लेकिन मां गंगा की चिंता तो करो।
पिछले वर्ष स्वामी सानंद की अनशन से मृत्यु के बाद ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने गंगा की खातिर अनशन को आगे बढ़ाया। 25 अप्रैल को उनके अनशन के 177 दिन पूरे हो जाएंगे। उनके अनशन का कहीं-कोई असर पड़ता न देख, प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की तरह ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने भी 27 अप्रैल से जल त्यागने का ऐलान किया है।
उल्लेखनीय है कि 111 दिनों के अनशन के बाद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने भी जल त्याग दिया था। हालत बिगड़ने पर उन्हें ऋषिकेश एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी मृत्यु हो गई। ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद भी अब इसी राह पर बढ़ चले हैं।
19 अप्रैल को ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने प्रधानमंत्री को इस बारे में पत्र भी लिखा। जिसमें उन्होंने गंगा की लगातार उपेक्षा और उनके अनशन की सुध न लेने पर 27 अप्रैल से जल त्यागने की बात लिखी।
उनकी मांग है कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर मौजूद और प्रस्तावित सभी बांधों को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाएगा। गंगा के किनारों पर खनन और जंगल काटने पर प्रतिबंध लगाया जाए। साथ ही गंगा संरक्षण के लिए गंगा एक्ट को लागू किया जाएगा। गंगा की अविरलता-निर्मलता से जुड़ी मांगों को लेकर 9 पन्नों का पत्र उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा है। उन्हें उम्मीद है कि शायद इस पत्र के बाद और पूर्व में प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की मृत्यु को देखते हुए, सरकार बातचीत के लिए आगे आए।