राजस्थान ने जारी की सिलिकोसिस नीति, क्या पीड़ितों को मिलेगा फायदा

सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए काम कर रहे संगठनों ने कहा है कि पॉलिसी को धरातल पर लागू करने से ही पीड़ितों को फायदा मिलेगा
Photo: Wikimedia commons
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राजस्थान सरकार ने सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ितों के लिए नई पॉलिसी जारी की है। स्वयंसेवी संगठनों ने हालांकि इस नीति का स्वागत किया है, लेकिन कहा है कि सरकार धरातल पर इसका क्रियान्वयन करे तो ही पीड़ितों को फायदा मिल सकेगा। 3 अक्टूबर 2019 को जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलौत ने जो पॉलिसी जारी की, उनमें मुख्य रूप से सिलिकोसिस के रोगियों की पहचान, उनके पुनर्वास और रोकथाम व बचाव के प्रावधान किये गये हैं।

गौरतलब है कि राजस्थान के 0.50 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र में खनन होता है। यहां देश की सबसे अधिक खानें हैं। इनमें 189 बड़े मिनिरल, 15245 माइनर मिनरल और 17688 पत्थर खदानों के लाइसेंस जारी किए हैं। यानी कि राजस्थान में कुल 33122 माइनिंग लीज हैं।  जहां से बालू और पत्थर निकलता है। सरकार का अनुमान है कि खनन और उससे जुड़े कार्यों से लगभग 30 लाख लोगों को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलता है। इसके अलावा राजस्थन में भवन एवं अन्य निर्माण क्षेत्र से भी लगभग 24 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन इस कार्य में लगातार धूल की वजह से लोग बीमार हो जाते हैं। इनमें से एक रोग सिलिकोसिस है।

नई पॉलिसी में सिलिकोसिस का दायरा बढ़ाते हुए कहा गया है कि जहां पर खनन कार्य हो रहा है या पत्थर तराशी का कार्य चल रहा है या क्रेशर से 2 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों को सिलिकोसिस पॉलिसी का लाभ मिलेगा। अब तक केवल खनन या पत्थर तराशी के काम में लगे श्रमिक ही इसके दायरे में आते थे। यह पॉलिसी राजस्थान में निवास करने वाले व काम करने लोगों व राजस्थान के बाहर के लोग जो राजस्थान में आकर काम करते हैं उन पर लागू होगी।

राज्य सरकार सिलिकोसिस की पहचान, पीड़ितों के पुनर्वास और रोकथाम व बचाव के लिए विस्तृत कार्यक्रम बनाएगी। पहचान और प्रमाणन के लिए पूरी जांच की व्यवस्था बनाई जाएगी, जिसमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पंजीकरण के बाद उनके जांच की जाएगी और बोर्ड में भेजकर उन्हें प्रमाण पत्र दिया जाएगा। जांच की इस व्यवस्था हेतु कई प्रावधान भी किये गए हैं।

पॉलिसी में कहा गया है कि राज्य सरकार का निवासी प्रमाणित होते ही पीड़ित को 3 लाख की सहायता प्रदान की जाएगी तथा मृत्यु होने के बाद परिजनों को 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान की जाएगी। सिलिकोसिस पीड़ितों को उनके जीवित रहने तक पेंशन प्रदान की जाएगी। प्रमाणित श्रमिकों के बच्चों को पालनहार का लाभ दिया जाएगा। इनको खाद्य सुरक्षा योजना में शामिल किया जाएगा तथा बीपीएल के सभी लाभ दिए जाएंगे। इनको आयुष्मान भारत भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निशुल्क इलाज किया जाएगा।

उधर, सिलिकोसिस पीड़ितों पर काम करने वाले संगठन सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान ने कहा है कि उनकी मांग थी कि जहां सिलिकोसिस होने की संभावना रहती है ऐसे सभी स्थानों का सर्वे किया जाए और सुरक्षित खनन किया जाए और ऐसे सभी यंत्र काम में लिए जाएं जो सिलिकोसिस को रोकते हैं। ऐसी सभी इकाइयों की जिम्मेदारी तय हो जहां पर काम करने से सिलिकोसिस होता है तथा सरकार इनको लीगल एड दे जिससे ये वर्कमैन्स कंपनसेशन एक्ट के तहत ये कोर्ट में दावा करके मुआवजा ले सकें। सरकार ने अपनी पॉलिसी में इसे शामिल कर लिया है। इसका फायदा पीड़ितों को मिलेगा। 

अभियान का कहना है कि सिलिकोसिस पॉलिसी में यह प्रावधान किया जाए कि जैसे ही व्यक्ति को सिलिकोसिस पीड़ित पाया जाए, हरियाणा की तर्ज पर 5000 रुपये प्रति माह पेंशन दी जाए और इनको विशेष विकलांगता की श्रेणी में लिया जाए, जिससे इस श्रेणी में मिलने वाली सभी सुविधाएं इनको मिल सके। साथ ही, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पीड़ित को आवास दिया जाए तथा इनके परिवार को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाए।

संगठन का कहना है कि सिलिकोसिस से चार मुख्य विभाग जुड़े हुए हैं। सिलिकोसिस पर नजर रखने के लिए इन विभागों के बीच समन्वयन बढ़ाया जाना चाहिए, जिसमें खान, स्वास्थ्य, श्रम एवं सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग शामिल है। एक विभाग को समन्वयन की जिम्मेदारी दी जाए, इसमें सामाजिक संगठनों, यूनियनों को शामिल किया जाए।

संगठन ने कहा है कि राज्य सरकार ने यह नीति तो बना दी है लेकिन इसका धरातल पर क्रियान्वयन ठीक ढंग से नहीं होगा तो सबसे हाशिये के सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों को इसका लाभ नहीं मिल पायेगा।

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