क्या आप जानते हैं कि प्रदूषण के महीन कणों यानी पीएम 2.5 का थोड़े समय के लिए भी संपर्क जानलेवा साबित हो सकता है। इस बारे में मोनाश विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण के इन महीन कणों के संपर्क में आने से हर साल औसतन 10,18,688 लोगों को अपनी जान से असमय हाथ धोना पड़ रहा है।
मतलब की हर साल दुनिया भर में होने वाली औसतन 2.08 फीसदी मौतों के लिए थोड़े समय के लिए प्रदूषण का संपर्क जिम्मेवार है। इसका मतलब है कि प्रति लाख आबादी पर 17 लोगों की मौत के लिए प्रदूषण के यह महीन कण जिम्मेवार हैं।
देखा जाए तो पूर्वी एशिया में होने वाली 3.21 फीसदी मौतों के लिए थोड़े समय के लिए पीएम2.5 का संपर्क जिम्मेवार है, जो वैश्विक औसत से भी ज्यादा है। इसी तरह दक्षिण एशिया में भी 2.42 फीसदी मौतों के लिए प्रदूषण के इन महीन कणों का थोड़े समय के लिए संपर्क जिम्मेवार है। बता दें कि यहां थोड़े समय से तात्पर्य, प्रदूषण के इन महीन कणों के कुछ घंटों से कुछ दिनों के संपर्क में आना है।
इस अध्ययन के नतीजे तीन मार्च को अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हैल्थ में प्रकाशित हुए हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पीएम 2.5 के थोड़े समय में संपर्क में रहने से वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों में से करीब 65.2 फीसदी यानी 663,889 एशिया में दर्ज की गई थी। वहीं अफ्रीका में 17 फीसदी (173,576), यूरोप में 12.1 फीसदी (122,784), अमेरिका में 5.6 फीसदी (57,410), वहीं ओशिनिया में 0.1 फीसदी (1,029) मौतें दर्ज की गई।
वहीं यदि ऑस्ट्रेलिया से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वहां थोड़े समय में भी पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से होने वाली मौतों में 2000 से 2019 के बीच 40 फीसदी की वृद्धि हुई है। प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि इस बारे में आज तक किए अधिकांश शोधों में शहरों में रहने वाले लोगों और उनके स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा है।
हालांकि प्रदूषण में कभी-कभार होने वाली बढ़ोतरी को अक्सर वहां नजरअंदाज कर दिया जाता है, जो छोटे शहरों को प्रभावित कर सकती है। इनमें आग लगना, धूल भरी आंधियां और रुक रुक कर प्रदूषण में होने वाली वृद्धि जैसी घटनाएं शामिल हैं। यही वजह है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 2000 से 2019 के बीच दो दशकों के दरमियान दुनिया भर के 13,000 से अधिक शहरों और कस्बों में मृत्यु दर और पीएम 2.5 के स्तर में आए उतार-चढ़ाव के बीच के संबंधों की जांच की है। यह अध्ययन प्रोफेसर युमिंग गुओ के नेतृत्व में किया गया है। बता दें कि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें वैश्विक स्तर थोड़े समय के लिए भी पीएम 2.5 के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर मंडराते जोखिम का आंकलन किया गया है।
किस कदर स्वास्थ्य पर कहर ढा रहा है अचानक से बढ़ता प्रदूषण
इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक कुछ घंटों से कुछ दिनों के बीच पीएम2.5 में सांस लेने से सबसे ज्यादा मौतें एशिया और अफ्रीका में हो रही हैं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इनमें से करीब 22.74 फीसदी मौतें शहरी क्षेत्रों में दर्ज की गई हैं, जिनका आंकड़ा 231,679 रिकॉर्ड किया गया है।
प्रोफेसर गुओ के मुताबिक अध्ययन में स्पष्ट तौर पर सामने आया है कि कैसे थोड़े समय के लिए पीएम2.5 का संपर्क स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रेलिया में 2019-20 की ब्लैक समर के दौरान दर्ज किया गया था। जब जंगल में लगी आग के कारण हुए प्रदूषण के चलते 429 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 3,230 को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा था। उनके मुताबिक ऐसा एकाएक बेहद ज्यादा हुए प्रदूषण की वजह से हुआ था, लो लम्बे समय तक बना रहा था।
शोधकर्ताओं के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में घनी आबादी के साथ-साथ प्रदूषण का स्तर भी ऊंचा होता है। यही वजह है कि इन क्षेत्रों में पीएम2.5 के अल्पकालिक जोखिम से जुड़ी मृत्यु दर को समझना महत्वपूर्ण है। यह जानकारी शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को सीमित करने में मददगार साबित हो सकती है।
इस अध्ययन में जो आंकड़ें सामने आए हैं वो भी इस बात की पुष्टि करते हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक सबसे अधिक मृत्यु दर पूर्वी एशिया, दक्षिणी एशिया और पश्चिमी अफ्रीका में घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हुई है जहां प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा है। बता दें कि 2019 में, चीन और भारत उन शीर्ष 20 देशों की सूची में शामिल रहे, जहां शहरी क्षेत्रों में पीएम 2.5 के संपर्क में आने से सबसे अधिक मौतें हुईं थी। बता दें चीन के शहरी क्षेत्रों में थोड़े समय के लिए भी पीएम 2.5 के संपर्क में आने से 72,000 से अधिक मौतें हुई थी। वहीं भारत में यह आंकड़ा 52,000 से अधिक दर्ज किया गया।
क्षेत्रीय तौर पर देखें तो आंकड़ों के मुताबिक जहां दुनिया में पीएम 2.5 के थोड़े समय में संपर्क आने से होने वाली मौतों का एक तिहाई (31 फीसदी) हिस्सा यानी 316,290 मौते पूर्वी एशिया में दर्ज की गई हैं। वहीं दक्षिण एशिया में यह आंकड़ा 280,615 (27·5 फीसदी) दर्ज किया गया है। वहीं उप-सहारा अफ्रीका की बात करें तो वहां थोड़े समय में भी पीएम 2.5 का संपर्क 151,857 जिंदगियों को लील रहा है। जो दुनिया में इसकी वजह से होने वाली करीब 14.9 फीसदी मौतों के बराबर है।
रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश हिस्सों में इसकी वजह से होने वाली मौतों में मामूली गिरावट देखी गई है। लेकिन साथ ही 2000 से 2019 के बीच वहां होने वाली कुल मौतों में पीएम 2.5 के कारण होने वाली मौतों की हिस्सेदारी 2000 में 0.54 फीसदी से बढ़कर 2019 में 0.76 फीसदी पर पहुंच गई है, जो करीब 40.7 फीसदी की वृद्धि के साथ दुनिया के अन्य क्षेत्रों से अधिक है।
शोध के मुताबिक ऐसा चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती संख्या और गंभीरता के कारण हो सकता है, जिनकी वजह से वायु प्रदूषण गंभीर रूप ले लेता है। ऐसा ही कुछ 2019 में दर्ज किया गया था, जब ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग ने भीषण रूप ले लिया था।
ऐसे में अध्ययन में सिफारिश की गई है कि उन जगहों पर जहां थोड़े समय में तेजी से बढ़ता वायु प्रदूषण स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचाता है, वहां मदद के लिए विशेष योजनाओं का सहारा लिया जा सकता है। इनमें वायु-प्रदूषण के बारे में चेतावनी देने वाली प्रणालियों के साथ-साथ समुदायों को अस्थाई रूप से सुरक्षित स्थानों पर ले जाने जैसी योजनाओं की मदद ली जा सकती है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इन लक्षित हस्तक्षेपों की मदद से स्वास्थ्य को होने वाले गंभीर नुकसानों को सीमित किया जा सकता है।