
यमुना नदी का नाम लेते ही दिल्ली की 22 किलोमीट लंबी यमुना की वह तस्वीर सामने आती है, जिसमें पूरी यमुना का 80 फीसदी प्रदूषण है। बीते पांच सालों (2017 से 2021 के बीच) में करीब 6,500 करोड़ रुपए दिल्ली की यमुना को साफ करने के लिए खर्च कर दिए गए लेकिन हालत जस की तस है। ऐसा क्यों है?
"अब भी यमुना से जुड़ने वाले करीब 22 बरसाती नालों में वैध और अवैध कॉलोनियों का सीवेज सीधे पहुंच रहा है जो आखिरकार सीधा बिना उपचार के नदी में गिर रहा है। इतना ही नहीं जिस गंदे पानी का उपचार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के द्वारा किया जा रहा है, वह पैसा और संसाधन भी बर्बाद हो रहा है क्योंकि उपचारित किए गए पानी को भी सीवेज वाले बरसाती नालों में डाल दिया जाता है।"
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) की ओर से राजस्थान के निमली में 27 फरवरी को अनिल अग्रवाल डायलॉग 2025 के एक सत्र में यह तथ्य सामने आया।
सीएसई के वाटर यूनिट की एक्सपर्ट सुष्मिता सेनगुप्त ने बताया "सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम मौजूदा समय में दिल्ली की आबादी के बारे में सही आंकड़े नहीं जानते। ऐसे में यह निष्कर्ष निकालना बेहद कठिन है कि आखिर में दिल्ली में रोजाना कितना वेस्टवाटर पैदा होता है।"
सत्र में यह तथ्य रखा गया " दिल्ली में 185 लीटर प्रति व्यक्ति रोजाना वाटर सप्लाई होती है और कुल वाटर सप्लाई का 80 फीसदी पानी वेस्टवाटर बनकर बाहर निकलता है। हालांकि, हमें दिल्ली की वास्तविक जनसंख्या का कोई अंदाजा नहीं है। ऐसे में वास्तविकता में कितनी मात्रा में वेस्टवाटर पैदा हो रहा है और कितना ट्रीट किया जा रहा है, यह पता नहीं किया जा सकता।"
सेनगुप्त ने बताया "अलग-अलग एजेंसियों के वेस्ट वाटर के आंकड़ों में भी भिन्नता है। मसलन सीपीसीबी के 2023 के आंकड़ों में कहा गया कि करीब 3600 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) घरेलू सीवेज पैदा होता है। जबकि इकोनॉमिक सर्वे 2023-24 में यह आंकड़ा 3632 एमएलडी का था। वहीं, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) ने फरवरी, 2024 में अपने आंकड़े में 3600 एमएलडी बताया है।"
सत्र में जानकारी दी गई कि लाखों लोग दिल्ली में अवैध कॉलोनियों में रहते हैं और उन कॉलोनियों से पैदा होने वाला सीवेज सीधा यमुना में पहुंचता है।
सत्र के दौरान यह तथ्य भी सामने आया कि वाटर सप्लाई के दौरान 40 से 60 फीसदी पानी बर्बाद हो जाता है। ऐसे में लोग ग्राउंडवाटर और टैंकर्स पर निर्भर हैं। यह अतिरिक्त पानी की सप्लाई भी वेस्टवाटर बनकर निकलती है। ऐसे में इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है।
सत्र के दौरान यह चौंकाने वाला तथ्य भी सामने आया कि दिल्ली के दो नालों नजफगढ़ और शहादरा से 80 फीसदी प्रदूषण यमुना में पहुंच रहा है। यदि अन्य तीन नालों सरिताविहार, दिल्ली गेट और बारापुला को भी जोड़ दिया जाए तो करीब 92 फीसदी प्रदूषण यमुना में इन्हीं नालों से जा रहा है।
सत्र में बताया गया कि यमुना विहार एसटीपी के पास ट्रीट किए गए पानी को एक इंटरसेप्टर ड्रेन में डाल दिया गया जो ड्रेन पहले से ही प्रदूषित है। इसका मतलब हुआ कि उपचारित और बिना उपचार वाले पानी की मिक्सिंग हो रही है और अंत में यमुना में प्रदूषित पानी ही पहुंच रहा है।
इकोनॉमिक सर्वे 2021-22 के मुताबिक दिल्ली की 30 फीसदी शहरी आबादी अवैध कॉलोनियों में रहती है। इन क्षेत्रों में शौचालय सीवर लाइनों से नहीं जुड़े हुए हैं। टैंकर्स इन शौचालयों के टैंक को खाली करते हैं और यमुना से जुड़ने वाले बरसाती नालों में गिरा देते हैं।
एसटीपी का गैप
इस वक्त दिल्ली में 37 एसटीपी हैं जिनकी यूटिलाइजिंग कैपेसिटी 85 फीसदी है और इस वक्त वह शहर के 70 फीसदी वेस्टवाटर का ट्रीटमेंट करते हैं। मार्च, 2025 तक एसटीपी की क्षमता बढ़कर 100 फीसदी वेस्टवाटर ट्रीटमेंट की हो जाएगी जो यमुना नदी के लिए एक अच्छी बात होगी। साथ ही एसटीपी के उपचार मानकों को भी एनजीटी के आदेश के अनुरूप कड़ा बनाया जा रहा है। इसके अलावा इंटरसेप्टर बनाया जा रहा है। अवैध कॉलोनियों में सीवेज पाइपलाइन भी डाली जा रही है। फीकल स्लज के उपचार का भी काम चल रहा है और 28 औद्योगिक क्षेत्रों में से 17 क्षेत्रों के गंदे जल का उपचार भी किया जा रहा है।
आगे क्या
सेनगुप्त ने कहा कि यहां बात सरकार के इरादों या मंशा पर नहीं है बल्कि गौर करने वाला यह है कि तमाम कोशिशों के बाद भी यमुना गंदी क्यों है? सरकार को वेस्टवाटर को 100 फीसदी रिसाइकल और रीयूज करना होगा। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उपचार के बाद पानी को ड्रेन में नहीं बल्कि सीधा नदी में छोड़ा जाएगा और मानकों को और अधिक कड़ा बनाना होगा।
इसके अलावा ध्यान सिर्फ ड्रेन के आउटलेट्स से निकलने वाले पानी की गुणवत्ता पर ही नहीं बल्कि मात्रा पर भी देना होगा। क्योंकि ड्रेन के पानी की मात्रा भी मायने रखती है।
यह स्वीकार करना होगा कि बड़ी संख्या में लोग सीवेज नेटवर्क से नहीं जुड़े हैं और जितने भी वाहन स्लज को खाली करने के लिए मौजूद हैं उन्हें रजिस्टर्ड करना चाहिए। साथ ही मलजल को ट्रीटमेंट प्वाइंट तक पहुंचाना चाहिए ताकि उसका उपचार और इस्तेमाल किया जा सके।