गैर जरूरी जगहों पर आरओ का इस्तेमाल अब भी जारी, डेढ़ बरस बाद भी नहीं बन पाए नियम

एनजीटी ने 20 मई, 2019 को ऐसे जगहों पर आरओ के इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश दिया था जहां पानी खारा नहीं है। करीब डेढ़ बरस बीत चुके हैं लेकिन अब तक इस पर प्रारूप नहीं बन पाया है।
गैर जरूरी जगहों पर आरओ का इस्तेमाल अब भी जारी, डेढ़ बरस बाद भी नहीं बन पाए नियम
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के रोक संबंधी आदेश के बावजूद रिवर्स ऑस्मोसिस (आरओ) मशीन का घरेलू, व्यावासायिक और औद्योगिक प्रयोग जारी है। रिवर्स ऑस्मोसिस पानी के खारेपन को दूर करने वाली प्रक्रिया है। खारेपन को दूर करने वाली इस फिल्टर प्रक्रिया में करीब चार गुना से ज्यादा पानी की बर्बादी भी होती है। अभी तक यह प्रमाणित नहीं है कि जिस आरओ मशीन को घरों में साफ पानी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है उसमें किए जाने वाले सभी दावे सही हैं या नहीं। 

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) व अन्य पार्टियों को कई बार दोहराया कि है वे आरओ के इस्तेमाल पर उचित तरीके से रोक के लिए अधिसूचना जारी कर उसका पालन करें। हालांकि अभी तक इसका प्रारूप नहीं तैयार हो सका है। 

वहीं, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ताजा स्टेटस रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के बीच अभी कई तकनीकी पक्ष पर मतभेदों के चलते सहमति भी नहीं बन पाई है।  5 अप्रैल, 2021 को इस लंबित मामले पर एनजीटी में सुनवाई भी होनी है। 

एनजीटी ने 13 जुलाई, 2020 को अपने आदेश में कहा था कि उनके 20 मई, 2019 के आदेश का अभी तक पालन नहीं हो पाया है। इस आदेश में एक उचित अधिसूचना जारी कर आरओ के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कहा गया था। पीठ ने कहा "यहां तक कि एक वर्ष बीत चुके हैं और केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से लॉकडाउन का ग्राउंड लेते हुए अतिरिक्त समय की मांग की जा रही है। इसलिए 31 दिसंबर, 2020 तक यह काम हो जाना चाहिए।"  

एनजीटी ने 20 मई, 2019 को अपने आदेश में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को आदेश दिया था  वह जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर उन क्षेत्रों में आरओ पर रोक लगवाए जहां पानी खारा नहीं है। साथ ही आरओ निर्माता कंपिनयों को यह आदेश जारी करें कि उनकी मशीनें पानी की सफाई के दौरान कम से कम 60 फीसदी पानी का शोधन करें। इसके बाद इन मशीनों को और असरदार बनाकर इनकी क्षमता 75 फीसदी शुद्ध पानी देने के लायक बनाई जानी चाहिए। पीठ ने यह स्पष्ट किया था कि आरओ के जरिए बर्बाद होने वाले पानी का इस्तेमाल बागबानी और गाड़ी या फर्श धुलाई में किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा था कि गाइडलाइन में यह प्रावधान किया जाए कि आरओ निर्माता कंपनी मशीनों में कम से कम 150 मिलीग्राम प्रति लीटर टीडीएस की मात्रा को सेट करें साथ ही कैल्सियम और मैग्नीशियम की न्यूनतम मात्रा भी पानी में सुनिश्चित हो। इसके अलावा आरओ निर्माताओं को खनिज और टीडीएस की मात्रा के बारे में मशीनों पर स्पष्ट लेबलिंग भी की जाए। 

बहरहाल केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की एक अप्रैल, 2021 को जारी स्टेटस रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी तरह के वाटर प्यूरीफायर सिस्टम को बीआईएस से मान्यता देने के लिए नए ड्राफ्ट में कहा गया है। जबकि आरओ संबंधी पर्यावरण मानक तैयार करने के लिए बीआईएस को करीब 18 महीने का समय चाहिए। ऐसे में अधिसूचना जारी होने के बाद बीआईएस को प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए इतना वक्त चाहिए होगा। बीआईएस को यह प्रोटोकॉल मंजूरी की अनुमति (टाईप ऑफ कन्फर्मिटी ), उत्पादन इत्यादि के लिए चाहिए।  

वहीं बीआईएस ने अधिसूचना के नए ड्राफ्ट पर अपने कमेंट में 12 मार्च, 2021 को कहा था पानी की सफाई के लिए रिवर्स ऑस्मोसिस प्रणाली का रेग्यूलेशन बनाने में वह सदस्य जरूर था लेकिन उससे इस विषय में कोई राय नहीं ली गई। वाटर प्यूरीफिकेशन सिस्टम के इस्तेमाल को रेग्युलेट करने के लिए नई अधिसूचना में किसी तरह का तकनीकी पक्ष नहीं शामिल है ऐसे में पर्यावरण मानक किस तरह के वाटर प्यूरीफिकेशन सिस्टम के लिए बनाए जाएं यह भी बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है। इसमें सभी तरह का वाटर प्यूरीफिकेशन सिस्टम (डब्ल्यूपीएस) शामिल है। 

5 अप्रैल, 2021 को एनजीटी इस लंबित मामले में सुनवाई कर आदेश जारी कर सकता है। 

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