विशाखापट्टनम गैस लीक : एनजीटी ने नोटिस के साथ एलजी पॉलिमर्स को शुरुआती 50 करोड़ जमा करने का दिया आदेश

एनजीटी ने कहा ऐसा प्रतीत होता है कि आपात स्थितियों में बचाव के लिए इस्तेमाल होने वाली योजना और कानूनी प्रावधानों का बिल्कुल पालन नहीं किया गया।
फोटो: विकास चौधरी
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आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में स्टाइरीन गैस लीक मामले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एलजी पॉलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमटिड के साथ ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, आंध्र प्रदेश सरकार, आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और विशाखापट्टनम जिलाधिकारी को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई (18 मई, 2020) तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। वहीं, एनजीटी की प्रधान पीठ ने जन व पर्यावरण की क्षति के लिए एलजी पॉलिमर्स को जिलाधिकारी के पास 50 करोड़ रुपये की शुरुआती राशि जमा कराने का भी आदेश दिया है।

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्ययक्षता वाली पीठ ने 8 मई, 2020 को अपने आदेश में कहा "पहली नजर में यह मामला लोगों की मृत्यु, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण की क्षति का है। ऐसे में हम एलजी पॉलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शुरुआती 50 करोड़ रुपये की रकम विशाखापट्टनम के जिलाधिकारी के पास जमा कराने का आदेश देते हैं, यह ट्रिब्यूनल के आगे आने वाले आदेशों के अधीन होगा। जन और पर्यावरण की क्षति के दायरे व कंपनी की वित्तीय स्थिति का आकलन करके राशि तय होगी।"

एनजीटी ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर गैस लीक मामले पर कहा कि 07 मई, 2020 (3:45 एएम) को विशाखापट्टनम में पुंडुर्थी मंडल के आरआर वेंकटपुरम गांव में दक्षिण कोरिया की  एलजी पॉलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड की स्वामित्व वाली यूनिट से खतरनाक स्टाइरीन गैस का लीकेज हुआ। इसकी वजह से 11 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोगों को अस्पताल भेजा गया है, जिसमें 25 लोगो की हालत गंभीर बताई जा रही है। मृतकों और गंभीर मरीजों का आंकड़ा और अधिक बढ़ सकता है। वहीं, 1000 से अधिक लोग गैस लीकेज के कारण बीमार पड़ गए हैं। इसके इतर पर्यावरण और पर्यावास (हाबिटाट) को भी नुकसान हुआ है। मीडिया रिपोर्ट में कई सवाल उठाए गए हैं जो एनजीटी एक्ट, 2010 की धारा 14 और 15 के तहत आते हैं। 

पीठ ने कहा कि खतरनाक रसायन अधिनियम 1989 कानून के तहत स्टाइरीन गैस एक खतरनाक (हजार्ड्स) रसायन के तौर पर परिभाषित है। इस कानून के मुताबिक आपात स्थितियों में क्षति से बचाव के लिए ऑन साइट और ऑफ साइट वाली एक आपात योजना होनी चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि इसका पालन नहीं हुआ और अन्य वैधानिक प्रावधानों का पालन भी विफल रहा। गैस लीकेज के कारण लोगों की सेहत और पर्यावरण को जिस स्तर तक क्षति पहुंची है  वह स्पष्ट तौर पर इंटरप्राइज यानी कंपनी के विरुद्ध सख्त दायित्वों के सिद्धांतों के प्रति ध्यान खींचती है। पर्यावरण और अन्य कानूनों के मुताबिक इंटरप्राइज ही नुकसान की क्षति के लिए जिम्मेदार है। इसे वैधता देने वाली और नियंत्रित करने वाली संस्थाएं भी लापरवाही के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। बिना किसी अन्य सुनवाई के बचाव और क्षतिपूर्ति के काम होने चाहिए। 

जांच और आकलन के लिए छह सदस्यीय समिति 

पीठ ने मौके पर जाकर गैस लीक यूनिट की जांच के लिए एक छह सदस्यीय समिति भी बनाई है। यह कमेटी घटना की क्रमवार रिपोर्ट बनाएगी। साथ ही गैस लीक के कारण और जिम्मेदार लोगों की पहचान करेगी। समिति जीवन हानि (मानव और गैर मानव), जन स्वास्थ्य और पर्यावरण (मिट्टी, पानी इत्यादि) के क्षति दायरे की जांच करेगी। बचाव उपायों के साथ पीड़ितों की पहचान भी समिति को करनी होगी। इस समिति में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व जज रहे जस्टिस बी एस रेड्डी, विशाखापट्टनम में आंध्र यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रोफेसर वी रामा चंद्र मूर्ति, आंध्र यूनिवर्सिटी के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पुलीपाटी किंग, नीरी के प्रमुख, सीपीसीबी के सदस्य सचिव, सीएसआईआर- इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी के निदेशक को शामिल किया गया है। पीठ ने कोविड-19 के कारण मौके पर न पहुंच पाने वाले अधिकारियों को ऑनलाइन ही जांच में शामिल होने को कहा है। 

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