पारा एक जहरीला पदार्थ है जो तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। इसकी वजह से हर साल 2.50 लाख लोग दिमागी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसलिए इसे शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिक पदार्थ के रूप में भी जाना जाता है।
दुनिया भर के महासागरों में पारे की उपस्थिति का मानव और वहां रहने वाले जीवों के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में जहां मछली पकड़ने वाला हिस्सा होता है वहां अधिक देखा गया है।
अब वैज्ञानिक इस बात का पता लगा रहे है कि आखिर पारा जैसे जहरीली और भारी धातुएं महासागरों के तटों तथा खुले महासागरों तक कैसे पहुंच रही हैं। वैज्ञानिक ने महासागरों में पारे के स्रोतों का मूल्यांकन करने वाले मॉडल के माध्यम से सीधे वातावरण में जमा होने वाले पारे पर ध्यान केंद्रित किया है।
अध्ययन से पता चलता है कि वास्तव में नदियां दुनिया के महासागरों में जहरीली और भारी धातु पहुंचाने के लिए जिम्मेवार हैं। यह अध्ययन येल स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट में पारिस्थितिकी तंत्र के प्रोफेसर पीटर रेमंड के नेतृत्व में किया गया है।
रेमंड कहते हैं कि इस तरह दुनिया भर में पारे का चक्र चल रहा है। पहले यह माना जाता था कि खुले समुद्र में अधिकांश पारा वायुमंडल से जमा होता है और फिर यह तटीय क्षेत्रों में अपना रास्ता बना लेता है। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि अधिकांश पारा नदियों से बहकर महासागर के तटीय इलाकों और वहां से यह खुले महासागर में चला जाता है।
वर्तमान में नीति निर्माता मुख्य रूप से वायुमंडलीय उत्सर्जन से होने वाले पारे के जमाव को नियंत्रित करने के बारे में ही सोचते हैं। जबकि तटीय महासागरों में नदी से पारे के योगदान को अच्छी तरह से नहीं समझा जाता है। माओडियन का कहना है कि नए निष्कर्ष पारे को सीमित करने के महत्व के बारे में बताते हैं जो नदियों के माध्यम से अपना रास्ता बनाता है।
शोधकर्ताओं ने नदी में पारे के बहाव के वार्षिक चक्र में होने वाले बदलाव की भी जांच की, जिसमें पाया गया कि दुनिया भर में, पारे का स्तर अगस्त से सितंबर में सबसे अधिक था। उन्होंने विश्लेषण किया कि कौन सी नदियां पारे का सबसे बड़ा योगदानकर्ता थीं, नदी के पारे के आधे हिस्से के लिए दस नदियां जिम्मेदार हैं। इसमें अमेजन नदी सूची में सबसे ऊपर है, इसके बाद भारत और बांग्लादेश में गंगा और चीन में यांग्त्ज़ी नदी शामिल है।
जबकि अन्य हालिया अध्ययनों ने भी नदियों में पारे की मात्रा का अनुमान लगाया है। रेमंड का कहना है कि उन अध्ययनों में विशिष्टता का समान स्तर नहीं था। जिसके संबंध में नदियों में पारे की मात्रा सबसे अधिक थी और साल भर के दौरान जिसका स्तर बहुत अधिक बढ़ जाता है। लोग नहीं मानते है कि नदियां पारे जैसी जहरीली और भारी धातुएं बहाकर ले जा रही हैं। शोधकर्ता कहते हैं, यह नया अध्ययन इस मामले को मजबूती प्रदान करने में मदद करता है कि नदियां वास्तव में समुद्री पारे की सबसे बड़ी स्रोत हैं। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित हुआ है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि कोयले का जलना मुख्य रूप से वायुमंडलीय पारे के लिए जिम्मेदार है, जो आखिर में समुद्र और जमीन दोनों जगह जाकर मिल जाता है। पारा जिसे नदियां समुद्र में ले जाती हैं वह वायुमंडलीय पारे से भी हो सकता है जो मिट्टी में मिल गया हो।
यह सोने के खनन जैसे अन्य मानवजनित स्रोतों से भी आ सकता है और कुछ हद तक स्वाभाविक रूप से होने वाले भूगर्भिक स्रोतों से भी हो सकता है। इसके अलावा जैसा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से अधिक खतरनाक तूफान और बाढ़ आ रहे हैं, पारा जो लंबे समय तक मिट्टी में निष्क्रिय पड़ा रहता है, इन सब की मदद से वह तेजी से तटीय महासागरों में ले जाया जा सकता है।
रेमंड का कहना है कि भविष्य में उन सभी "हॉटस्पॉट्स" की पहचान करना है जो पारे को समुद्र में ले जाते हैं। लियू नोट करते हैं कि पारे की सबसे अधिक मात्रा के लिए मत्स्य पालन के संबंध की जांच करना जरूरी है। आहार के रूप में मछली की खपत से लोगों में पारा पहुंच सकता है जिसे एक स्रोत माना जा सकता है। अंततः यह बेहतर समझ है कि पारा महासागरों में कैसे और कहां जाता है, मछली के माध्यम से पारा हमारी प्लेटों तक पहुंच रहा है। यह अध्ययन पारे की मात्रा को कम करने के लिए नए नियमों को बनाने में मदद करेगा।