सबरीमाला तीर्थ केंद्र परिसर किसी भी वेटलैंड का हिस्सा नहीं है, यह जानकारी पठानमथिट्टा जिला कलेक्टर द्वारा कोर्ट में दायर हलफनामे में दी है। गौरतलब है कि सबरीमाला तीर्थ केंद्र परिसर एक प्रमुख हिन्दू तीर्थस्थल है जोकि केरल के पथानामथिट्टा जिले की रन्नी तालुका में स्थित है। जो मुख्य शहर इत्तियप्पारा से लगभग 66 किमी दूर स्थित है।
इस बारे में जिला कलेक्टर ने जो हलफनामा दिया है उसमें कहा है कि सबरीमाला तीर्थ केंद्र परिसर के लिए अधिग्रहित भूमि का कोई भी हिस्सा वेटलैंड में नहीं आता है। गौरतलब है कि परिसर के निर्माण के खिलाफ दायर मामले में कहा गया था कि यह स्थल वेटलैंड की श्रेणी में आता है।
वर्तमान में, भूमि के दक्षिणी हिस्से पर भराव करके केएसआरटीसी बस स्टैंड का निर्माण किया गया है। इस तीर्थ केंद्र के निर्माण में हुई प्रगति और सामने आने वाली बाधाओं का आंकलन करने के लिए तिरुवल्ला के राजस्व मंडल अधिकारी ने 21 मार्च, 2022 को अधिकारियों की एक बैठक भी आयोजित की थी। इस तीर्थ केंद्र का निर्माण सरकार की एक बड़ी परियोजना है, जिसका मकसद तीर्थयात्रियों को बेहतर सुविधा प्रदान करना है। इसी को ध्यान में रखकर यह बैठक आयोजित की गई थी।
इस बैठक में, कार्यपालक अभियंता, लोक निर्माण विभाग (भवन) ने जानकारी दी है कि इस जमीन को वर्ष 2000 से पहले ही परिवर्तित कर दिया गया था और इसे गलती से डाटा बैंक में वेटलैंड के रूप में दर्शाया गया है। उनका कहना है कि इस गलती को सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरुरत है।
कोर्ट के दखल के बाद आगरा में हाउसिंग कॉलोनी के एसटीपी का काम हुआ शुरू
एनजीटी के दखल के बाद आगरा की एक हाउसिंग कॉलोनी में एसटीपी निर्माण का काम एक निजी डेवलपर द्वारा शुरू कर दिया गया है, जिसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा। नालंदा टाउन नामक यह कॉलोनी उत्तर प्रदेश में आगरा के शमशाबाद रोड पर स्थित है।
इस सम्बन्ध में आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा 7 जून, 2022 को एक कार्रवाई रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष पेश की गई है। गौरतलब है कि इस सन्दर्भ में 1 दिसंबर, 2021 और 24 मार्च, 2022 को कोर्ट ने आदेश जारी किए थे।
इससे पहले नालंदा कॉलोनी द्वारा हर दिन पैदाकिए जा रहे 1.45 लाख लीटर सीवेज को खुली भूमि पर छोड़ने की शिकायत आवेदक ने ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष दर्ज कराई थी। इस मामले में कोर्ट के दखल के बाद आगरा विकास प्राधिकरण ने नालंदा टाउन कॉलोनी के गेट के बाहर नालों और खाली भूखंडों में जमा सीवेज मिश्रित पानी को टेंकरों के माध्यम से निकालना शुरू किया था, जिसका कार्य 10 मई 2022 तक पूरा कर लिया गया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने ऐसे अन्य डेवेलपर्स को भी नोटिस भेजा है, जिन्होंने एसटीपी का निर्माण नहीं किया है।
वेटलैंड का हिस्सा नहीं है इत्तियप्पारा बस स्टैंड: लोक निर्माण विभाग, तिरुवनंतपुरम
इत्तियप्पारा बस स्टैंड वेटलैंड का हिस्सा नहीं है, यह बात तिरुवनंतपुरम के लोक निर्माण विभाग द्वारा कोर्ट में दायर हलफनामे में कही है। इत्तियप्पारा बस स्टैंड केरल के पथानामथिट्टा जिले की रन्नी तालुका में स्थित है। लोक निर्माण विभाग ने जो जानकारी हलफनामे में दी है उसके अनुसार परियोजना स्थल से लगभग 11 मीटर की दूरी पर एक छोटी से नहर बहती है जिसे 'थोडू' भी कहते हैं।
वहीं दक्षिण की ओर लगभग 200 मीटर की दूरी पर एक मुख्य नहर है। हालांकि जानकारी दी गई है कि इस परियोजना की कोई भी सीमा इन नहरों को नहीं छू रही है। मतलब कि यह परियोजना स्थल किसी भी दिशा में थोडू के साथ कोई सीमा साझा नहीं कर रहा है।
गौरतलब है कि इस परियोजना के लिए भूमि को वर्ष 2001 में अधिग्रहित किया गया था, जबकि 2008 में डेटा बैंक तैयार हुआ था, जिसे 2012 में प्रकाशित किया गया था। हलफनामे के अनुसार यह सच है कि परियोजना में शामिल कुछ भूमि को गलती से वेटलैंड के रूप में चिह्नित किया गया है, लेकिन यह डेटा बैंक में हुई गलती का नतीजा है। इस सम्बन्ध में 10 जून, 2022 को एनजीटी में सूचित किया गया है।
प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों का निर्माण करने वाली इकाइयों की पहचान करना मुश्किल: तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 10 जून, 2022 को एनजीटी में सबमिट रिपोर्ट में कहा है कि प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों का निर्माण करने वाली इकाइयों की पहचान करना मुश्किल है। इस बारे में जानकारी दी गई है कि नियमित निरीक्षण और निगरानी के दौरान अवैध रूप से फेंके गए प्लास्टिक का निर्माण करने वाली इकाइयों की पहचान की जा रही थी और इस बारे में तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जानकारी दी गई थी।
गौरतलब है कि जनवरी 2019 से अक्टूबर 2021 के बीच प्रतिबंधित प्लास्टिक के निर्माण में शामिल 117 उद्योगों की बिजली आपूर्ति बंद करने और डिस्कनेक्ट करने के निर्देश जारी किए गए थे।
हालांकि यह भी जानकारी दी गई है कि विभिन्न जागरूकता और प्रवर्तन गतिविधियों के बावजूद, प्रतिबंधित प्लास्टिक का निर्माण करने वाली सभी यूनिट्स की पहचान करना मुश्किल है। ऐसी इकाइयां आवासीय/ वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के भीतर छोटी सी जगह में अवैध रूप से संचालित की जा सकती हैं।