मां की सांस से गर्भ में पल रहे बच्चे तक पहुंच रहा है प्रदूषण: स्टडी

यह पहला मौका है जब किसी शोध में यह पाया गया कि मां की सांस के माध्यम से अंदर गए ब्लैक कार्बन के कण उनके अजन्मे बच्चों (भ्रूण) के अंदर तक पहुंच सकते हैं
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दुनिया भर में बढ़ता प्रदूषण एक बड़ी चिंता का विषय बनता जा रहा है। हाल ही में छपी रिपोर्ट स्टेट ऑफ़ ग्लोबल एयर 2019  के अनुसार अकेले भारत में 12.4 लाख लोग हर वर्ष इसका शिकार बन जाते हैं। अब तक प्रदूषण की जद में केवल जन्में ही आते थे, मगर जर्नल नेचर  कम्युनिकेशंस में छपे नए शोध ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है, जिसके मुताबिक बढ़ते प्रदूषण का असर अब अजन्मों पर भी दिखने लगा है । बेल्जियम में गर्भवती महिलाओं पर किये गए एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है। 

इससे पहले किये गए अध्ययनों में यह बात साबित हो चुकी है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के चलते गर्भपात, समय से पहले जन्म और जन्म के समय बच्चों में कम वजन के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार हो सकता है। पर यह पहला मौका है जब किसी शोध में यह पाया गया कि मां की सांस के माध्यम से अंदर गए ब्लैक कार्बन के कण उनके अजन्में बच्चों (भ्रूण) के अंदर तक पहुंच सकते हैं। अध्ययन में भ्रूण के किनारों और गर्भनाल में प्रदूषण के हजारों कण पाए गए, जो दर्शाता है कि अजन्मे बच्चे भी मोटर-गाड़ियों, कारखानों और ईंधन के जलने से उत्पन्न हुए ब्लैक कार्बन के संपर्क में आ रहे हैं ।

गौरतलब है कि गर्भनाल किसी महिला के शरीर का एक अभिन्न अंग होती है, जो गर्भावस्था के दौरान बच्चे को पोषण और सुरक्षा प्रदान करने का काम करती है और मां के खून के साथ आने वाली हानिकारक चीजों को भ्रूण तक पहुंचने से रोकती है। बच्चा इसी के सहारे मां के गर्भ में जीवित रहता है। यदि प्रदूषण के कण इस अभेद सुरक्षा दीवार को भी भेद सकते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले वक्त में इसका व्यापक और हानिकारक प्रभाव पड़ेगा।

इस अध्ययन में बेल्जियम के शोधकर्ताओं ने 28 गर्भवती महिलाओं को चुना जो धूम्रपान नहीं करती थी । इसके लिए उन्होंने एक हाई रिज़ॉल्यूशन इमेजिंग तकनीक का प्रयाग किया, जिसकी सहायता से गर्भनाल (प्लेसेंटा) के नमूनों को स्कैन किया जा सकता है। जो कि कार्बन के कणों को चमकदार सफेद रोशनी में बदल देती है, जिन्हें मापा जा सकता है। उन्हें अध्ययन किए गए प्रत्येक नमूने में भ्रूण की तरफ काले कार्बन के कण मिले, जो वायु प्रदूषण को इंगित करते थे । उनमें से 10 महिलाएं जो अत्यधिक व्यस्त सड़क के पास रहती थी उनके प्लेसेंटा में कार्बन के कण अधिक मात्रा में पाए गए जबकि जो 10 महिलाएं व्यस्त सड़क से 500 मीटर से अधिक दूरी पर रहती थी, उनके प्लेसेंटा में कार्बन के कण अपेक्षाकृत कम मात्रा में पाए गए ।

प्रदूषण की जद में रहती है विश्व की 90 फीसदी आबादी

जहां चीन जैसे कुछ देशों ने वायु प्रदूषण को कम करने में सफलता हासिल की है, वहीं इससे होने वाले नुकसान के प्रमाण तेजी से बढ़ रहे है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े दर्शाते हैं कि दुनिया की 90 फीसदी आबादी उन स्थानों पर रहने के लिए मजबूर है, जहां वायु प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानकों से कई गुना अधिक है । जबकि वायु प्रदूषण से होने वाली 90 फीसदी से अधिक मौतें मध्यम और निम्न आय वाले देशों में होती हैं । इसके अंतर्गत मुख्य रूप से एशिया,  अफ्रीका इसके बाद पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र, यूरोप और अमेरिका के निम्न और मध्यम आय वाले देश आते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के लगभग 300 करोड़ लोगों (40 फीसदी आबादी) के पास अभी भी खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन और तकनीकें उपलब्ध नहीं है । जिसके कारण वायु प्रदूषण की समस्या और गंभीर होती जा रही है । जिसके सबसे अधिक बुरा प्रभाव घरेलू कार्यों में संलग्न महिलाओं पर पड़ता है ।


वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए जरुरी है ठोस नीति

विशेषज्ञों के अनुसार इस खतरे से बचने के लिए महिलाएं व्यस्त सड़कों और प्रदूषित जगहों से बचने जैसे उपाय कर सकती हैं । पर उन देशों में जहां महिलाओं को घर के भीतर भी वायु प्रदूषण की मार झेलनी पड़ती है, वहां इससे बचना एक बड़ी गंभीर चुनौती है । भारत में जहां मोदी सरकार की पहल के चलते इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया गया है । उज्ज्वला योजना ने जहां न केवल महिलाओं के लिए ईंधन की समस्या को हल करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की है, वहीं घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण में भी इससे कमी आयी है । लेकिन दुनिया के अन्य देशों को चाहिए की वह इस दिशा में यह जरुरी कदम उठाएं । हमें यदि भविष्य को वायु प्रदूषण के खतरे से बचाना है तो इससे  निपटने के लिए ठोस नीति बनाने की जरुरत  है, जिससे आने वाली पीढ़ी को प्रदूषण के जहर से बचाया जा सके ।

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