विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने आगाह किया है कि बढ़ते तापमान के साथ न केवल लू का कहर बढ़ जाएगा साथ ही इसके चलते जंगल में लगने वाली आग की घटनाओं में भी इजाफा हो जाएगा। इसका सीधा असर वायु गुणवत्ता पर भी पड़ेगा। आशंका है कि इसके चलते आने वाले समय में वायु प्रदूषण का स्तर भी बद से बदतर हो जाएगा।
इस बारे में डब्ल्यूएमओ ने 07 सितम्बर 2022 को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट “डब्ल्यूएमओ एयर क्वालिटी एंड क्लाइमेट बुलेटिन” में सचेत किया है कि भविष्य में प्रदूषण और जलवायु में आता बदलाव लोगों के लिए दोहरी चुनौतियां पैदा करेगा, जिसका कोप दुनिया के करोड़ों लोगों को भोगना होगा। डब्ल्यूएमओ के अनुसार प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का यह मेल लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए कहीं ज्यादा घातक सिद्ध होगा।
इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के एक उच्च अधिकारी का कहना है कि जब लोग भीषण गर्मी और वायु प्रदूषण की चपेट में आते हैं तो मौत का जोखिम 20 फीसदी बढ़ जाता है।
इस बुलेटिन में जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता की मौजूदा स्थिति के साथ-साथ उनके आपसी मेल के चलते पैदा होने वाले हालातों पर भी प्रकाश डाला है। साथ ही ग्रीनहाउस गैसों के उच्च और निम्न उत्सर्जन परिदृश्यों में वायु गुणवत्ता पर क्या असर होगा उस सम्बन्ध में भी जानकारी साझा की है।
रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल जंगलों में लगने वाली आग और धुंए के कारण इस वर्ष लू के मामलों में वृद्धि हुई है। इस बारे में डब्ल्यूएमओ महासचिव पेटेरी तालास ने 2022 में यूरोप और चीन में लू की घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा है कि साल के उस वक्त में उच्च वायुमंडलीय परिस्थितियां स्थिर थी, वहीं धूप और हवा की धीमी गति प्रदूषण के ऊंचे स्तर के लिए अनुकूल थी।
उनके अनुसार जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है उसके चलते कम उत्सर्जन परिदृश्य में भी जंगल की आग और संबंधित वायु प्रदूषण के बढ़ने की आशंका है। उनका कहना है कि यह इंसानी स्वास्थ्य के साथ-साथ इकोसिस्टम को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि यह वायु प्रदूषक धरती की सतह के आसपास एकत्र हो जाते हैं।
क्या है जलवायु परिवर्तन और वायु गुणवत्ता के बीच की केमिस्ट्री
उन्होंने सचेत किया कि आने वाले समय में लू की आवृत्ति, गहनता और अवधि में वृद्धि देखने को मिल सकती है, जिससे वायु गुणवत्ता कहीं ज्यादा खराब हो जाएगी। डब्ल्यूएमओ ने इसे ‘क्लाइमेट पेनल्टी' की संज्ञा दी है। यहां क्लाइमेट पेनल्टी का मतलब जलवायु में आते बदलावों के कारण वायु गुणवत्ता पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों से है।
रिपोर्ट के अनुसार, जीवाश्म ईंधन के दहन से नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित होती है, जो सूर्य के प्रकाश से प्रतिक्रिया कर ओजोन और नाइट्रेट एयरोसोल पैदा करती है। इन प्रदूषकों से न केवल वायु गुणवत्ता, इंसानी स्वास्थ्य बल्कि साफ पानी, जैवविविधता और कार्बन भण्डारण के साथ-साथ इकोसिस्टम पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
देखा जाए तो वायु गुणवत्ता और जलवायु आपस में गुंथे हुए हैं, क्योंकि जिन रसायनों की वजह से वायु गुणवत्ता खराब होती है, वे आमतौर पर ग्रीनहाउस गैसों के साथ उत्सर्जित होते हैं। ऐसे में एक में आने वाला बदलाव दूसरे को भी प्रभावित करता है।
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी छठी आकलन रिपोर्ट (एआर6) में भी 21वीं सदी में तापमान में होती वृद्धि के साथ वायु गुणवत्ता में आती गिरावट को रेखांकित किया था। रिपोर्ट के मुताबिक इस सदी के अंत तक उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं 40 से 60 फीसदी तक बढ़ सकती हैं।
जानकारी मिली है कि इसका सबसे ज्यादा खामियाजा एशियाई लोगों को भुगतना पड़ सकता है। एशिया जोकि दुनिया की करीब एक एक-चौथाई आबादी का घर है। वहां लोगों के स्वास्थ्य के लिए इस 'जलवायु दंड' का खतरा सबसे ज्यादा है।
अनुमान है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहता है और 21वीं सदी के उत्तरार्ध तक वैश्विक तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि आती है तो इसके चलते दुनिया के प्रदूषित क्षेत्रों में सतह के पास मौजूद ओजोन के स्तर में भारी वृद्धि हो सकती है।
अनुमान है कि इसका सबसे ज्यादा असर एशिया पर पड़ सकता है। आशंका है कि इसकी वजह से उत्तर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में ओजोन प्रदूषण का स्तर 20 फीसदी तक बढ़ जाएगा, जबकि पूर्वी चीन में ओजोन के स्तर में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होने की आशंका है।
पता चला है कि ओजोन में होने वाली अधिकांश वृद्धि के लिए जीवाश्म ईंधन के कारण होने वाला उत्सर्जन जिम्मेवार है, लेकिन इस वृद्धि के लगभग पांचवे हिस्से के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेवार है।
इसकी वजह से लू की घटनाओं में इजाफा हो जाएगा, जो वायु प्रदूषण में होती वृद्धि के लिए जिम्मेवार है। वहीं दूसरी तरफ लू की वो घटनाएं जिनका आना जलवायु परिवर्तन के कारण तेजी से आम होता जा रहा है। उनके हवा की गुणवत्ता में आती गिरावट के कारण जारी रहने की आशंका है।
हर व्यक्ति का अधिकार है साफ हवा और स्वस्थ वातावरण
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने बुधवार, 7 सितम्बर, को ‘नीले आकाश के लिये स्वच्छ वायु' के अन्तरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर साफ हवा और स्वस्थ प्रकृति को एक मानवाधिकार के रूप में रेखांकित किया था। इस मौके पर उन्होंने सभी देशों से साथ मिलकर वायु प्रदूषण के इस खतरे से निपटने की गुहार लगाई है।
वायु प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन पहले भी आगाह कर चुका है। अनुमान है कि दुनिया की 99 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। हवा में घुलता यह जहर हर साल करीब 70 लाख लोगों की जान ले रही है। इनमें से 90 फीसदी मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हो रही हैं।
इस बारे में महासचिव गुटेरेस का कहना है कि, “आज, वायु प्रदूषण अरबों लोगों को उनके अधिकार से वंचित कर रहा है। दूषित हवा से पृथ्वी पर 99 फीसदी लोग प्रभावित हैं, और निर्धन इससे सर्वाधिक पीड़ित हैं।”
उनका कहना है कि इस खतरे से निपटने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना जरुरी है। साथ ही जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल को भी तेजी से कम करना होगा। इतना ही नहीं हमें ऐसे वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देना होगा जिनसे उत्सर्जन न हो और परिवहन के अन्य वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा देना होगा।
खाना पकाने के लिए स्वच्छ ईंधन का उपयोग इस दिशा में सार्थक हो सकता है। साथ ही कचरे को जलाने की जगह उसे रीसायकल करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। उनके अनुसार इससे न केवल लाखों लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकेंगी साथ ही यह जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को धीमा करने के साथ-साथ सतत विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण होगा।