“सड़क चौड़ी करने के लिए जहां पिलर और पुश्ते बनाकर काम हो सकता था, वहां भी अंदर की तरफ पहाड़ को काटा गया। जहां जरूरत नहीं थी, वहां भी पहाड़ काटे गए। ऑल वेदर रोड के नाम पर पूरे हिमालयी क्षेत्र में जो तोड़फोड़ हुई है, ये पहाड़ पर अब तक की सबसे बड़ी आपदा है”।
टिहरी के प्रगतिशील किसान और बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता विजय जड़धारी की आवाज़ ये कहते हुए कुछ कांपती सी है।
जड़धारी कहते हैं कि अंदर की तरफ बहुत ज्यादा पहाड़ काटने से ठेकेदारों का तो मुनाफा हो गया। सड़क निर्माण के लिए जरूरी रेत, पत्थर, बजरी, रोड़े सब वहीं निकल गए। उन्हें बाहर से सिर्फ सीमेंट या कोलतार लाना होता है। वह कहते हैं कि जहां सड़क को चौड़ा करने की जरूरत नहीं थी या जो क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है, वहां भी पहाड़ काटे गए। यही नहीं, बेतरतीब पहाड़ काटने से पानी के सैकड़ों स्रोत खत्म हो गए। पहाड़ काटने के लिए किसी भूगर्भ विज्ञानी की राय तो ली जानी चाहिए थी।
गंगा नदी के किनारे ही स्टोन क्रेशर लगाए गए हैं। जहां आसपास आबादी है। इससे लोगों का स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा है। वहीं नदी किनारे स्टोन क्रशर होने से जलीय जीवों पर भी खतरा आ गया है। जड़धारी बताते हैं कि यहां बेहद दुर्लभ किस्म की मछलियां पायी जाती हैं। नदी में जा रहा मलबा इन मछलियों के लिए घातक साबित हो रहा है।
ऑल वेदर रोड के लिए पहाड़ तो धराशायी किये ही जा रहे हैं, उनकी आड़ में बेवजह पेड़ों को भी काटा जा रहा है। किसान विजय जड़धारी की ये भी शिकायत है कि टिहरी में उनके गांव नागनी में पहाड़ काटने के नाम पर 50-60 वर्ष पुराने पेड़ तक काट दिए गए। जो सड़क के रास्ते में नहीं आ रहे थे। इसके लिए उन्होंने डीएफओ और जिलाधिकारी को भी पत्र लिखा। लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं हुआ। वह कहते हैं कि पहाड़ के इस तोड़फोड़ से तैयार हुए नए भूस्खलन ज़ोन अगले 10-15 वर्षों तक यहां के लोगों को रुलाएंगे।
वह बताते हैं कि घर बनाने या मनरेगा के तहत निर्माण के लिए जब पत्थर या बजरी खोदी जाती है तो राजस्व विभाग उनसे रॉयल्टी वसूलता है, लेकिन ऑल वेदर रोड के निर्माण में लाखों-लाख टन पत्थर, रोड़ी और डस्ट बनाने के लिए क्रशर प्लांट लगे हैं, जो हिमालय की शुद्ध हवा को प्रदूषित कर रहे हैं लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आंख मूंदे हुए है।
विजय जड़धारी ने इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा और बताया कि एक तरफ गंगा को बचाने के लिए बहुत बड़ी धनराशि लगाई जा रही है, वहीं ऑल वेदर रोड बनाने में लगे लोग गंगा ही नहीं अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, कोसी समेत सैंकड़ों गाड-गधेरों में मलबा डाल रहे हैं।
उत्तरकाशी में रहने वाले दिगबीर बिष्ट कहते हैं कि ऑल वेदर रोड के नाम पर जगह-जगह जरूरत से ज्यादा पहाड़ काटे जा रहे हैं। वह संशय जताते हैं कि इसमें माफिया की पूरी साठगांठ है। उनके मुताबिक जिले के डूंडा ब्लॉक में गंगा किनारे करीब 8-9 स्टोन क्रशर लगे हुए हैं। उन्हें तो कच्चा माल चाहिए। कहीं कच्चे पहाड़ हैं, कहीं पक्के पहाड़ हैं। जहां अच्छा मैटर दिखता है, वहां पूरे पहाड़ काटे जा रहे हैं। इसके लिए ब्लास्टिंग भी की जा रही है। फिर ट्रकों में मलबा भरकर गंगा किनारे स्टोन क्रशर में ले जाया जाता है। दिगबीर अफसोस जताते हैं कि गंगा को ही डंपिंग जोन बना दिया गया है।
ऑल वेदर रोड के निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पर्यावरणीय प्रभाव के आंकलन के लिए बनी उच्चाधिकार प्राप्त समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा को भी जरूरत से ज्यादा पहाड़ काटने की शिकायतें मिलीं। वह कहते हैं कि ऑल वेदर रोड के निरीक्षण के दौरान स्थानीय लोगों ने इस तरह की शिकायत की, लेकिन उनकी टीम स्थानीय लोगों की इस शिकायत की पुष्टि नहीं कर पायी।
उनके मुताबिक पहाड़ के घुमावों पर सड़क दूसरे हिस्सों से जरूर कुछ चौड़ी नज़र आई। जो कि वाजिब है। इसकी जरूरत होती है ताकि मोड़ पर लोग दूसरी तरफ से आने वाली गाड़ियां देख सकें। इसके अलावा जगह-जगह पर लोगों ने पहाड़ ज्यादा काटने को लेकर शिकायत की। लेकिन इन सवालों पर कमेटी को अभी पड़ताल करनी है। हमने 9 दिनों में इस सड़क के निर्माण कार्य को देखा। एक दिन में करीब 100-150 किलोमीटर तक सफ़र किया। ताकि हम समस्याओं को खुद महसूस कर सकें।
चोपड़ा कहते हैं कि सड़क की चौड़ाई को लेकर भी हमें हिल रोड मैन्यूज़ को समझना होगा। फिलहाल ऑल वेदर रोड के तहत सड़क की स्टैंडर्ड चौड़ाई 12 मीटर है। जिसमें से दोनों छोर पर मिलाकर करीब 3 मीटर तक जगह छोड़नी होगी। वह बताते हैं कि ईपीसी (इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कनस्ट्रक्शन ) के आधार पर रोड बनाने का जिम्मा कॉन्ट्रैक्टर को दिया गया है। सड़क के डिजायन को लेकर कॉन्ट्रैक्टर छोटे-मोटे परिवर्तन कर सकता है। बड़े बदलाव के लिए उसे सड़क का रि-ड्राफ्ट सबमिट करना होगा। समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करने से पहले इस मामले पर भी संबंधित अफसरों से पूछताछ करेगी।