भारत में बढ़ रहे वायु प्रदूषण के लिए काफी हद तक वाहन जिम्मेवार हैं। अकेले दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो यहां रोजाना लगभग 4 करोड़ यात्राएं होती हैं। इनमें से मात्र 10 से 20 फीसदी यात्राएं सार्वजनिक परिवहन से की जाती हैं। ऐसे में, यदि निजी वाहनों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो हालात और बिगड़ सकते हैं।
सेंटर फार साइंस एंड एनवॉयरमेंट की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी कहती हैं कि दिल्ली-एनसीआर में 4 करोड़ यात्राओं में से 30 से 35 लाख मेट्रो और करीब 30 लाख यात्राएं ही अन्य सार्वजनिक परिवहन पर निर्भर हैं। करीब 3.5 करोड़ यात्राएं रोजाना निजी वाहनों से हो रही हैं। ऐसे में इसका बोझ सीधा ऊर्जा, पर्यावरण, समय और लोगों की जिदंगियों पर है। कोशिश होनी चाहिए कि 3.5 करोड़ यात्राएं भी सार्वजनिक परिवहन के जरिए की जाएं। अभी 10 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दिल्ली दौड़ती है। वाहनों की बढ़ती संख्या यह रफ्तार और कम करेगी। सड़के चौड़ा करना इसका इलाज नहीं है। सड़कों की डिजाईन सार्वजनिक परिवहनों और पैदल व साइकिल यात्रियों के हिसाब से होनी चाहिए। इससे न सिर्फ ट्रैफिक जाम जैसी स्थितियां काबू में आएंगी बल्कि वायु प्रदूषण भी नियंत्रित होगा।
अनुमिता के मुताबिक, इस वक्त देश को एक राष्ट्रीय नीति की जरूरत है। नई सरकार ने वायु प्रदूषण के खिलाफ मिशन शुरू करने को कहा था। इसे शुरू किया जाना चाहिए। देश भर के चिन्हित 102 प्रदूषित शहरों के जरिए वायु प्रदूषण की कटौती के लिए प्लान तैयार किया जाना है। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि यह कितना प्रभावी और लागू करने वाला है।
वायु प्रदूषण कम करने के कुछ प्रभावी कदम तत्काल उठाने होंगे। इनमें सार्वजनिक परिवहन की मजबूती, वैज्ञानिक कचरा निस्तारण, निर्माण एवं ध्वस्तीकरण मलबे का निस्तारण एवं छोटे उद्योगों पर निगरानी शामिल हैं। भारत मानक-4 को अप्रैल, 2020 से प्रभावी तौर पर लागू करना होगा। साथ ही सड़कों पर चलने वाले वाहनों के कारण होने वाले उत्सर्जन को घटाने के लिए कई कदम उठाने होंगे और एकीकृत सावर्जनिक परिवहन तंत्र को विकसित करना होगा। खासतौर से पैदल टहलने और साइकिल यात्रा की व्यवस्था भी करनी होगी। इसके अलावा जीरो उत्सर्जन प्रावधान, इलेक्ट्रिक वाहनों से गतिशीलता, नए पावर प्लांट के मानक, 34 समूह उद्योगों के जरिए होने वाले सल्फर व नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन के नए मानकों को लागू करने जैसी कई पहल करनी होगी। धूल प्रदूषण, स्वच्छ ईंधन, ईंट-भट्ठों की चिमनियों के लिए नई तकनीकी, स्टोन क्रशर और खनन क्षेत्रों के प्रदूषण पर नियंत्रण व वन संरक्षण और हरित दीवार के लिए वानिकी जैसे उपाय भी करने होंगे।
अनुमिता बताती हैं कि केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम को सफल बनाने और पारदर्शी तरीके से लागू करने के लिए और वित्तीय सहयोग की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में प्रदूषण फैलाने वालों से हर्जाना वसूलकर और अन्य वित्तीय मॉडल के तहत फंड को पारदर्शी और गतिशील बनाना होगा।