फॉरएवर केमिकल्स: एनजीटी ने जल्द से जल्द मानक निर्धारित करने को कहा

स्वास्थ्य पर फॉरएवर केमिकल्स के मंडराते खतरे को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा है कि हानिकारक रसायनों के लिए जल्द से जल्द मानक तय किए जाने चाहिए
फोटो: विकास चौधरी
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स्वास्थ्य पर फॉरएवर केमिकल्स के मंडराते खतरे को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 19 दिसंबर, 2024 को कहा कि इन कभी न खत्म होने वाले रसायनों के लिए जल्द से जल्द मानक तय किए जाने चाहिए।

अदालत के मुताबिक ये केमिकल्स स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। ऐसे में इन मानकों को तय करने से लोगों को जल प्रदूषण के गंभीर प्रभावों से बचाने और जल अधिनियम 1974 का पालन सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

इस मामले में केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से पेश वकील ने एक अतिरिक्त रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी है। इस रिपोर्ट में फॉरएवर केमिकल्स से जुड़े मानक निर्धारित करने को लेकर सीपीसीबी ने क्या कुछ कदम उठाएं हैं, उनकी जानकारी दी जाएगी।

इस मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल, 2025 को होगी।

गौरतलब है कि सात अप्रैल, 2024 को द हिंदू में प्रकाशित एक खबर के आधार पर इस मामलों को एनजीटी ने स्वतः संज्ञान में लिया है। इस खबर में जानकारी दी गई है कि आईआईटी मद्रास के एक अध्ययन में चेन्नई की बकिंघम नहर, अड्यार नदी और चेम्बरमबक्कम झील में फॉरएवर केमिकल्स, पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) की मौजूदगी का पता चला है। खबर तमिलनाडु के जलस्रोतों में फॉरएवर केमिकल्स की मौजूदगी से जुड़ी है।

27 अगस्त, 2024 को अपने जवाब में सीपीसीबी ने कहा था कि पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्स्टेंसेस (पीएफएएस) की निगरानी को लेकर कुछ ही अध्ययन किए गए हैं।

नल जल, पीने के पानी और सतही जल में मौजूद परफ्लुओरोऑक्टेनोइक एसिड (पीएफओए) और परफ्लुओरोऑक्टेनसल्फोनिक एसिड (पीएफओएस) की निगरानी महज दो वर्षों (2006-2008) के लिए की गई थी।

हानिकारक साबित हो सकता है इन केमिकल्स का बढ़ता स्तर  

समय के साथ, 2006 से 2020 के बीच इन रसायनों के स्तर में काफी वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, दक्षिण भारत के पीने के पानी में पीएफओए का स्तर 2008 में <0.005 नैनोग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 2015 में दो नैनोग्राम प्रति लीटर हो गया। इसी तरह, पीएफओएस का स्तर <0.033 नैनोग्राम प्रति लीटर से बढ़कर एक नैनोग्राम प्रति लीटर हो गया है।

पीएफएएस के स्तर में इस क्रमिक वृद्धि का संबंध विकसित देशों से चीन और भारत जैसे विकासशील देशों में उद्योगों के स्थानांतरण से जुड़ा हो सकता है। यह बदलाव तब हुआ जब यूएस ईपीए ने अपने स्टीवर्डशिप प्रोग्राम के माध्यम से पीएफएएस को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना शुरू किया।

यह भी कहा गया है भारत में पीएफएएस को विनियमित करने का पहला कदम नमूनों का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किए जाने वाले मानक तरीकों को अपनाना है। यही बात पीएफओए पर भी लागू होती है। जवाब में यह भी स्वीकार किया गया है कि पीएफओए और पीएफओएस दोनों ही खतरनाक प्रकृति के होते हैं।

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने पीने के पानी में पीएफएएस के लिए कोई मानक तय नहीं किए हैं। हालांकि, अदालत ने कहा कि इससे सीपीसीबी को जल अधिनियम 1974 को लागू करने के लिए मानक निर्धारित करने से छूट नहीं मिलती।

अदालत को यह भी बताया गया है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय स्थाई कार्बनिक प्रदूषकों पर राष्ट्रीय योजना को अपडेट करने के लिए एक परियोजना पर काम कर रहा है। इसके तहत, सीएसआईआर-नीरी उद्योगों का राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण कर रहा है, जिसमें पीएफएएस का निर्माण और उपयोग करने वाले उद्योग शामिल हैं।

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