वायु प्रदूषण से भी बढ़ सकता है फैटी लिवर रोग का खतरा

एक नए अध्ययन के मुताबिक, सिर्फ खराब जीवनशैली और खानपान ही नहीं, लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से फैटी लिवर रोग का खतरा बढ़ जाता है
वायु प्रदूषण से भी बढ़ सकता है फैटी लिवर रोग का खतरा
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अगर आपको लगता है कि आपका खानपान और जीवनशैली सही है तो लिवर सम्बन्धी बीमारियों का खतरा नहीं है, तो आप गलत हैं। हाल ही में किए एक अध्ययन से पता चला है कि सिर्फ खराब जीवनशैली और खानपान ही नहीं लम्बे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से मेटाबोलिज्म से जुड़ी फैटी लिवर डिजीज (एमएएफएलडी) का खतरा बढ़ जाता है। यह जानकारी हाल ही में जर्नल ऑफ हेपेटोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है।

गौरतलब ही कि 80 के दशक से एमएएफएलडी की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्तमान में विश्व की करीब एक चौथाई आबादी फैटी लिवर डिजीज से ग्रस्त है। जो मधुमेह के रोगियों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है।  

गौरतलब ही कि 80 के दशक से एमएएफएलडी की घटनाओं में लगातार वृद्धि हो रही है। वर्तमान में विश्व की करीब एक चौथाई आबादी फैटी लिवर डिजीज से ग्रस्त है। जो मधुमेह के रोगियों को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है।

वहीं एशिया से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 2012 से 2017 के बीच केवल पांच वर्षों में इसके मामलों में करीब 40 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह रोग बड़ी तेजी से एशियाई देशों में भी अपने पैर पैसार रहा है।  

इस शोध में शोधकर्ताओं ने 2018 से 2019 के बीच चीन के 90 हजार से ज्यादा लोगों के स्वास्थ्य का अध्ययन किया था। इस शोध में शोधकर्ताओं ने लोगों के स्वास्थ्य, जीवन शैली, आदतों, की जानकारी एकत्र की थी। उन्होंने प्रतिभागियों के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का भी विश्लेषण किया था। साथ ही अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने पीएम1, पीएम2.5, पीएम10 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का लिवर पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है। 

जिसमें शोधकर्ताओं को पता चला है कि लम्बे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने से एमएएफएलडी की सम्भावना बढ़ सकती है। इतना ही नहीं इस बीमारी के उन लोगों में ज्यादा होने की सम्भावना होती है जो शराब का सेवन और धूम्रपान करते हैं। साथ ही मोटापे से ग्रस्त और उच्च वसा वाले आहार का सेवन करने वालों में भी इस बीमारी के होने की सम्भावना कहीं ज्यादा थी। 

कितनी गंभीर है यह समस्या

यदि लिवर की बात करें तो वो शरीर का एक प्रमुख अंग है। जो भोजन को पचाने से लेकर अवांछित तत्वों को भी फिल्टर करता है। साथ ही यह संक्रमण से लड़ने में भी शरीर की मदद करता है। इतना ही नहीं यह ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने और प्रोटीन को बनाने में भी अहम भूमिका निभाता है। लेकिन अगर लिवर में फैट की मात्रा बढ़ने लगे तो वो लिवर को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। यदि इस रोग की गंभीरता को देखें तो इसके चलते सिरोसिस और लिवर कैंसर जैसे रोग हो सकते हैं, जिसकी वजह से लिवर ट्रांसप्लांट करने की जरुरत पड़ सकती है या फिर मृत्यु भी हो सकती है। 

फैटी लिवर एक ऐसी ही बीमारी है जिसमे लिवर के अंदर फैट जमा होने लगता है, जिससे उसमें सूजन आने लगती है। यह बीमारी दो तरह की होती है अल्कोहलिक और नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर। जैसा की नाम से ही पता चल रहा है कि जो लोग शराब का सेवन ज्यादा करते हैं उनमें अल्कोहलिक फैटी लिवर होने का खतरा ज्यादा रहता है, जबकि यह रोग उन लोगों में भी हो सकता है जो शराब नहीं पीते हैं। उन्हें होने वाले रोग को नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज कहते हैं। 

यह समस्या इसलिए भी गंभीर है क्योंकि जहां दुनिया भर में लोगों की जीवनशैली में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है और मोटापे की समस्या बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की समस्या भी गंभीर रूप ले चुकी है। 

दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है दुनिया की 90 फीसदी आबादी

यह समस्या इसलिए भी गंभीर है क्योंकि जहां दुनिया भर में लोगों की जीवनशैली में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है और मोटापे की समस्या बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की समस्या भी गंभीर रूप ले चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर है कि दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है, जो धीरे-धीर उन्हें मौत की ओर ले जा रही है। वहीं विश्व की करीब आधी आबादी भी घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण की जद में है।

यह समस्या इसलिए भी गंभीर है क्योंकि जहां दुनिया भर में लोगों की जीवनशैली में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है और मोटापे की समस्या बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ वायु प्रदूषण की समस्या भी गंभीर रूप ले चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण की समस्या इतनी गंभीर है कि दुनिया की करीब 90 फीसदी आबादी दूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है, जो धीरे-धीर उन्हें मौत की ओर ले जा रही है।

वहीं विश्व की करीब आधी आबादी भी घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण की जद में है। यदि भारत की बात करें तो स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019 में छपे आंकड़ों के अनुसार अकेले भारत में हर वर्ष 12.4 लाख लोग वायु प्रदूषण की भेंट चढ़ जाते हैं। साथ ही देश की एक बड़ी आबादी के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। ऐसे में वर्त्तमान पीढ़ी और आने वाली नस्लों को इस प्रदूषण के जहर से बचाने के लिए यह जरुरी है कि ठोस रणनीति और कठोर कदम उठाएं जाएं। 

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