2009 में 'सुखना झील' के अस्तित्व के सवाल को लेकर ‘हरियाणा और पंजाब हाईकोर्ट’ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केस की सुनवाई शुरू की थी। इसी बीच 2011 के एक घटनाक्रम में सुखना केचमेंट एरिया के सभी निर्माण कार्यों पर माननीय हाईकोर्ट ने रोक भी लगा दी थी। उस समय आईआईटी रुड़की और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों की 'सुखना झील' से संबंधित कई अध्ययन रिपोर्ट माननीय हाईकोर्ट को सौंपी गई थी। 'सुखना झील' को बचाने को लेकर हुए वाद की हाईकोर्ट 10 साल से सुनवाई कर रहा था, उसे जस्टिस राजीव शर्मा ने दो सुनवाई में ही निपटा दिया।
जस्टिस राजीव शर्मा की खंडपीठ के समक्ष तो पहली बार यह मामला दिसंबर 2019 में ही सुनवाई के लिए आया था और उन्होंने केस के पहली ही सुनवाई में साफ कर दिया था कि अब इस मामले को लटकने नहीं दिया जाएगा। 2 मार्च 2020 में उनका फैसला भी आ गया। फैसले में कहा गया है कि ‘'सुखना झील' एक जीवित व्यक्तित्व है, जिसके अपने अधिकार, कर्तव्य और एक जीवित इंसान की तरह उत्तरदायित्व हैं। इस तरह से 'पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट' ने अपने फैसले में 'सुखना झील' को ‘लिविंग एंटिटी’ या ‘लीगल पर्सन’ का दर्जा दे दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि चंडीगढ़ के निवासी इस झील को जिंदा रखने के लिए इसके पेरेंट्स या संरक्षक होंगे।
यह आदेश 'पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट' की बेंच ने दिया है। इस महान बेंच में जस्टिस राजीव शर्मा के साथ ही जस्टिस एचएस सिद्धू भी थे। हाईकोर्ट ने पाया कि 'सुखना झील' के अस्तित्व के लिए इसे ‘लिविंग एंटिटी’ यानी ‘जीवित प्राणी’ का दर्जा देना ही पड़ेगा।
'सुखना झील' का चंडीगढ़ के लोगों के लिए क्या है महत्व
चंडीगढ़ की गिनती देश के सबसे खूबसूरत शहरों में होती है। वैसे तो यहां घूमने के लिए बहुत-सी जगहें हैं, जिनमें रॉक गार्डन से लेकर पिंजौर गार्डन, रोज़ गार्डन और इंटरनैशनल डॉल्स म्यूज़ियम शामिल है, लेकिन चंडीगढ़ की शान है सुखना लेक। सुखना झील 565 एकड़ में फैली है। ‘सर्वे ऑफ इंडिया’ के अनुसार सुखना झील का कैचमेंट एरिया 10,395 एकड़ में फैला है। इसमें 2,525 एकड़ हरियाणा का, 684 एकड़ पंजाब का और शेष चंडीगढ़ का एरिया है। इतना बड़ा कैचमेंट और जल-संग्रहण चंडीगढ़ के भूजल-भंडारों को भी भरता है। सुखना के कैचमेंट पर अतिक्रमण का साफ मतलब है चंडीगढ़ के लिए जलसंकट का आमंत्रण।
हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित सुखना लेक को 1958 में सुखना चाओ-खड्ड को बांधकर बनाया गया था। पहाड़ों की लंबी शृंखला के बीच सुखना का व्यू दिल को छू जाता है। गर्मियों में यहां प्रवासी पक्षियों का आना-जाना शुरू हो जाता है, जिससे दृश्य और भी खूबसूरत हो जाता है। यहां आप नौकायन-बोटिंग से लेकर शिकारा राइड ले सकते हैं। शिकारा अभी तक सिर्फ कश्मीर की डल झील तक ही सीमित थे, लेकिन अब इनकी एंट्री सुखना लेक में भी हो गई है। घूमने के लिये यहां ट्रैक बना हुआ है जिसके किनारे हरे भरे पेड़ लगे हैं, यहां घूमते हुए हल्का हल्का मधुर संगीत लोगों को मन की शांति देता है।
क्या है पूरा मामला
2009 में चंडीगढ़ के एक निवासी गौतम खन्ना ने हाईकोर्ट को पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने 'सुखना झील' की विभिन्न समस्याओं का जिक्र करते हुए कोर्ट को बताया कि झील में गाद बहुत ज्यादा इकट्ठी हो गई है। जिसके चलते इसका पानी कम हो गया है। इतना ही नहीं, गौतम ने हाईकोर्ट को यह भी बताया कि झील का आकार 2.5 किमी. से घटकर 1.5 किमी. ही रह गया है।
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उन्होंने इस संबंध में प्रशासन की ओर से कोई कदम ना उठाए जाने की भी शिकायत की। शिकायत पत्र में यह भी कहा गया कि एक ओर प्रशासन झील को बचाने के लिये कुछ कदम नहीं उठा रहा है। ऊपर से झील के खादर पर अवैध निर्माण करा रहा है, जिससे झील को औऱ ज्यादा नुकसान हो रहा है।
गौतम खन्ना की शिकायत के अलावा कोर्ट को इसी प्रकार की छः और शिकायतें अलग-अलग लोगों से मिलीं। जिनमें इसी तरह के मुद्दे उठाए गए थे। कोर्ट ने उन सभी शिकायतों को ‘सुओ मोटो’ यानी स्वतः संज्ञान में लेते हुए सबको एक साथ जोड़ दिया और समग्र रूप में पूरी समस्या को जानने के लिये चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब तलब किया। हाँ, इस शिकायत को औपचारिक रिट-पेटिशन में दायर करने के लिये अमाइकस क्यूरे के तौर पर एडवोकेट तनु बेदी को नियुक्त किया गया।
झील को हुआ है नुकसान
कई संस्थानों के अध्ययन-रिपोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट ने पाया कि पंजाब और हरियाणा दोनों ही राज्यों की सरकारों ने मिलकर 'सुखना झील' के केचमेंट एरिया को बहुत नुकसान पहुंचाया है। उम्मीद तो यही की जाती है कि राज्य के विभिन्न अभिकरणों का यह कर्तव्य है कि वे इस बात को सुनिश्चित करें कि 'सुखना झील' केचमेंट एरिया या खादर पर कोई भी ऐसा स्थाई ढांचा न बनाया जाए, जिससे कि जल-संग्रहण में कोई बाधा उत्पन्न हो, लेकिन सुखना के मामले में तो केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा तीन-तीन संरक्षक हैं, फिर भी झील मर रही है। जिसने जैसा चाहा वैसा व्यवहार किया।
झील में इतनी गाद जमा हो गई कि पानी कम होने लगा। किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। बल्कि बिल्डरों को झील के खादर पर निर्माण करने का परमिट जारी करते रहे। मामला जब अदालत पहुँचा तो चंडीगढ़ और पंजाब प्रशासन ने गाद निकलवाने और झील की सफाई का वादा किया और काम शुरु भी हुआ। चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से झील में पानी की कमी को स्वीकारते हुए कुछ आंकड़े भी एफिडेविट में दिये गए।
इसी बीच एडवोकेट तनु वेदी ने अखबार की कटिंग कोर्ट के सामने पेश की, जिसमें छपा था कि झील के खादर का कुछ हिस्सा जो हरियाणा के पास है, उस हिस्से पर हाउसिंग कालोनी डेवलप की जाएगी। इन्हीं खबरों को आधार मानकर हाईकोर्ट ने हरियाणा प्रशासन से जवाब मांगा। जिसमें खुलासा हुआ कि ‘माता मनसा देवी अर्बन कॉम्प्लेक्स’ के नाम से शुरु होने वाले प्रोजेक्ट में सेक्टर 1 का हिस्सा 'सुखना झील' के खादर का है।
'सर्वे ऑफ इंडिया' द्वारा चिन्हित झील के कैचमेंट एरिया को देखने पर पता चलता है कि इस हिस्से से नागथेवाली नदी, नेपली नदी और घेरारी नदी जैसे प्राकृतिक अपवाही जलस्रोत बहते हैं। ऐसे में उस पर कोई भी निर्माण कैसे हो सकता है? इसके उलट हरियाणा सरकार कॉलोनी विकसित करने के प्लान कर रही है।
अवैध और गैर-कानूनी निर्माण
'सर्वे ऑफ इंडिया' द्वारा 2004 तक के सत्यापित-अधिकृत नक्शे के आधार पर सर्वेक्षण शुरू किया गया है। पाया गया कि झील के खादर पर जितने भी व्यावसायिक, आवासीय तथा अन्य ढाँचों का निर्माण किया गया है और जो पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ की सीमा में लगते हैं, वह सभी अवैध और गैर-कानूनी हैं। अदालत ने साफ किया कि ‘द कैपिटल ऑफ पंजाब (डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट 1952’ इसलिये लागू किया गया था कि पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन मिलकर एक स्वस्थ और अच्छे शहर का निर्माण करें। इसके बजाय फूहड़ और अंधाधुंध अवैध निर्माण धड़ल्ले से किये जा रहे हैं। अवैध भवन निर्माणों को स्वीकृति देने और निर्माण होने से झील के पानी का रास्ता रुक गया है। चंडीगढ़ प्रशासन ने तो जरूर झील के आस-पास के इलाके को ‘ईको-सेंसिटिव जोन’ घोषित किया, लेकिन पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने तो ऐसे किसी कदम से परहेज किया।
क्या है आदेश
जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस एचएस सिद्धू की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला 'सुखना झील' के पक्ष में सुनाया है। इस फैसले ने एक बार फिर ‘पब्लिक ट्रस्ट’ सिद्धांत की प्रतिष्ठा रखी। हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि पर्यावरण का संरक्षण और सुरक्षा ‘पब्लिक ट्रस्ट’ सिद्धांत के आधार पर की जानी चाहिये यानी कि सरकारें और अधिकारी पर्यावरणीय संपत्तियों के न्यासी हैं-ट्रस्टी हैं, मालिक नहींं। आइए जानते हैं, इस महत्त्वपूर्ण फैसले की कुछ और अन्य बातें -
इस तरह से इस फैसले में एक साथ ही कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को फिर से जस्टिस राजीव शर्मा ने सम्मान दिया है। ‘पोल्यूटर पेज’, ‘ट्रस्टीशिप’, ‘पैरेंस पैट्रिये ’ और ‘लोको पैरेंट्स’ जैसे न्यायिक सिद्धांतों का आह्वान करके जस्टिस राजीव शर्मा ने एक बार फिर ये बता दिया है कि हमारे लिये प्रकृति कितनी महत्वपूर्ण है। 'सुखना झील' को ‘कानूनी व्यक्ति’ का दर्जा हमारे लिये एक सीख है कि हम अपने जलस्रोतों को जब माँ कहते हैं तो कानूनी तौर पर भी मानने में क्या हर्ज है। फिलहाल तो इस फैसले ने नदियों, तालाबों और झीलों की चिंता करने वाले लोगों में एक उम्मीद तो जगाई ही है।
(लेखिका पेशे से वकील हैं और इंटरनेशनल काउंसिल ऑव ज्यूरिस्ट, लंदन की सदस्या हैं, साथ ही नदियों के मुद्दों पर काम करने के लिये वाटकीपर एलायंस, अमेरिका के साथ जुड़ी हैं)